नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बढ़े तनाव को विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर 1962 के युद्ध के बाद से सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति बता चुके हैं। भारतीय सैन्य बलों के प्रमुख सीडीएस जनरल बिपिन रावत लगातार नाकाम हो रहीं वार्ताओं के बाद सैन्य विकल्प का इस्तेमाल करने के लिए चीन को चेतावनी दे चुके हैं। इन सबके बावजूद चीनी सेना की भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कायम है और पीछे हटने को तैयार नहीं है।
यह स्थिति 58 साल बाद भी नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलओसी) तो दूर वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी) का ही सीमांकन नहीं हो पाया है, जिसका फायदा चीन घुसपैठ करके उठा रहा है। भारत और चीन के बीच विवाद सुलझाने के लिए एक और सैन्य वार्ता करने की तैयारी है। यह वार्ता 4-5 दिनों के भीतर हो सकती है।
चीन से 1962 में मात्र एक माह चले युद्ध के 58 साल बाद यह पहला मौका है जब पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर टकराव के चार माह हो चुके हैं। इस बीच सीमा विवाद का हल निकालने के लिए चीन के साथ 30 से अधिक सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हो चुकी हैं लेकिन समस्या जस की तस दिख रही है। सीमा निर्धारण न होने पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा लेकिन दोनों देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं।
इस लाइन ऑफ़ एक्चुएल कंट्रोल पर कई ग्लेशियर, बर्फ़ के रेगिस्तान, पहाड़ और नदियां पड़ते हैं। पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक एलएसी के साथ लगने वाले कई ऐसे इलाक़े हैं जहां अक्सर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव की ख़बरें आती रहती हैं।
नियंत्रण रेखा का निर्धारण न होने का ही नतीजा है कि आज तक दोनों देशों के सैनिक अंदाजन पेट्रोलिंग करते हैं। एलएसी की पहचान के लिए कुछ दर्रे या नाला जंक्शन हैं जहां कोई अंक नहीं दिया जाता है। जहां कोई प्रमुख विशेषताएं नहीं हैं, वहां पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) के लिए अंक दिए गए हैं। उत्तरी लद्दाख के डेप्सांग प्लेन को छोड़कर, पीपी-10 से पीपी 23 के स्थान दोनों देशों की सेनाओं ने आपसी सहमति से चिह्नित कर रखे हैं, जो चीनियों के गश्ती दल के लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं। इसी तरह यही पीपी भारतीय क्षेत्र के ‘वास्तविक नियंत्रण’ की सीमा के संकेतक के रूप में कार्य करते हैं।
दरअसल सन 1962 के युद्ध के बाद बेहतर बुनियादी ढांचे के कारण भारतीय सैनिकों की पहुंच एलएसी के करीब पहुंच गई है। इसीलिए जब भारतीय गश्ती दल इन पीपीएस का दौरा करते हैं तो चीनी उन्हें देख नहीं पाते हैं। इसलिए भारतीय जवान अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उक्त स्थान पर सिगरेट के पैकेट, खाने के टिन या कोई बड़ा पत्थर भारतीय चिह्नों के रूप में छोड़ देते हैं ताकि इससे चीन को पता चल जाए कि भारतीय सैनिकों ने उस जगह का दौरा किया है और भारत इन क्षेत्रों पर नियंत्रण रखता है। इन पीपीओ की पहचान भारत की हाई पावर्ड कमेटी चाइना स्टडी ग्रुप (सीएसजी) ने तब की थी, जब 1975 से एलएसी पर भारतीय बलों के लिए गश्त की सीमा तय की गई थी।
सरकार ने भी 1993 में इसी अवधारणा को माना और इसी आधार पर सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना के साथ नक्शों पर भी अंकित है। यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) के आधार पर भारतीय सैनिकों को गश्त के लिए सीएसजी द्वारा निर्दिष्ट नहीं किया जाता है बल्कि इसे सेना और आईटीबीपी की सिफारिशों के आधार पर नई दिल्ली में सेना मुख्यालय द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है।
दरअसल पूर्वी लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इन पेट्रोलिंग प्वाइंट्स पर सेना की चौकी (पोस्ट) नहीं हैं जहां सैनिकों की स्थायी ड्यूटी लगाई जाती हो। जिस तरह पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारतीय सेना की चौकियां हैं और सैनिक 24 घंटे अपनी सीमा की निगरानी करते हैं। उसके विपरीत चीन के साथ इस सीमा (एलएसी) पर सेना की मानवयुक्त पोस्ट नहीं है।
पेट्रोलिंग प्वाइंट सिर्फ जमीन पर अस्थायी भौतिक चिह्न हैं, जिनका सेना के लिए कोई रक्षात्मक क्षमता या सामरिक महत्व नहीं है। चूंकि यह कोई अधिकृत पेट्रोलिंग प्वाइंट्स नहीं हैं, इसीलिए इनका दोनों देशों की ओर से मेन्टेनेन्स भी नहीं किया जाता है। साल भर में कई बार या महीने में एकाध बार यह पेट्रोलिंग प्वाइंट बदलते रहते हैं।
पीपी-14 के बाद का इलाका चट्टानी होने की वजह से चीनी सैनिक बमुश्किल इससे आगे आ पाते हैं जबकि यहां तक भारत ने सड़क बना ली है, जिसकी वजह पहुंच आसान हो गई है। यही वजह है चीनियों ने पीपी-14 पर अपना कब्जा जमा लिया और विरोध करने पर 15/16 जून की रात हिंसक झड़प की जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए।
भारत-चीन के बीच स्थायी सीमांकन न होने का फायदा उठाकर चीनी सैनिक पेट्रोलिंग प्वाइंट्स में अपने मनमुताबिक बदलाव करके भारतीय क्षेत्र को भी अपना बताने और एलएसी की यथास्थिति में एकतरफा बदलाव करने की कोशिश करते रहते हैं, जिसका नतीजा भारत-चीन के बीच मौजूदा टकराव के रूप में आज सामने है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सीमा विवाद का स्थायी समाधान निकालने के लिए यही वक्त है जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल-एलएसी) का सीमांकन करके उसे नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल-एलओसी) में बदल दिया जाए ताकि भविष्य में चीनी घुसपैठ के रास्ते बंद हो सकें।