आखिर गठबंधन से दूरी क्यों बना रही हैं मायावती? वोट ट्रांसफर पॉलिटिक्स की वजह?

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (BSP) गठबंधन के सहारे ही पहली बार सत्ता में आई। इससे पहले उत्तर प्रदेश में और उसके बाहर भी कई पार्टियों के साथ बसपा ने गठबंधन किया है। कई बार सीटों और वोट प्रतिशत में उसका फायदा भी मिला है। इसके बावजूद मायावती (Mayawati) अब गठबंधन नहीं करना चाहतीं।

आखिर क्या है गठबंधन से दूरी बनाने की वजह? क्यों उनको लगता है कि गठबंधन करने वाली दूसरी पार्टी का वोट बसपा ट्रांसफर नहीं होता और उनका वोट दूसरी पार्टी को ट्रांसफर हो जाता है? या फिर कोई और विकल्प खुले रखना चाहती हैं?

अब तक गठबंधन और नतीजे
इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए अब तक किए गए गठबंधनों पर नजर डालते हैं। बसपा ने सबसे पहले यूपी में 1993 में सपा के साथ गठबंधन किया था। बसपा ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 67 पर जीत हासिल की थी। वहीं सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा और 109 सीटें जीती थीं। दोनों ने मिलकर सरकार बनाई।

यह गठबंधन दो साल ही चला। गठबंधन टूटने के बाद भाजपा के सहयोग से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। उसके बाद 1996 में कांग्रेस के साथ बसपा का गठबंधन हुआ। इसमें बसपा 292 सीटों पर चुनाव लड़ा और सीटों की संख्या 67 ही रही। कांग्रेस ने 126 सीटों पर चुनाव लड़ा और 33 सीटें मिलीं।

बसपा ने उसके बाद से ही यह कहकर चुनाव पूर्व गठबंधन से दूरी बना ली थी कि गठबंधन का फायदा कांग्रेस को ज्यादा हुआ। तब से बसपा ने लंबे समय तक चुनाव पूर्व कोई गठबंधन नहीं किया। बसपा ने 2007 में अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई लेकिन उसके बाद लगातार ग्राफ गिरता गया।

उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद उसने लंबे समय बाद 2019 में सपा से गठबंधन किया। इसमें सपा को 6 और बसपा को 10 सीटें मिलीं। यह गठबंधन भी लंबा नहीं चला। तब भी मायावती ने यही कहा कि सपा का वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुआ।

बसपा ने 2018 में राजस्थान में कांग्रेस से, कर्नाटक में जेडीएस से और छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) से गठबंधन किया। राजस्थान में बसपा के 6 विधायक जीते, कर्नाटक में एक और छत्तीसगढ़ में दो सीटों पर जीत हासिल हुई। हाल ही में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर बसपा ने चुनाव लड़ा और एक सीट पर जीत मिली। दूसरे राज्यों में गठबंधन के बाद गिने-चुने विधायक जीते लेकिन पार्टी छोड़ जाते हैं।

खुला रखा चुनाव बाद का विकल्प
दरअसल, मायावती को लगता है कि चुनाव पूर्व गठबंधन की बजाय परिस्थितियों को देखकर चुनाव बाद विकल्प खुले रखना ज्यादा बेहतर है। मायावती को लगता है कि चुनाव पूर्व गठबंधन में उनका वोट तो दूसरी पार्टी को ट्रांसफर हो जाता है। दूसरी पार्टी का वोट उनको ट्रांसफर नहीं होता।

चुनाव पूर्व गठबंधन करने के बाद अगर सरकार न बनाने की स्थिति बनी तो गठबंधन से दूसरी पार्टी के साथ जाना मुश्किल होता है। अगर पहले गठबंधन नहीं करते तो चुनाव बाद ज्यादा विकल्प रहते हैं। उसमें किसी के भी साथ जाया जा सकता है। यूपी में वह दो बार भाजपा के साथ चुनाव बाद गठबंधन करके सरकार बना भी चुकी हैं और दोनों बार मुख्यमंत्री बनीं।

कांग्रेस की कोशिशों को झटका
मायावती ने गठबंधन न करके विपक्षी एकता की कोशिश में जुटी कांग्रेस को जरूर निराश किया है। राहुल गांधी यात्रा करके सभी दलों को साथ लाने की मुहिम में जुटे हैं। विपक्षी दलों की पिछली बैठकों में भी वह शामिल नहीं हुईं। अब कश्मीर में एक बार फिर राहुल गांधी कई पार्टियों के साथ बैठक करके विपक्षी एकता का संदेश देना चाहते हैं। ऐसे समय में मायावती का गठबंधन से इनकार कांग्रेस के लिए झटका है।

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