लेखक: अभिषेक पाण्डेय
अमेरिका और ब्रिटेन ने आशंका जताई है कि रूस-यूक्रेन के खिलाफ केमिकल वेपन यानी केमिकल हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। यूक्रेन ने इस तरह के हमले की आशंका जताते हुए रूस को सावधान किया है कि अगर उसने ऐसा किया तो उसे और कड़े प्रतिबंध का सामना करना पड़ेगा।
रूस ने इसके पहले अमेरिका पर यूक्रेन में केमिकल और बॉयोलॉजिकल हथियार बनाने का आरोप लगाया था। केमिकल हथियारों का इस्तेमाल पहले विश्व युद्ध और उसके बाद कई बार हो चुका है, जिनमें लाखों लोगों की जान जा चुकी है।
चलिए जानते हैं क्या होते हैं केमिकल हथियार? कितने खतरनाक होते हैं? दुनिया में कहां-कहां हो चुका है इनका इस्तेमाल? इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाला नियम क्या है?
क्या होते हैं केमिकल हथियार?
ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस यानी OPCW के मुताबिक, केमिकल हथियार ऐसे हथियार होते हैं, जिनमें जहरीले केमिकल का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को मारने या नुकसान पहुंचाने के लिए होता है।
ऐसे सैन्य उपकरण जो खतरनाक केमिकल को हथियार बना सकते हैं, उन्हें भी केमिकल हथियार या रासायनिक हथियार माना जा सकता है।
केमिकल हथियार इतने घातक होते हैं कि ये पल भर में हजारों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं और साथ ही उन्हें अलग-अलग बीमारियों के प्रभाव से तिल-तिल कर मरने को मजबूर कर सकते हैं।
केमिकल हथियार बायोलॉजिकल हथियार से अलग होते हैं। बायोलॉजिकल हथियार में बैक्टीरिया और वायरस के जरिए लोगों को मारा या बीमार किया जाता है। केमिकल हथियार सामूहिक विनाश के हथियारों की कैटेगरी में आते हैं।
केमिकल वेपन एजेंट्स को जानिए
केमिकल वेपन एजेंट्स यानी CWA ऐसे खतरनाक पदार्थ होते हैं, जिनसे केमिकल हथियार को बनाया जाता है। केमिकल वेपन एजेंट्स से शरीर को नुकसान न केवल युद्ध, बल्कि इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट से भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए 1984 में भोपाल में फॉस्जीन और आइसोसाइनेट जैसे केमिकल से बने मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस लीक होने से हजारों लोगों की जान चली गई थी।
सबसे घातक केमिकल हथियार कौन से हैं?
केमिकल हथियारों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल या गैसों यानी केमिकल वेपन एजेंट्स या तत्वों यानी CWA के आधार पर सबसे घातक केमिकल हथियार को पांच कैटेगरीज में बांट सकते हैं।
नर्व एजेंट: नर्व एजेंट्स को अक्सर नर्व गैस भी कहते हैं। इनसे सबसे घातक केमिकल हथियार बनते हैं। ये शरीर के नर्वस सिस्टम पर असर डालते हैं। स्किन या फेफड़ों के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इसकी छोटी सी डोज कुछ ही सेकेंड में किसी को भी मार सकती है। इनमें सरीन, सोमन, ताबुन और साइक्लोसरीन और VX शामिल हैं।
इनमें सबसे घातक: VX, सरीन और ताबुन
कैसे फैलते हैं: लिक्विड, एयरोसोल, वाष्प और धूल के रूप में
चोकिंग एजेंट: ये घातक केमिकल तत्व श्वसन अंगों पर असर डालते हैं। ये नाक, गले और खासतौर पर फेफड़ों में जलन पैदा करते हैं। ये फेफड़ों के जरिए शरीर में घुसते हैं और इससे फेफड़ों में पानी बनने लगता है, जिससे पीड़ित का दम घुट जाता है। इनमें क्लोरीन, क्लोरोपिक्रिन, डिफोसजीन, फॉस्जीन आदि गैसें शामिल हैं।
इनमें सबसे घातक: फॉस्जीन और क्लोरीन
कैसे फैलते हैं: गैस के रूप में
ब्लड एजेंट: ये घातक केमिकल ब्लड सेल पर असर डालते हैं और शरीर में ऑक्सीजन ट्रांसफर को रोक देते हैं, जिससे व्यक्ति का दम घुट जाता है। ये सांसों के जरिए प्रवेश करते हैं। इनमें हाइड्रोजन साइनाइड, सायनोजेन क्लोराइड और आर्सिन गैसें शामिल हैं।
इनमें सबसे घातक: हाइड्रोजन साइनाइड, आर्सिन
कैसे फैलते हैं: गैस के रूप में
ब्लिस्टरिंग एजेंट: केमिकल हथियारों में इनका सबसे ज्यादा यूज होता है। इनमें सल्फर मस्टर्ड, नाइट्रोजन मस्टर्ड, लेविसाइट और फॉस्जीन ऑक्सीम शामिल हैं। ये स्किन और फेफड़ों के जरिए शरीर में एंट्री करते हैं। ये घातक केमिकल ऑयली पदार्थ होते हैं, जो आंखों, श्वसन अंगों और फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। इससे घातक फफोले पड़ जाते हैं या शरीर में जलने जैसे घाव बन जाते हैं। इससे आदमी अंधा हो सकता है या मौत भी हो सकती है।
इनमें सबसे घातक: सल्फर मस्टर्ड
कैसे फैलते हैं: लिक्विड, एयरोसोल, वाष्प और धूल के रूप में।
रॉयट कंट्रोल एजेंट: ये सबसे कम घातक केमिकल एजेंट्स हैं। इनका यूज आंखों, मुंह, गले, फेफड़े या स्किन में अस्थायी जलन पैदा करने के लिए होता है। आंसू गैस और पेपर स्प्रे इस तरह के हल्के केमिकल हथियार के उदाहरण हैं। ये फेफेड़ों और स्किन के जरिए शरीर में घुसते हैं और इससे आंखों में आंसू आना, आंखों, स्किन, नाक और मुंह में जलन होती है। कई बार इससे सांस लेने में भी दिक्कत होती है। इसका इस्तेमाल भीड़ को नियंत्रित करने में होता है।
आंसू गैस: ब्रोमोएसीटोन, पेपर स्प्रे: कैप्साइसिन
कैसे फैलते हैं: लिक्विड, एयरोसोल के रूप में
केमिकल हथियार के इस्तेमाल की हजारों साल पुरानी घटना
केमिकल हथियारों का सबसे पहले इस्तेमाल 429 ईसा पूर्व में हुआ था। तब प्लाटिया की घेराबंदी दौरान स्पार्टन सैनिकों ने शहर की दीवार के बाहर एक बड़ा लकड़ी का ढेर लगाया और उस पर तारकोल और सल्फर डालकर आग लगा दी थी। इससे नीली लपटें निकलीं और तीखी बदबू पैदा हुई। सल्फर जलाकर स्पार्टन सैनिकों ने जहरीली सल्फर डाई ऑक्साइड गैस रिलीज की, जिससे जल्द ही प्लाटिया के लोग अपनी जगह छोड़कर भाग गए।
पहले और दूसरे विश्व युद्ध में हुआ था इस्तेमाल
- आधुनिक युग में केमिकल हथियारों का सबसे पहले इस्तेमाल पहले विश्व युद्ध के दौरान हुआ था। इस युद्ध में घातक केमिकल गैसों के इस्तेमाल से करीब 1 लाख लोग मारे गए थे।
- जर्मन सेना ने 1915 में बेल्जियम के खिलाफ 168 टन क्लोरीन गैस का इस्तेमाल किया था, जिससे कम से कम 5 हजार सैनिक मारे गए थे।
- पहले विश्व युद्ध के दौरान क्लोरीन, फॉस्जीन और सल्फर मर्स्टड गैसों जैसे केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था।
- पहले विश्व युद्ध में 1 लाख 90 हजार टन केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था, जिनमें से 93 हजार टन क्लोरीन और 36 हजार टन फॉस्जीन थी।
- पहले विश्व युद्ध के दौरान केमिकल हथियार से हुई कुल मौतों में से करीब 80% मौतें फॉस्जीन गैस से हुई थी।
- दूसरे विश्व युद्ध में 1939 में जर्मनी ने पोलैंड के वॉरसा शहर पर कुछ मस्टर्ड गैस बम गिराए थे। इसके अलावा जापान ने चीन के खिलाफ काफी कम मस्टर्ड गैस और लेविसाइट से बने केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया था।
आधुनिक समय में कब हुआ इस्तेमाल?
- पहले विश्व युद्ध के बाद से दो खाड़ी युद्धों (इराक-ईरान युद्धों) सहित, कम से कम 12 लड़ाईयों में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है।
- इराकी सेना ने 1980 के दशक में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान ईरान के खिलाफ केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया था, जिससे कम से कम 50 हजार ईरानी मारे गए थे।
- तानाशाह सद्दाम हुसैन के निर्देश पर 1988 में इराकी सेना ने अपने ही देश के कुर्दों के खिलाफ घातक मस्टर्ड और नर्व एजेंट केमिकल गैसों का इस्तेमाल किया था। करीब एक लाख कुर्दों को मौत के घाट उतार दिया था।
- 2013-17 के दौरान सीरिया के गृह युद्ध में राष्ट्रपति बशर अल असद ने कथित तौर पर रूस की मदद से कई बार अपने देश के विद्रोहियों के खिलाफ केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया है।
- जापान में आतंकियों ने 90 के दशक में सरीन गैस से केमिकल हमला किया था, जिससे 1994 में 7 और 1995 में टोक्यो मेट्रो में इसके हमले से 12 लोगों की मौत हो गई थी।
- यूएन के मुताबिक, सोवियत संघ-अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर के दौरान कम से कम 25 देशों ने केमिकल हथियार बनाने और इकट्ठा करने का काम किया, हालांकि पहले विश्व युद्ध के बाद इनका काफी कम इस्तेमाल हुआ है।
रूस का क्या है केमिकल हथियारों से कनेक्शन?
रूस ने वैसे तो 2017 में ही अपने केमिकल हथियारों को नष्ट करने का दावा किया था। लेकिन, उसके बाद से मॉस्को में हुए दो केमिकल हमलों ने इन दावों को सवालों के घेरे में ला दिया।
- 2018 में रूसी खुफिया एजेंसी के पूर्व जासूस सर्गेई स्क्रिपल को उनकी बेटी के साथ नर्व एजेंट नोविचोक जहर दिया गया था। इसमें कथित तौर पर रूस का हाथ था, हालांकि उसने इसे कभी नहीं माना।
- अगस्त 2020 में पुतिन के प्रमुख विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी को नोविचोक जहर दिया गया था, जिसमें बहुत मुश्किल से उनकी जान बच सकी थी।
- अक्टूबर 2002 में 40 चेचेन्या आतंकियों ने मॉस्को के एक थिएटर में 850 लोगों को बंधक बना लिया था। वे दूसरे चेचेन्या युद्ध के खत्म होने के बाद चेचेन्या से रूसी सेना को हटाने की मांग कर रहे थे।
- रूस ने उनकी मांग ठुकराते हुए उस थिएटर में जहरीली गैस छोड़ी थी, जिससे 40 आतंकियों के साथ ही 130 बंधक भी मारे गए थे। रूस ने ये कभी नहीं बताया कि उसने थिएटर में किस गैस का इस्तेमाल किया था।
केमिकल हथियार पर प्रतिबंध के लिए क्या है कानून, कौन से देश हैं इसमें शामिल?
- जिनेवा प्रोटोकॉल 1925 और जिनेवा प्रोटोकॉल 1949 के जरिए 38 देशों के बीच हुई संधि से केमिकल हथियारों पर प्रतिबंध के साथ ही युद्ध में इन हथियारों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाने के लिए समझौता हुआ था।
- इन संधियों पर हस्ताक्षर के बावजूद सोवियत रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे ताकतवर देशों ने गुप्त तरीके से केमिकल वेपन बनाना जारी रखा।
- केमिकल हथियारों पर बैन लगाने के लिए पहला वैश्विक समझौता 1993 में हुए केमिकल वेपंस कन्वेंशन यानी CWC के तहत हुआ।
- CWC का मसौदा 1992 में तैयार हुआ, 1993 में इसे हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया और अप्रैल 1997 से प्रभावी हुआ।
- इस समझौते से युद्ध में केमिकल हथियारों के यूज, उनके डेवलपमेंट, रखने या उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दी गई थी।
- 2021 तक CWC के 193 सदस्य थे, जिनमें से 165 ने इस पर साइन किए थे।
- भारत, रूस और अमेरिका ने केमिकल हथियारों पर बैन लगाने वाले CWC पर 1993 में साइन किए थे।
- UN के केवल चार देशों-मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान ने CWC पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
- CWC समझौते को लागू कराने के लिए 1997 में ऑर्गेनाइजेश ऑफ प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस यानी OPCW नामक एक अंतर सरकारी संगठन बना था।
- इसका हेडक्वॉर्टर नीदरलैंड के द हेग में है। इसके 193 सदस्य हैं। मिस्र, इजराइल, नॉर्थ कोरिया और साउथ सूडान इससे नहीं जुड़े हैं।
- OPCW का काम केमिकल हथियारों के गैरकानूनी इस्तेमाल की निगरानी करना और उनके प्रसार पर रोक लगाना है। 2000 में हुए एक समझौते के तहत OPCW संयुक्त राष्ट्र संघ को रिपोर्ट करता है।