व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रम्प और व्लादिमीर जेलेंस्की की बहस के 3 दिन बाद यानी 3 मार्च को अमेरिका ने यूक्रेन की सैन्य मदद रोक दी। यहां तक कि 8.7 हजार करोड़ रुपए के हथियारों को भी रोक दिया, जो यूक्रेन के रास्ते में थे।
यूक्रेन को सैन्य मदद रोके जाने को लेकर फिलहाल अमेरिकी रक्षा विभाग और न ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने कोई टिप्पणी की है।
आखिर ट्रम्प के फैसले से जंग में यूक्रेन पर क्या असर पड़ेगा, रूस को कितना फायदा होगा और कैसे जेलेंस्की सीजफायर को मजबूर हो सकते हैं; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: क्या ट्रम्प ने यूक्रेन की मदद पर हमेशा के लिए रोक लगा दी? जवाब: नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूक्रेन के लिए सैन्य मदद पर हमेशा के लिए रोक नहीं लगाई। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने यूक्रेन को सैन्य सहायता देने पर अस्थायी पाबंदी लगा दी। अगर जेलेंस्की जंग को खत्म करने के लिए बातचीत की कोशिश करते हैं, तब शायद ये रोक हटाई जा सकती है।

जेलेंस्की 28 फरवरी को ट्रम्प से मिलने व्हाइट हाउस पहुंचे थे।
इससे पहले 3 फरवरी यानी सोमवार को ट्रम्प ने चेतावनी दी थी कि वो जेलेंस्की के विद्रोही रवैये को ज्यादा समय तक बर्दाश्त नहीं करेंगे। ट्रम्प ने कहा,
रूस के साथ सीजफायर समझौते के बिना जेलेंस्की लंबे समय तक सत्ता में नहीं टिक पाएंगे।
हालांकि, इस दौरान जब ट्रम्प से यूक्रेन की सैन्य सहायता पर रोक लगाने का सवाल किया, तो उन्होंने कहा, ‘इस बारे में बात नहीं की है। देखते हैं क्या होता है।’ लेकिन इसके कुछ ही देर बाद यूक्रेन की सैन्य सहायता पर रोक लगा दी गई।
ट्रम्प के आदेश के बाद यूक्रेन भेजे जा रहे सभी सैन्य सामान पर रोक लगेगी। इसमें पोलैंड के डिपो में रखे और यूक्रेन पहुंचने के रास्ते में सभी हथियार शामिल हैं। यह रोक तत्काल प्रभाव से लागू हो गई। इससे यूक्रेन को दी जाने वाली 1 अरब डॉलर यानी 8.7 हजार करोड़ रुपए के हथियार और गोला-बारूद संबंधी मदद पर असर पडे़गा।
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस मामले पर बयान जारी करते हुए कहा,
राष्ट्रपति ट्रम्प इस समय दुनिया में इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके पास यूक्रेन में जंग को स्थायी रूप से खत्म करने का मौका है। हम रूस को बातचीत की टेबल पर लाना चाहते हैं। हम यह पता लगाना चाहते हैं कि यहां शांति संभव है।
सवाल-2: यूक्रेन को अमेरिका से अब तक कैसी मदद मिलती रही? जवाब: अमेरिका, यूक्रेन का एक प्रमुख समर्थक रहा है। पिछले 3 साल में अमेरिका ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ संघर्ष में हथियार, गोला-बारूद और वित्तीय सहायता दी है।
कील इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने अक्टूबर 2021 से दिसंबर 2024 के बीच 182.8 बिलियन डॉलर यानी 15.9 लाख करोड़ रुपए की मदद भेजी। अमेरिकी सरकार की एक प्रेस रिलीज के मुताबिक, 20 जनवरी 2025 तक अमेरिका ने यूक्रेन को करीब 6.9 बिलियन डॉलर, यानी 60.2 हजार करोड़ रुपए की सैन्य सहायता दी। वहीं, FMF के जरिए यूक्रेन को 4.65 बिलियन डॉलर यानी 40.6 हजार करोड़ रुपए की मदद मिली है।
सवाल-3: अमेरिका ने अब तक यूक्रेन कौन-कौन से हथियार दिए हैं? जवाब: यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 से 2025 तक 55 मौकों पर अमेरिकी रक्षा विभाग ने यूक्रेन को 27.688 बिलियन डॉलर यानी करीब 2.4 लाख करोड़ रुपए की सैन्य सहायता दी।
अमेरिका ने यूक्रेन को इलेक्ट्रिक डिवाइसेज, हेल्थ फैसिलिटी, केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल, न्यूक्लियर प्रोटेक्टिव इक्विमेंट और ठंड से बचने के तमाम सामनों के साथ कई तरह से मदद की। अमेरिका समेत कुल 50 देश यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। अलग-अलग देशों से यूक्रेन को मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम, आर्टिलरी सिस्टम, 1 लाख आर्टिलरी गोला-बारूद, ढाई लाख एंटी-टैंक इक्विपमेंट्स, टैंक और बख्तरबंद वाहनों समेत कई हथियार दिए।
सवाल-4: क्या यूरोपीय देश, अमेरिका के बराबर यूक्रेन की मदद कर पाएंगे? जवाब: नहीं। अगर अमेरिका पीछे हट गया तो यूरोपीय देश अमेरिका के बराबर यूक्रेन की मदद कर नहीं पाएंगे, क्योंकि उनकी सैन्य ताकत रूस के मुकाबले काफी कम है। सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के वरिष्ठ सलाहकार मार्क कैन्सियन ने मीडिया रिपोर्ट्स में कहा, ‘अमेरिका के मदद रोकने के फैसले से यूक्रेन पर बहुत असर पड़ने वाला है। ट्रम्प के इस फैसले ने एक तरह से यूक्रेन को ‘अपंग’ कर दिया है। अमेरिकी मदद रुकने का मतलब है कि अब यूक्रेन की ताकत आधी हो गई है। इसका असर दो से चार महीने में दिखने लगेगा। फिलहाल यूरोपीय देशों से मिलने वाली सहायता से यूक्रेन कुछ समय तक लड़ाई में बना रहेगा।’
यूक्रेनी अधिकारियों का मानना है कि रूस को रोकने के लिए यूरोपीय देशों को 1 से 2 लाख सैनिकों को यूक्रेन भेजना होगा, लेकिन पश्चिमी देश केवल 30 हजार सैनिक भेजने की योजना बना रहे हैं। यूरोप के पास अमेरिका जैसी एडवांस्ड मिसाइलें, एयर डिफेंस सिस्टम और जासूसी तकनीक नहीं है। हालांकि, यूरोप के नेता यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं। फ्रांस ने यूक्रेन का खुला समर्थन किया है, जबकि डेनमार्क, स्वीडन और बाल्टिक राज्य जैसे देश अमेरिका की मदद के बिना डगमगाते नजर आ रहे हैं। वहीं, स्पेन, इटली और जर्मनी अमेरिका के विरोध में हैं।
2 मार्च को लंदन शिखर सम्मेलन में यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने बैठक की। इसमें सभी व्लादिमीर जेलेंस्की के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने 5 हजार से ज्यादा एयर डिफेंस मिसाइलों की खरीद के लिए 2 बिलियन डॉलर यानी 17.4 हजार करोड़ रुपए की सहायता का ऐलान किया। स्टार्मर ने कहा, यूक्रेन को सैन्य सहायता मिलती रहेगी और रूस पर आर्थिक दबाव जारी रहेगा।

2 मार्च को लंदन शिखर सम्मेलन में यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्ष।
इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस ने अपने रक्षा बजट में 41% बढ़ोतरी की है। अब यह उसकी GDP का 6.7% यानी करीब 13.2 लाख करोड़ रुपए हो गया है। वहीं ब्रिटेन ने 2027 तक रक्षा बजट को सिर्फ 2.5% बढ़ाने का वादा किया है।
सवाल-5: अमेरिकी हथियारों के बिना यूक्रेन जंग में कितने दिनों तक टिक पाएगा? जवाब: JNU के रिटायर्ड प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार ए. के. पाशा का मानना है कि अमेरिकी हथियारों के बिना यूक्रेन 14 दिन भी मुश्किल से टिक पाएगा। जंग के मैदान में यूक्रेन को एडवांस्ड हथियारों की जरूरत है, जो सिर्फ अमेरिका के पास हैं। ऐसे में उसके खुद के हथियार और अन्य यूरोपीय देशों के हथियार कुछ बड़ा कमाल नहीं कर सकते। अमेरिकी हथियारों के बिना रूस के सामने यूक्रेन लाचार देश के अलावा कुछ नहीं।
वहीं, JNU के प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार राजन कुमार का कहना है, ‘अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को आभास था कि डोनाल्ड ट्रम्प सत्ता में आते ही यूक्रेन की मदद पर रोक लगा देंगे। इसलिए वो पहले ही पर्याप्त मात्रा में यूक्रेन को सैन्य मदद दे चुके थे, जो अगले 3 से 4 महीनों तक काफी होगी। यूक्रेन इन हथियारों के दम पर कुछ समय के लिए रूस से लड़ सकता है। इसके बाद यूरोपीय देशों को आगे आकर यूक्रेन को सैन्य मदद पहुंचानी होगी। इसके अलावा यूक्रेन के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है।’

तस्वीर 2022 की है, जब अमेरिका के डेलावेयर एयरफोर्स बेस पर यूक्रेन के लिए हथियारों के जखीरे को भेजने की तैयारी की जा रही थी।
सवाल-6: क्या ट्रम्प के फैसले से रूस-यूक्रेन जंग रुक जाएगी? जवाब: यूक्रेन की सेना अमेरिका से मिले हथियारों, खासकर तोप, ड्रोन और मिसाइल सिस्टम पर बहुत निर्भर रही है। अब यूक्रेन को रूसी हमलों का जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। इससे रूस, यूक्रेन के कुछ और इलाकों पर कब्जा कर सकता है, लेकिन जंग रुकना मुश्किल है।
प्रो. राजन कुमार का कहना है, ‘ट्रम्प के फैसले से रूस-यूक्रेन जंग नहीं रुक सकती। इसके लिए सभी यूरोपीय देशों को भी जंग रुकवाने के समर्थन में बोलना होगा। अमेरिका ने यूक्रेन की मदद बंद कर दी, लेकिन यूरोपीय देश अभी भी यूक्रेन को हथियार भेज रहे हैं। जब तक यूक्रेन को हथियार मिलते रहेंगे, तब तक जंग जारी रहेगी। वहीं, ट्रम्प की पूरी कोशिश है कि जंग रुक जाए, लेकिन वे यूक्रेन पर सिर्फ प्रेशर बना सकते हैं। हालांकि, यूरोपीय देशों का भी मानना है कि अब सीजफायर की स्थिति आ गई है।‘
मार्क कैन्सियन ने कहा,
इस फैसले का मतलब ये है कि यूक्रेन को अब किसी भी हाल में पीस डील को स्वीकार करना पड़ेगा। ट्रम्प प्रशासन यूक्रेन को कमजोर करने के लिए और भी कई तरीके आजमा सकता है।
सवाल-7: तो फिर यूक्रेन की जिस जगह पर रूस ने कब्जा किया, उसका क्या होगा? जवाब: प्रो. ए. के. पाशा ने कहा, ‘ट्रम्प चाहते हैं कि वे नए राष्ट्रपति बने हैं, इसलिए जंग रुकवाकर दुनियाभर में महान बन जाएं। पुतिन यूक्रेन की जमीन पर कब्जा कर चुके हैं, जिन्हें वे किसी हाल में नहीं छोड़ेंगे और जेलेंस्की के पास अपने ही देश में अपनी साख बचाने का रास्ता नहीं बच रहा। ऐसे में जेलेंस्की यह तो कह सकते हैं कि अमेरिका ने हथियार की सप्लाई रोक दी, जिससे जंग रोकनी पड़ी। वे सुरक्षा गांरटी की शर्त को फिर से उठाएंगे। ट्रम्प जंग रुकवाकर महान बन जाएंगे और पुतिन नए इलाकों पर कब्जा जमाकर।’
3 फरवरी को जेलेंस्की ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक वीडियो जारी करके कहा, ‘हम अमेरिका की अहमियत को समझते हैं। ऐसा कोई भी दिन नहीं गुजरा जब हमने अमेरिका का एहसान न माना हो। मुझे उम्मीद है कि यूक्रेन की सुरक्षा गारंटी की मांग सुनी जाएगी। दोनों पक्ष इस पर सहमत होते हैं तो डील पर दस्तखत किए जाएंगे। हमारे साझेदार याद रखें कि इस जंग में हमलावर कौन है।’
प्रो. राजन कुमार का मानना है कि जेलेंस्की यूक्रेन को NATO की सदस्यता दिलवाकर सुरक्षा गारंटी लेना चाहते हैं, लेकिन अमेरिका इससे इनकार करता रहा है। फिलहाल जंग खत्म होने के बाद यूक्रेन के जिन इलाकों पर रूस ने कब्जा किया है वह यूक्रेन को वापस नहीं मिलेंगे।