आजमगढ़। उत्तर प्रदेश के चुनाव का अब आखिरी पड़ाव बाकी है। सातवें चरण में 9 जिलों की 54 विधानसभा सीटों पर 7 मार्च को वोटिंग होनी है। इन्हीं जिलों में एक जिला है…आजमगढ़। जी हां, वही आजमगढ़ जिसके सांसद सपा के मुखिया अखिलेश यादव हैं। यह सीट उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से ली थी। आजमगढ़ में 10 विधानसभा सीटें हैं। अखिलेश ने जब विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की तो चारों ओर सिर्फ आजमगढ़ से ही चुनाव लड़ने की बात थी। अचानक उन्होंने करहल चुना।
यहां की ग्राउंड रिपोर्ट जानने से पहले ये समझ लीजिए कि 2017 में क्या हुआ था। दरअसल, मोदी की लहर थी। लग रहा था कि सपा का किला भेद लिया जाएगा लेकिन आजमगढ़ की 10 सीटों में भाजपा सिर्फ एक सीट (फूलपुर पवई) जीत पाई और 26 साल के सूखे में हरियाली नहीं हो सकी। बसपा के खाते में 4 सीटें गईं जबकि समाजवादी पार्टी ने 5 सीटें जीतीं।
इन 4 सीटों पर जीती थी बसपा
- मुबारकपुर
- सगड़ी
- दीदारगंज
- लालगंज
इन 5 सीटों पर जीती थी सपा
- आजमगढ़ सदर
- गोपालपुर
- मेहनगर
- अतरौलिया
- निजामाबाद
अब चलते हैं, सीधे आजमगढ़…और जानते हैं 10 सीटों पर क्या है, इस बार का चुनावी माहौल…
चर्चा में हैं ये दो सीटें
आजमगढ़ की 10 सीटों में एक को छोड़कर बाकी सभी में 2017 के चुनाव में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। पिछले चुनाव में रमाकांत यादव के प्रभाव वाली फूलपुर पवई सीट भाजपा के खाते में गई थी। इस सीट से रमाकांत यादव के बेटे अरुणकांत यादव भाजपा के टिकट से लड़े थे।
इस बार खुद रमाकांत यादव इस सीट से लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा के नहीं बल्कि सपा के टिकट से। वहीं, मुबारकपुर सीट 2017 में बसपा के खाते में गई थी। यहां से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को जीत हासिल हुई थी। शाह आलम इस बार भी मैदान में हैं, लेकिन बसपा के टिकट से नहीं बल्कि ओवैसी की पार्टी AIMIM से।
जानते हैं..बारी-बारी से आजमगढ़ की 10 सीटों पर क्या है चुनावी गणित
1. फूलपुर पवई सीटः रमाकांत यादव मैदान में, भाजपा की एक सीट भी छीनने की जुगत
सपा के टिकट पर बाहुबली नेता रमाकांत यादव चुनाव लड़ रहे हैं। ये संयोग है या फिर रणनीति, जिस सीट पर सपा के टिकट पर रमाकांत यादव चुनाव लड़ रहे हैं। उसी सीट पर उनका बेटा अरुण कांत यादव 2017 के चुनाव में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ करके विधानसभा पहुंचा था।
अब, रमाकांत यादव खुल करके कह रहे हैं कि बेटा मेरा है, तो साथ किसका देगा। रमाकांत यादव के सामने भाजपा से रामसूरत राजभर हैं। जबकि, बसपा ने मुस्लिम नेता शकील अहमद को और कांग्रेस ने मोहम्मद शाहिद को टिकट दिया है। 3.04 लाख वोटरों वाले इस सीट पर 58 हजार यादव मतदाता हैं। इसके साथ ही 42 हजार मुस्लिम हैं। 15 हजार ब्राह्मण और 16 हजार क्षत्रिय हैं।
2. लालगंजः 26 साल से भाजपा के लिए सूखा
अनुसूचित बहुलक क्षेत्र लालगंज की मिट्टी लाल होने के बाद भी भाजपा के लिए सूखा है। 26 साल से यहां भाजपा का कमल खिलाने वाला कोई नेता नहीं है। 1996 में अंतिम बार नरेंद्र सिंह ने जीत हासिल की थी। 3.83 लाख वोटरों वाली विधानसभा में 95 हजार अनुसूचित, 45 हजार मुस्लिम, 48 हजार क्षत्रिय, 47 हजार भूमिहार, 15 हजार ब्राह्मण, 48 हजार पासी हैं। इस बार बसपा ने आरी मर्दन, भाजपा ने नीलम सोनकर, सपा ने बेचेई सरोज और कांग्रेस ने पुष्पा भारती को टिकट दिया है।
3. मुबारकपुरः बसपा के लिए मुबारक है मुबारकपुर सीट
आजमगढ़ के 3.17 लाख वोटरों वाली सीट बसपा के लिए काफी मुबारक है। क्योंकि, 1996 से बसपा प्रत्याशी ही जनता का प्रतिनिधित्व विधानसभा में कर रहा है। 65 हजार मुस्लिम वाली इस सीट पर 58 हजार यादव हैं, जबकि, 39 हजार क्षत्रिय हैं। इस सीट पर लगभग 15 हजार वोटर ब्राह्मण हैं। इस बार भाजपा से अरविंद जयसवाल, बसपा से अब्दुल सलाम, सपा से अखिलेश यादव तथा कांग्रेस की तरफ से परवीन चुनाव लड़ रही हैं।
4. निजामाबादः यादव-मुस्लिम मतदाता गठजोड़ से जीत की उम्मीद
निजामाबाद विधानसभा सीट पर जिस प्रत्याशी ने यादव-मुस्लिम गठबंधन की नींव बनाई। वही विधानसभा पहुंचा। 3.03 लाख वोटरों वाले इस सीट पर 62 हजार यादव और 57 हजार मुस्लिम हैं। इसके साथ ही 33 हजार भूमिहार और 19 हजार क्षत्रिय हैं। इसको देखते हुए भाजपा, बसपा और कांग्रेस ने यादव प्रत्याशी पर दांव लगाया है। जबकि, सपा मुस्लिम को चुनाव लड़ा रही है। यहां से भाजपा से मनोज यादव, सपा से आलम बदी, बसपा से पीयूष यादव और कांग्रेस से अनिल यादव चुनाव लड़ रहे हैं।
5. सगड़ीः सपा, बसपा के बाद भाजपा से टिकट
3.27 लाख वोटरों वाली विधानसभा सगड़ी में 2017 में बसपा विधायक वंदना सिंह, अब भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। वंदना सिंह के ससुर राम प्यारे सिंह 1996 में सपा से विधायक थे और सरकार में पर्यावरण मंत्री बनाए गए थे। 2007 में उनके बेटे सर्वेश कुमार सिंह सपा से विधायक चुने गए, जिनकी हत्या कर दी गई। 2017 में स्वेश कुमार की पत्नी ने बसपा के टिकट पर जीत हासिल की। और अब वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। इसके साथ ही सपा ने डॉ. एमएच पटेल, बसपा ने शंकर यादव और कांग्रेस ने राणा खातून का टिकट दिया है।
6. आजमगढ़ सदरः कभी नहीं खिला भाजपा का कमल
आजमगढ़ सदर में 1957 से आज तक कभी भाजपा का कमल नहीं खिला है। 3.75 लाख वोटरों वाले विधानसभा सीट पर 1.20 लाख यादव वोटर हैं। इसके साथ ही 30 हजार मुस्लिम है। यादव और मुस्लिम वोटरों की वजह से दुर्गा प्रसाद यादव ने 8 बार जीत हासिल की, जिसमें पाच बार सपा से चुनाव लड़े हैं। एक बार बसपा के राजबली यादव ने चुनाव जीता है। 1991 और 1993 में राम मंदिर और 2017 में मोदी-योगी के लहर में भाजपा दूसरे स्थान पर रही है। 2022 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने अखिलेश मिश्रा, सपा ने दुर्गा प्रसाद यादव, बसपा ने सुनील कुमार और कांग्रेस ने प्रवीण कुमार को टिकट दिया है।
7. गोपालपुरः यादव निर्णायक भूमिका में
आजमगढ़ की एक मात्र सीट गोपालपुर में यादव निर्णायक भूमिका में हैं। 3.35 लाख वोटर्स वाली इस सीट पर 68 हजार यादव हैं और 42 हजार मुस्लिम। 18 हजार ब्राह्मण और 18 हजार क्षत्रिय हैं। इसके साथ ही अनूसूचित जाति 53 हजार और राजभर 28 हजार हैं। भाजपा ने इस सीट पर सतेंद्र राय को टिकट दिया है। जबकि, सपा ने नफीस अहमद को फिर से साइकिल पर बैठाया है। बसपा ने रमेश यादव और कांग्रेस से शान ए आलम को टिकट दिया है।
8. दीदारगंजः वायदा पूरा करने के लिए दो बार के विधायक का काटा टिकट
राजनीति में वायदे की कोई अहमियत नहीं होती। चुनावी वायदा तो अक्सर नेता भूल जाते हैं। लेकिन, 3.41 लाख वोटरों वाले दीदारगंज सीट पर अखिलेश यादव ने अपने किए वायदे को पूरा करने के लिए एक बार के विधायक का टिकट काट दिया। 2017 में बसपा से विधायक सुखदेव राजभर ने मौत से पहले बेटे के टिकट के लिए अखिलेश यादव को पत्र लिखा था।
जिसके बाद अखिलेश यादव ने दो बार के विधायक आदिल शेख का टिकट काट करके सुखदेव राजभर के बेटे कमलाकांत को साइकिल पर बैठाया है। 85 हजार मुस्लिम वोटरों के साथ ही इस सीट पर 80 हजार अनूसूचित जाति है। इसके साथ ही 43 हजार यादव और 45 हजार राजभर हैं। भाजपा ने इस सीट पर कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा, बसपा ने भूपेंद्र सिंह मुन्ना को टिकट दिया है।
9. मेहनगरः तीन महिलाएं लड़ रहीं चुनाव
3.86 लाख वोटरों वाली मेहनगर सीट पर भाजपा 30 साल से लड़ाई से बाहर है। 1991 में राम मंदिर लहर के दौरान यहां से भाजपा के कल्पनाथ पासवान ने जीत हासिल की थी। 2017 में कल्पनाथ पासवान एक बार फिर से जीते। लेकिन, वह साइकिल पर सवार होकर विधानसभा पहुंचे हैं।
इस सीट पर 38 हजार मुस्लिम और 42 हजार यादव वोटर हैं। इसके साथ ही, 30 हजार क्षत्रिय और 18 हजार ब्राह्मण हैं। भाजपा ने इस सीट से मंजू सरोज, सपा गठबंधन ने पूजा सरोज, बसपा ने पंकज कुमार और कांग्रेस ने निर्मला भारती को प्रत्याशी बनाया है।
10. अतरौलियाः सपा के गढ़ में बसपा-भाजपा की लड़ाई
आजमगढ़ का अतरौलिया विधानसभा सीट सपा का गढ़ माना जाता है। यहां पर सपा के संस्थापक सदस्य रहे बलराम यादव पांच बार विधायक रहे हैं। 2017 में संग्राम यादव ने यहां से जीत हासिल की थी। 3.61 लाख वोटरों वाले इस सीट पर 60 हजार यादव मतदाता हैं। इसके साथ ही 22 हजार मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है।