लखनऊ। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के चुनावी साथ को लेकर असमंजस के बादल बुधवार को लगभग छंटते नज़र आए। कहना गलत न होगा कि सपा और सुभासपा की चुनावी दोस्ती पूर्वांचल के दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर असर डालने की ताकत तो रखती ही है।
कुछ उसी तर्ज पर जैसे भाजपा से वर्ष 2017 में गठबंधन करने के बाद राजभर समाज के अतिरिक्त वोट मिलने के कारण सुभासपा चार विधायक जिताने में सफल रही थी। यह बात दीगर है इससे पहले कई बार ओम प्रकाश राजभर ने सियायी समर में किस्मत आजमाई लेकिन उनकी पार्टी का कोई सदस्य विधानसभा नहीं पहुंच सका।
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव छोटे दलों से गठबंधन की योजना पर आगे बढ़ रहे हैं। बड़े दल की जगह वो ऐसे साथी खोज रहे हैं, जिनका प्रभाव कुछ जिलों या सीटों तक सीमित है। पश्चिमी यूपी में जहां राष्ट्रीय लोकदल, महान दल सहित कई अन्य को साथ लेने की कवायद हो रही है।
अब पूर्वांचल में वे सुभासपा को साथ ले रहे हैं। अब देखना यह है कि शिवपाल और ओवैशी की इस नए गठबंधन में क्या भूमिका होगी। सूत्रों की मानें तो सपा और सुभाषपा के बीच सीटों के तालमेल को लेकर भी बात हुई है।
सपा को उनका साथ मिलने पर वाराणसी, मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, कुशीनगर, गोरखपुर, बलिया, देवरिया, फैजाबाद, हरदोई, कानपुर देहात के अलावा देवीपाटन मंडल की दो दर्जन सीटों पर लाभ होने की उम्मीद है।
भाजपा के साथ ने पहुंचाया विधानसभा
राजभर के राजनैतिक सफर की बात करें तो इसकी शुरुआत कांशीराम के समय हुई। वर्ष 2001 में उनका बसपा सुप्रीमो मायावती से विवाद हुआ तो उन्होंने अलग राह ले ली। नई पार्टी बनाई मगर कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ने से ज्यादा कुछ ना कर सके।
इसके बाद उन्होंने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल से भी दोस्ती की लेकिन विधानसभा नहीं पहुंच सके। पिछले विधानसभा चुनाव में वे भाजपाई नाव पर सवार हो गए और गाजीपुर की जहूराबाद विधानसभा सीट से जीते ही नहीं, मंत्री भी बने। उन्हें भाजपा ने बतौर सहयोगी दल 8 सीटें दी थीं जिसमें से वह केवल चार पर ही जीत सके थे।