नई दिल्ली। कुछ लोग फाइलें हाथ में लिए घर पहुंचते हैं। दरवाजे पर ‘ठक-ठक’ करके दस्तक देते हैं। गेट खुलते ही कहा जाता है- हम ED से हैं, रेड के लिए आए हैं। इसके बाद वारंट दिखाकर घर में मौजूद लोगों से कहते हैं कि काम बंद करें और कार्रवाई में सहयोग दें। उनके फोन जब्त कर लेते हैं।
रेड हाई प्रोफाइल हो, तो फोन पहले ही ट्रैकिंग पर डाल दिया जाता है। छापेमारी शुरू करने के पहले आरोपी से कहा जाता है कि वह टीम की जांच कर सकता है, ताकि बाद में सबूत प्लांट करने का आरोप न लगे। इन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट यानी ED की हर छापेमारी में यही होता है।
ED ने पिछले 8 साल में 3010 छापे मारे हैं। इस पर हमने ED के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सत्येंद्र सिंह और दूसरे अधिकारियों से 4 सवाल पूछे।
- ED का इन्वेस्टिगेशन करने का क्या तरीका है?
- ED को किसी भी घपले की टिप कैसे मिलती है?
- छापेमारी कैसे और किस तैयारी के साथ होती है?
- CBI या दूसरी एजेंसियों से ED कैसे अलग है?
अब सवाल-जवाब से ही पूरी प्रोसेस समझते हैं…
ED की कार्रवाई किन कानूनों के तहत होती है?
अभी ED हाई प्रोफाइल लोगों से जुड़े बंगाल के SSC घोटाले, नेशनल हेराल्ड केस और खनन घोटाले की जांच कर रही है। 2014 से पहले बड़े घोटालों की छानबीन या छापेमारी में CBI ही नजर आती थी। अब यह जगह ED ने ले ली है। ED को जब्ती, केस शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच और तलाशी का अधिकार है।
ED को करप्शन का इनपुट कैसे मिलता है?
PMLA के तहत एक्शन लेने के लिए FIR जरूरी है। इनपुट का पहला सोर्स पुलिस, एंटी करप्शन ब्यूरो या CBI की FIR होती है। इससे ED के केस लेने का आधार बनता है। दूसरी एजेंसी में जांच की जानकारी कोऑर्डिनेशन कमेटी से मिलती है। इसके लिए हर महीने मीटिंग होती है। इसमें एक्शन के इनपुट शेयर होते हैं।
PMLA के तहत फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU) काम करती है। एक लिमिट से ऊपर के ट्रांजैक्शंस में हर बैंक को FIU में डेटा भेजना होता है। एजेंसी सभी डाउटफुल ट्रांजैक्शंस ट्रैक करती है। बैंक सस्पीशियस ट्रांजैक्शन रिपोर्ट (STR) तैयार करते हैं।
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के तहत ED दुनियाभर से संदिग्ध ट्रांजैक्शन की जांच करती है। कुछ गड़बड़ी मिलती है, तो प्राइमरी इन्वेस्टिगेशन कर केस आगे बढ़ाया जाता है। ED खुद भी केस दर्ज कर सकती है।
केस पकड़ में आने के बाद छापेमारी कब होती है?
ED हर केस में छापेमारी करे, ये जरूरी नहीं है। छापे के दौरान आरोपी की निजता का हनन होता है, इसलिए यह फैसला सोच-समझकर लिया जाता है। ED को लगता है कि आरोपी को नोटिस देने से कुछ नहीं मिलेगा या हो सकता है कि वह पूछताछ में बातें छिपा ले, ऐसी स्थिति में छापेमारी की जाती है।
रेड आरोपी के घर या ऑफिस पर हो, ये भी जरूरी नहीं। खबरी और सोर्स से पता लगाया जाता है कि कहां सबसे ज्यादा सबूत मिल सकते है। कई बार मुख्य आरोपी के घर की तलाशी नहीं ली जाती। उसके करीबियों या सहयोगियों के घर तलाशी होती है। कोलकाता में पार्थ चटर्जी के मामले में ED ने पार्थ की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के घर से कैश बरामद किया था।
छापेमारी के लिए प्लानिंग कैसे होती है?
PMLA स्पेशल एक्ट है, जिसमें रेड के पहले ED को मजिस्ट्रेट या कोर्ट से वारंट नहीं लेना पड़ता। ED के अधिकारी वारंट जारी कर सकते हैं। अधिकारी के सामने रिकॉर्ड रखा जाता है। लिखित में बताया जाता है कि छापेमारी क्यों करना चाहते हैं। बिना आधार के छापेमारी का ऑर्डर नहीं दिया जा सकता।
ऐसे ठिकाने छांटकर लिस्ट तैयार होती है, जहां सबूत या संपत्ति हो। छापेमारी से पहले इन ठिकानों का फिजिकल वेरिफिकेशन किया जाता है। कागज पर टीम बनाई जाती है। लोकल पुलिस की मदद लेना है या नहीं, इसका फैसला होता है। कई बार पुलिस की मदद जरूरी होती है, लेकिन शक भी रहता है कि रेड की जानकारी लीक न हो जाए। ऐसे हालात में सेंट्रल फोर्स की मदद ली जाती है।
अगर तय हुआ कि 8 ठिकानों पर रेड करनी है, तो सभी जगह एक ही वक्त पर होती है। इससे जानकारी लीक नहीं होती। रेड वाली जगह पर एंट्री और एग्जिट का ध्यान रखा जाता है, ताकि कोई भाग न सके।
छापेमारी वाली जगह पर क्या होता है?
सभी ठिकानों पर टीमें एक साथ एंट्री करती हैं। 15 मिनट पहले वे जगह के पास जाकर रुक जाती हैं। अगर गेट बंद हो, तो पहले एक मेंबर जाकर उसे खुलवाता है। वारंट जिसके नाम से है, उसे दिखाया जाता है। उससे कहा जाता है कि आप कोई भी चीज इधर-उधर न करें और मोबाइल फोन दे दें। ऐसा इसलिए ताकि कोई डाक्यूमेंट या कैश छिपाया न जाए।
ED को फोन टैपिंग का अधिकार होता है। बड़े केस में पहले से ही टेलीफोन नंबरों की ट्रैकिंग की जाती है। इस दौरान कुछ खास नंबर पर नजर रखी जाती है। इसके बाद टीमें छापेमारी शुरू करती हैं। हर संदिग्ध की जांच की जाती है। अगर डॉक्यूमेंट मिलते हैं, तो उन्हें समझने के लिए भी टीमें होती हैं।
जब्त कैश और संपत्ति का क्या होता है?
पहले ED के बैंक अकाउंट होते थे। उनमें जब्त रकम की FD करवा दी जाती थी। अब 3 साल से सिस्टम बदल गया है। ED की सभी ब्रांच के SBI में पर्सनल डिपॉजिट अकाउंट हैं। रकम इसी अकाउंट में जमा की जाती है। गहनों का वैल्यूएशन मौके पर ही होता है। उन्हें बैंक लॉकर में रखा जाता है। अचल संपत्ति को PMLA के तहत अटैच किया जाता है।
कोर्ट में दावा पेश करने के पहले क्या तैयारी होती है?
जांच के बाद एविडेंस तय कर चार्जशीट बनाई जाती है। ED की इंटरनल लीगल टीम से चर्चा कर उसे कोर्ट में फाइल किया जाता है। केस के कोर्ट में जाते ही स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर्स ED की तरफ से दलील देते हैं।
ED की जांच CBI-NCB से अलग कैसे है?
किसी भी जांच एजेंसी का काम आरोपी के खिलाफ सबूत जुटाना है। ED सबसे ज्यादा PMLA के तहत जांच करती है। इसका काम है मनी ट्रेल को पकड़ना और पता लगाना कि पैसा कहां से कहां गया है। इसकी जांच बहुत मुश्किल होती है। आरोपी फाइनेंशियल सिस्टम की कमियों का फायदा उठाकर मनी लॉन्ड्रिंग करते हैं।
ED का काम अलग तरह का है। सिर्फ कैश की जब्ती दिखाकर वह कुछ नहीं कर सकती। ED को साबित करना होगा कि पैसा अपराध या करप्शन से आया है। फिर एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे व्यक्ति के पास गया और अब चौथे व्यक्ति के पास है। यही चौथा व्यक्ति हमारा आरोपी है।
रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अंडर आती है ED
ED फाइनेंस मिनिस्ट्री के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अंडर आने वाली स्पेशल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी है। इसका हेडक्वार्टर दिल्ली में और रीजनल ऑफिस मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता में है। संजय कुमार मिश्रा अभी इसके डायरेक्टर हैं। ED का काम आर्थिक अपराधों के खिलाफ कार्रवाई और आर्थिक कानूनों को लागू कराना है।
ED का आर्गनाइजेशन स्ट्रक्चर
- डायरेक्टर (ED)
- जॉइंट डायरेक्टर (SOD)
- स्पेशल डायरेक्टर हेड क्वार्टर ऑफिस, 3 जॉइंट डायरेक्टर, 2 DLA
- स्पेशल डायरेक्टर इंटेलिजेंस, 2 जॉइंट डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर HIU, 3 जॉइंट डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर एडज्यूडिकेशन, एक जॉइंट डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर वेस्टर्न रीजन, 6 जॉइंट डायरेक्टर, 3 डिप्टी डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर नॉर्दर्न रीजन, 6 जॉइंट डायरेक्टर, 3 डिप्टी डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर सदर्न रीजन, 5 जॉइंट डायरेक्टर, 4 डिप्टी डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर सेंट्रल रीजन, 5 जॉइंट डायरेक्टर, एक डिप्टी डायरेक्टर
- स्पेशल डायरेक्टर ईस्टर्न रीजन, 5 जॉइंट डायरेक्टर, 7 डिप्टी डायरेक्टर