राजेश माहेश्वरी
पंजाब की हवाओं में अशांति तैरने लगी हे। बीते दिनों ‘वारिस पंजाब दे संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह के समर्थकों द्बारा अजनाला पुलिस थाने पर कब्जा कर लिया गया। जिस तरह सडक पर तलवारों, लाठियों और बंदूकों के साथ सिखों का सैलाब देखा गया और उसने अजनाला पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया, तो लगा कि पंजाब पुलिस बेबस, लाचार और असहाय हो गई है! उसका मनोबल टूट चुका है। पंजाब में बेकाबू हुए हालातों ने देशभर के लोगों का दिल दहला दिया है।
1995 के बाद बाद काफी हद तक खालिस्तानी घटनाएं कम हो गई थीं, जबकि भारत से बाहर खालिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन होते रहे। अब हाल के वषोर्ं में पंजाब में एक बार फिर यह सिर उठा रहा है। खालिस्तान यानी खालसाओं का अलग देश. इस आंदोलन के तार वैसे तो आजादी के 18 साल पहले 1929 में हुए लाहौर अधिवेशन से ही जुड़े हुए हैं, जिसमें शिरोमणि अकाली दल ने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की थी, लेकिन आजादी के बाद जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए तो इस मांग को और हवा मिली। 1947 में ही ‘पंजाबी सूबा आंदोलन शुरू हुआ.।1966 में जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब पंजाब तीन टुकड़ों में बंटा।
सिखों की बहुलता वाला हिस्सा पंजाब, हिंदी भाषियों की बहुलता वाला हिस्सा हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढè बना. इसके बावजूद खालिस्तान की मांग जारी रही. अलग राज्य नहीं, अलग देश की मांग। 8० के दशक में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढèती जा रही थीं। इसके पीछे था, जरनैल सिंह भिंडरावाले, जिसे ‘अपरेशन ब्लू स्टार में मार गिराया गया। वर्तमान में दुबई से लौटा अमृतपाल सिंह ‘दूसरा भिंडरावाला बनने के संकेत दे रहा है। भिंडरावाला ही उसका ‘आदर्श है। उसने खुद को ‘स्वयंभू खालिस्तानी घोषित कर दिया है।
उसने साफ कहा है कि वह ‘भारतीय नहीं है। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनने के बाद से कानून और व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। सिंगर सिद्घू मूसेवाला, डेरा सच्चा सौदा के भक्त से लेकर हिंदूवादी नेता सुधीर सूरी की हत्या की बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। खालिस्तानी तत्व भी लगातार सिर उठा रहे हैं। खालिस्तानी तत्व भी लगातार सिर उठा रहे हैं। ऐसे में अमित शाह की हालात को कंट्रोल से बाहर न जाने देने की बात ये साफ कर रही है कि केंद्र सरकार पंजाब के हालात के प्रति उदासीन नहीं है। खालिस्तानियों ने भी पंजाब में नई सरकार बनने के बाद अपनी गतिविधियां तेज कर दी है जिससे चिंताजनक हालात बन रहे है।
लाकप्रीय पंजाबी गायक और कांग्रेस नेता सिद्घू मूसेवाला की दिन दहाड़े की गई हत्या ने पंजाब सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिया है। गौरतलब है कि सिद्घू मूसेवाला को लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही थी इसके बावजूद मान सरकार ने उनकी सुरक्षा व्यवस्था हटा ली थी। एक दिन पहले ही पंजाब सरकार ने सिद्घू मूसेवाला सहित लगभग 4०० लोगों की सुरक्षा व्यवस्था हटाई थी। वह भी बगैर किसी समीक्षा के। यही नहीं बल्कि वाहवाही लूटने के लिए पंजाब सरकार ने बाकायदा इन चार सौ लोगों के नाम भी सार्वजनिक कर दिए थे कि उनकी सुरक्षा व्यवस्था हटा दी गई है। यही वजह है कि सुरक्षा हटते ही दुर्घटना घट गई। करोड़ों दिलोंं पर राज करने वाले विख्यात पंजाबी गायक सिद्घू मूसेवाला को अपनी जान गंवानी पड़ी।
अमृतपाल ने खुद को ‘वारिस पंजाब दे संगठन का मुखिया भी घोषित कर दिया है। यह संगठन दिवंगत अभिनेता-गायक दीपसिद्घू ने बनाया था। बहरहाल अमृतपाल सिंह और उसके खालिस्तान-समर्थक सिखों, निहंगों ने जिस तरह अपने साथी लवप्रीत तूफान को जेल से रिहा कराया है और उसे तमाम आरोपों से मुक्त भी करना पड़ा है, यह पंजाब में खालिस्तान के दौर की वापसी के संकेत हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिंतित होकर पंजाब पुलिस और गुप्तचर ब्यूरो से रपटें तलब करनी पड़ी हैं। सुरक्षा एजेंसियों की उच्चस्तरीय बैठक भी की गई, जिसके बाद ‘नए भिंडरावाले पर एक डोजियर तैयार किया जा रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई नेताओं और पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के आग्रह किए हैं।
पंजाब में खालिस्तान की भीड़ सडकों पर हथियार लहरा रही थी और मुख्यमंत्री भगवंत मान मुंबई में उद्घव ठाकरे से मुलाकात कर रहे थे। खालिस्तान के ‘नए स्वयंभू ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसा अंजाम भुगतने तक की धमकी दी है। मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी को भी चुनौती दी गई है। बताया जा रहा है कि दुबई में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अमृतपाल सिंह और उसके कुछ साथियों को हथियारबंद ट्रेनिंग दी थी और आगे के अभियान के लिए उन्हें भारत भेजा गया है।
कुछ माह पहले मोहाली में पंजाब पुलिस के खुफिया मुख्यालय में राकेट से किए गए हमले में खालिस्तानी आतंकियों का हाथ था। इसी तरह यह भी किसी से छिपा नहीं कि गायक सिद्घू मूसेवाला की हत्या के बाद विदेश में बैठे खालिस्तानी आतंकी पंजाब के अन्य लोगों को भी धमकियां देने में लगे हुए हैं। कई हिंदू नेताओं को भी धमकियां मिल रही हैं। शिवसेना नेता सुधीर सूरी को भी धमकियां मिल रही थीं। हालांकि उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई थी, लेकिन इसके बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
पंजाब पुलिस के सामने पहले से ही कई चुनौतियां हैं। इनमें से एक पंजाब में नशीले पदाथोर्ं का बढèता चलन है। पंजाब में नशे का जो कारोबार हो रहा है, उसमें भी खालिस्तानी तत्वों का हाथ दिख रहा है। वास्तव में पंजाब में जो कुछ हो रहा है, वह राष्ट्रीय चिंता का विषय बनना चाहिए। चूंकि पंजाब के माहौल को खराब करने में पाकिस्तान, कनाडा के साथ अन्य देशों में बैठे खालिस्तानी तत्वों की भी भूमिका दिख रही है इसलिए केंद्र सरकार को भी सक्रिय होना होगा। यह शुभ संकेत नहीं कि पंजाब में ऐसे तमाम समर्थक बेलगाम होते दिख रहे हैं। इनमें से कुछ तो खुलेआम पंजाब का माहौल खराब करने में जुटे हैं, लेकिन पुलिस उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं कर पा रही है।
पंजाब सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी पुलिस खालिस्तानी तत्वों पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाती हुई दिखे, क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ समय में ऐसे तत्वों की सक्रियता बढèी है। चिंता की बात यह है कि इन तत्वों की अपराधियों से साठगांठ भी कायम हो गई है। अब पंजाब में वहां की पुलिस आम आदमी पार्टी की सरकार के अधीन है लेकिन वहां कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाना तो फिलहाल जल्दबाजी होगी, लेकिन अमृतपाल सिंह की नकेल कसने की कोशिश जरूर की जा सकती है। उसके सोशल मीडिया अकाउंट्स बंद करा दिए गए हैं। दरअसल पंजाब की ‘आम आदमी पार्टी की सरकार को न तो इन खालिस्तानी हरकतों की परवाह है और न ही मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान रणनीतिक सोच या ज्ञान वाले राजनेता हैं। पंजाब में आजकल कई स्तरों पर अराजकता दिख रही है।
किसान और युवा भी आंदोलित होकर सडकों पर हैं। यदि वे और खालिस्तान-समर्थक आपस में मिल गए, तो बेहद चुनौतीपूर्ण ताकत बन सकते हैं। पंजाब सरकार को मंथन करना चाहिए और पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में शांति और व्यव्स्था कामय रहे इसके लिए कारगर कमद उठाना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो पाए।
-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।