इंडिया शब्द पर बहस: ये मेरा इंडिया, ये तेरा इंडिया, आख़िर ये किसका इंडिया?

नई दिल्ली। छब्बीस विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस यानी “इंडिया” (शॉर्ट फ़ॉर्म) क्या रखा, बाक़ी राजनीतिक दलों को दिक़्क़त हो गई। एक व्यक्ति हाईकोर्ट चला गया।

याचिका में कहा- कुछ राजनीतिक दलों ने मिलकर अपना नाम इंडिया रख लिया है। यह इंडिया का अपमान है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि इंडिया राष्ट्रीय प्रतीक यानी एम्ब्लम का हिस्सा है। ऐसे में इसका राजनीतिक इस्तेमाल कैसे हो सकता है? क्योंकि ऐसा करना एम्ब्लम एंड नेम्स एक्ट (प्रिवेंशन ऑफ़ इम्प्रॉपर यूज)- 1950 का उल्लंघन है।

कांग्रेस ने 17-18 जुलाई को बेंगलुरु के ताज वेस्ट एंड होटल में मीटिंग बुलाई थी। इसी मीटिंग के दौरान I.N.D.I.A नाम की घोषणा की गई थी।
कांग्रेस ने 17-18 जुलाई को बेंगलुरु के ताज वेस्ट एंड होटल में मीटिंग बुलाई थी। इसी मीटिंग के दौरान I.N.D.I.A नाम की घोषणा की गई थी।

हालाँकि, कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए इन छब्बीस राजनीतिक दलों से कारण पूछा है, लेकिन एम्ब्लम एक्ट में राजनीतिक उपयोग या इस तरह के किसी शब्द का प्रयोग ही नहीं है। एक्ट के अनुसार कोई भी व्यक्ति या संस्था देश के नाम और उसके कुछ मान्य प्रतीकों का व्यवसायिक उपयोग बिना केंद्र सरकार की अनुमति के नहीं कर सकता।

अब यह कहीं भी स्पष्ट नहीं है कि राजनीतिक दलों द्वारा किए गए या किए जाने वाले काम बिज़नेस या व्यवसायिक हैं या नहीं! वैसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के नाम में भी इंडिया आता है और इसके ख़िलाफ़ भी एम्ब्लम एक्ट के उल्लंघन की याचिका लग चुकी है, लेकिन कोर्ट ने इसे उल्लंघन नहीं माना था और कहा था कि बीसीसीआई कोई ऐसी संस्था नहीं है जो व्यापार या व्यवसाय करती हो। इसलिए इस नाम में एक्ट के तहत कोई आपत्ति नहीं हो सकती।

दरअसल, बाक़ी दलों की दिक़्क़त यह है कि वे इंडिया नामक संगठन पर कोई आरोप कैसे लगाएँगे? क्योंकि इंडिया तो देश का नाम है। मामला उल्टा पड़ सकता है। निश्चित तौर पर छब्बीस राजनीतिक दलों ने भी यह सब सोच-समझ कर ही इंडिया नाम रखा होगा। वे भी चाहते होंगे कि उनके विरोधी दल इस चक्रव्यूह में फँसकर रह जाएँ। कुल मिलाकर इस मामले में कोर्ट में जो बहस होगी, वह बड़ी रोचक होने वाली है।

छब्बीस दल यह कह सकते हैं कि अगर हमारे इंडिया पर प्रतिबंध लगाना चाहते हो तो एक्ट के अनुसार बाक़ी दल भी मानें कि राजनीति उनका व्यापार या व्यवसाय है। जबकि सभी पार्टियाँ तो खुद को सेवाभावी ही बताती हैं।

वे सभी पार्टियाँ अब तक लोगों और देश की सेवा का दावा ही करती रही हैं। अगर इन सब दलों पर व्यापार या व्यवसाय का तमग़ा लग गया तो जिस सेवा के नाम पर ये वोट माँगते फिरते हैं, उसका क्या होगा?

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