नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुफ्त की सरकारी योजनाओं के खिलाफ अचानक क्यों बोलने लगे हैं जबकि पिछले लोकसभा चुनाव और कम-से-कम छह विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत का श्रेय मुफ्त बांटी जाने वाली चीजें ही रही हैं? दरअसल, फ्री राशन वितरण योजना मोदी सरकार के लिए गले की घंटी बन गई है। पूर्वोत्तर और उत्तरी राज्यों में सूखा तो मध्य और पश्चिमी भारत में अधिक वर्षा से बाजार में गेहूं-चावल और दाल की कीमतें अभी से ही बढ़ने लगी हैं और गरीबों को मिलने वाले राशन की दिक्कत हो रही है।
कुछ माह पहले तक गरीबों को गेहूं और चावल का आवंटन लगभग बराबर किया जाता था। लेकिन सरकारी खरीद काफी कम होने के कारण केन्द्र सरकार ने उन राज्यों में भी चावल बांटना शुरू कर दिया है जहां गेहूं का वितरण ज्यादा होता था। हालात ऐसे बन रहे हैं कि सरकार को सालों बाद गेहूं और चावल का आयात करना पड़े।
दरअसल, साल 2022 का मौसम किसानों को लगातार चुनौतियां दे रहा है। मार्च-अप्रैल की अप्रत्याशित गर्मी से जहां गेहूं सहित रबी की फसलों का नुकसान हुआ, वहीं अप्रैल-मई में बारिश न होने के कारण रबी और खरीफ के बीच में दो महीने वाली जायद फसलें (समर क्रॉप) भी नहीं पनप पाईं और जून से शुरू हुआ मानसून अगस्त का आधे महीना बीतने के बावजद खरीफ की फसलों के लिए नुकसानदायक ज्यादा साबित हो रहा है।
चावल, दलहन, तिलहन, गन्ना, कॉटन, जूट खरीफ की प्रमुख फसलें हैं। सबसे अधिक धान की खेती होती है। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बारिश कम होने के कारण धान की बुआई पर बुरा असर पड़ा है। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 के खरीफ सीजन में 12 अगस्त, 2022 को समाप्त दूसरे सप्ताह तक धान की बुआई 309.79 लाख हेक्टटेयर में हुई है जबकि पिछले साल अगस्त के दूसरे सप्ताह तक 353.62 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो चुकी थी। देश में धान का कुल रकबा लगभग 397 लाख हेक्टेयर है।
यानी पिछले साल अगस्त के दूसरे सप्ताह तक अमूमन 90 फीसदी धान की बुआई हो चुकी थी लेकिन इस साल लगभग 70 प्रतिशत ही बुआई हो पाई है। जुलाई में ही सबसे अधिक धान की फसल लगाई जाती है। इसी महीने सबसे अधिक बारिश होती है और तब फसल अच्छी होती है। ऐसे में, यदि जुलाई के अंतिम सप्ताह में धान की बुआई की जाती है तो धान की उत्पादकता और चावल की क्वालिटी- दोनों प्रभावित होने की आशंका है। देश में चावल उत्पादकता का औसत 2.71 टन प्रति हेक्टेयर है, यानी अगर बुआई के रकबे में वृद्धि नहीं होती है तो लगभग 110 लाख टन चावल का उत्पादन हो सकता है।
रबी सीजन 2021-22 में गेहूं उत्पादन में भी अच्छी-खासी कमी आई है। पिछले साल 10.959 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। इसीलिए इस साल का लक्ष्य 11 करोड़ टन रखा गया था। लेकिन सरकार के 2021-22 के खाद्यान्न उत्पादन के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक, 10.641 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन होगा। लेकिन जानकारों का कहना है कि मार्च-अप्रैल की गर्मी के साथ-साथ किसानों द्वारा गेहूं की बजाय सरसों और अन्य फसलें लगाने के कारण उत्पादन में काफी कमी होने के आसार हैं।
गेहूं के कम उत्पादन के बावजद रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण केन्द्र सरकार के नर्ययात के फैसले के उतावलेपन का असर यह हुआ कि व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ज्यादा कीमत पर किसानों से सीधे गेहूं खरीदने लगे और किसानों ने सरकार को गेहूं नहीं बेचा। सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अलावा गरीबों-जरूरतमंदों को बेहद सस्ती दर पर गेहूं-चावल देने के लिए भारतीय खाद्य निगम और अन्य एजेंसियों के माध्यम से किसानों से एमएसपी पर खरीद करती है।
सरकार ने चालू सीजन में 444 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था लेकिन केवल 187.94 लाख टन ही गेहूं खरीदा जा सका। हालात यह है कि सरकार के पास 31 जुलाई, 2022 तक की स्टॉक की स्थिति के अनुसार, गेहूं 266.45 लाख टन और चावल 279.52 लाख टन था। पिछले साल 31 जुलाई को केन्द्रीय पूल में 855.88 लाख टन गेहूं और चावल था।
गेहूं के उत्पादन में कमी आने पर सरकार ने निर्यात तो बंद कर दिया लेकिन व्यापारियों ने किसानों से गेहूं खरीदना बंद नहीं किया जिससे गेहूं की कीमतें बढ़ने लगी हैं। उपभोक्ता मामलों के विभाग के अंतर्गत काम कर रहे मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ के आंकड़े बताते हैं कि 15 अगस्त, 2022 को गेहूं की कीमत 30.05 रुपये प्रति किलो थी जबकि एक साल पहले 15 अगस्त को यह 25.35 रुपये प्रति किलो थी।
इसी तरह गेहूं के आटे की कीमत भी काफी बढ़ गई है। 15 अगस्त, 2021 को आटे की कीमत 29.61 रुपये प्रति किलो थी जो अब बढ़कर 34.34 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। चावल का भी यही हाल है। 15 अगस्त, 2022 को चावल का थोक मूल्य 3273.04 रुपये प्रति क्वविंटल था जबकि 15 जुलाई को यह 3184.21 रुपये था। एक साल पहले चावल का थोक मूल्य 2952.59 रुपये प्रति क्विंटल था।