इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम के महीने की शुरुआत 8 जुलाई 2024 से हो रही है… वहीं, मुहर्रम के 10वें दिन यानी 17 जुलाई को दुनिया भर में आशूरा मनाया जाएगा…
मुहर्रम गम और मातम का महीना है, जिसे इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है।
यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल या हिजरी सन् का शुरुआती महीना है। इस बार मुहर्रम का महीना 8 जुलाई से शुरू हुआ है।
इस्लाम धर्म के लोगों के लिए यह महीना बहुत अहम होता है, क्योंकि इसी महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे।
उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं, जिसे आशूरा भी कहा जाता है। आइए जानते है इसके बारें में सबकुछ…
कौन थे हजरत इमाम हुसैन?
हजरत इमाम हुसैन पैगंबर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे थे। इमाम हुसैन के वालिद यानी पिता का नाम मोहतरम ‘शेरे-खुदा’ अली था, जो कि पैगंबर साहब के दामाद थे।
इमाम हुसैन की मां बीबी फातिमा थीं। हजरत अली मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक और राजनीतिक मुखिया थे। उन्हें खलीफा बनाया गया था।
कहा जाता है कि हजरत अली के निधन के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे लेकिन मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा कर लिया।
मुआविया के बाद उनके बेटे यजीद ने खिलाफत अपना ली। यजीद क्रूर शासक बना। उसे इमाम हुसैन का डर था। इंसानियत को बचाने के लिए यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन ने कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए।
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
इस्लाम धर्म की मान्यता के मुताबिक, हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे।
उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है। कहा जाता है कि इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह था, जो इंसानियत का दुश्मन था।
यजीद को अल्लाह पर विश्वास नहीं था। यजीद चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उनके खेमे में शामिल हो जाएं। हालांकि बादशाह यजीद ने इमाम हुसैन को गैर इस्लामी एवं मानवता के खिलाफ बातों को मनवानी के लिए मजबूर किया । उसपर।इमाम हुसैन ने विरोध किया । ऐसे में मोहरम की दसवीं को इमाम हुसैन के छह माह के बेटे अली असगर को तीन दिन के भूखे प्यासे शहीद करवा दिया।
कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?
मुहर्रम के 10वें दिन यानी आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है। इमाम हुसैन की इराक में दरगाह है, जिसकी हुबहू नकल कर ताजिया बनाई जाती है।
शिया उलेमा के मुताबिक, मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ताजिया रखी जाती है। इस दिन लोग इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजिया और जुलूस निकालते हैं। हालांकि सबसे खास बात यह है कि ताजिया निकालने की परंपरा सिर्फ शिया समुदाय में ही होती है।
भारत के साथ अन्य देशें में मुहर्रम या आशूरा कब ?
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम के महीने की शुरुआत 7 जुलाई 2024 से हो रही है। वहीं, मुहर्रम के 10वें दिन यानी 17 जुलाई को दुनिया भर में आशूरा मनाया जाएगा।