नई दिल्ली. सियासत में कब किसीकी क्या भूमिका बन जाए ये कहा नहीं जा सकता. जिंदगी रहते तो लोग सियासात करते ही हैं मगर कई बार मरने के बाद भी सियासत आपका इस्तेमाल करने से नहीं चूकती.
अटल बिहारी वाजपयी की सरकार में जब देश के मिसाईल मैंन डा. एपीजे अब्दुल कलाम को देश का राष्ट्रपति चुना गया था तब बहुत थोड़े से लोग दबी आवाज में इसे भाजपा का राजनीतिक दांव बता रहे थे, मगर ज्यादातर लोगों के लिए यहाँ अपने नायक को सम्मान देने जैसा था.
कलाम की मौत के आठ साल बाद भारतीय जनता पार्टी उनके नाम का सियासी इस्तेमाल एक बार फिर करने जा रही है. इस बार कलाम का इस्तेमाल भाजपा के पस्मान्दा एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए होगा.
डा. कलाम की पुण्यतिथि 27 जुलाई से तीन महीने तक भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा कलाम के नाम पर एक यात्रा निकलने जा रहा है जो 14 राज्यों से हो कर गुजरेगी.
इस यात्रा का नाम पसमांदा स्नेह सम्मान यात्रा रखा गया है और इसमें डा कलाम के चहरे का इस्तेमाल किया जाएगा. पार्टी पसमांदा मुसलमानों के नायक के रूप में डा. कलाम को स्थापित करेगी.
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि ये यात्रा दिल्ली से निकल कर भोपाल तक जाएगी , यह यात्रा 14 राज्यों में निकाली जाएगी. गौरतलब है कि इन यात्रा के मार्ग में 63 सीट ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यकों की तादाद 32 फीसदी से 98 फीसदी तक है.
कुछ समय से भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में रिझाने के लिए कई सम्मलेन किये हैं और यूपी में दानिश अंसारी जैसे नेता को मंत्री भी बनाया है.
पार्टी नेताओं का मानना है कि मुसलमानों में पैठ बनने के लिए पसमांदा मुसलमानों को प्रभावित करना जरुरी है क्योंकि ज्यादातर मुस्लिम बहुत सीटों पर इनकी संख्या 80 प्रतिशत तक है.पार्टी की नजर असम की 7, दिल्ली की 2, हरियाणा की 2, बिहार की 4,महाराष्ट्र की 2, मध्य प्रदेश की 3, तेलंगाना की 2, जम्मू-कश्मीर की 5, उत्तर प्रदेश की, 13केरल की 8, लद्दाख की 1, तमिलनाडु की 1, और पश्चिम बंगाल की 13 सीटों पर है जहाँ मुस्लिम वोटर ही हारजीत का फैसला करता है.
उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी ने पसमांदा मुसलमानों को एक वोटबैंक के रूप में जोड़ना शुरू किया था मगर उसके मुखिया डा. अयूब अपनी मुहीम को आगे नहीं ले जा सके और अब वे हाशिये पर पड़े हैं.
यूपी की राजनीती में मोटे तौर पर यह वोट फिलहाल सपा और बसपा के बीच बटा रहता है लेकिन बीते विधानसभा चुनावो के बाद भाजपा ने दावा करना शुरू कर दिया था कि पसमांदा मुसलमानों ने उसे वोट किया है.
अब लोकसभा चुनावो के पहले एपीजे अब्दुल कलाम के जरिये भाजपा पसमांदा मुसलमानों में अपनी पैठ बढ़ाने में जुट गयी है.