आटे के दाम करीब 9% बढ़े, नूडल्स से लेकर बिस्कुट तक सब कुछ महंगा

नई दिल्ली। गेहूं के आटे और इसके अन्य उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध आज यानी 12 जुलाई से लागू हो गए हैं। अब जो भी व्यापारी आटा, मैदा, समोलिना (रवा/सिरगी), होलमील आटा और रिजल्टेंट आटा का निर्यात करना चाहते हैं उन्हें इंटर-मिनिस्ट्रियल कमेटी की मंजूरी लेनी होगी। डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (DGFT) ने 6 जुलाई को इसे लेकर नोटिफिकेशन जारी किया था।

इससे पहले 13 मई को सरकार ने गेहूं की कीमतों को कंट्रोल में रखने के लिए एक्सपोर्ट पर रोक लगाई थी। इस रोक के बाद आटा, मैदा और सूजी के एक्सपोर्ट में तेजी आई थी। कॉमर्स मिनिस्ट्री के मुताबिक गेहूं के एक्सपोर्ट पर रोक लगाने के बाद हर महीने लगभग 100,000 टन आटा निर्यात किया जा रहा है, जबकि पिछले फाइनेंशियल ईयर में 500,000 टन आटा निर्यात किया गया था।

इस साल आटे के दाम 8.71% बढ़े
डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स के डेटा के मुताबिक 1 जनवरी 22 को गेहूं का एवरेज प्राइस 28.08 रुपए था जो 11 जुलाई को 7% बढ़कर 30.08 हो गया। वहीं आटा 30.98 रु. से 8.71% बढकर 33.68 रु. हो गया। आटे से बने प्रोडक्ट्स के दाम भी बढ़े हैं। 14 मार्च को नेस्ले इंडिया ने मैगी के छोटे पैक की कीमत 12 रुपए से बढ़ाकर 14 रुपए कर दी थी। वहीं 10 रु. वाले 140 ग्राम के Parle-G बिस्कुट का वजन घटकर अब 110 ग्राम रह गया है।

एक्सपोर्ट बैन और प्राइस
किसी भी सामान के प्राइस का कम और ज्यादा होना डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर किसी चीज की सप्लाई ज्यादा होगी और डिमांड कम तो उस चीज के दाम में गिरावट आ जाएगी। वहीं अगर डिमांड ज्यादा है और सप्लाई कम तो दाम में बढ़ोतरी होगी। रूस-यूक्रेन जंग की वजह से दुनियाभर में गेहूं और आटे की सप्लाई में कमी आई है और दाम बढ़ गए हैं।

ऐसे में भारत में व्यापारी गेहूं और आटे को घरेलू बाजार में बेचने के बजाए अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने पर ज्यादा फोकस कर रहे थे। वहां उन्हें ज्यादा दाम मिल रहे थे। ज्यादा एक्सपोर्ट के कारण भारत में गेहूं और आटे की कमी हो सकती थी जिससे दाम बढ़ने का खतरा था। इसलिए सरकार ने गेहूं और आटे के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाकर दामों को कंट्रोल करने की कोशिश की है।

यहां हम आपको ये भी बता दें कि भारत में आटे से कई सारी चीजें बनाई जाती हैं। रोटी से लेकर बिस्कुट और ब्रेड तक आटे से ही बनते हैं। इसके अलावा शहरी आबादी का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो गेहूं कि जगह सीधे आटा खरीदता है।

रिटेल महंगाई RBI की लिमिट से बाहर
कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) आधारित रिटेल महंगाई दर मई में 7.04% दर्ज की गई थी। एक साल पहले मई 2021 में ये 6.30% थी। यह लगातार पांचवां महीना था, जब महंगाई दर RBI की 6% की ऊपरी लिमिट के पार रही थी। जनवरी 2022 में रिटेल महंगाई दर 6.01%, फरवरी में 6.07%, मार्च में 6.95% और अप्रैल में यह 7.79% दर्ज की गई थी।

महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वह ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।

इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधी शब्दों में कहे तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होती है।

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