नई दिल्ली। कांग्रेस जब भी चुनौतियों के गहरे चक्रव्यूह में होती है तो ‘गांधी’ से जुड़ी उसकी मजबूत विरासत ही पार्टी को संकटों के दौर से बाहर निकालती है, और सारे अनुमानों को झुठलाते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में उसकी राष्ट्रीय राजनीति में दमदार वापसी से यह बात फिर साबित हो गई है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस की इस वापसी के असली नायक पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हैं जिन्होंने तमाम हमलों-आक्षेपों को झेलते हुए हाथ में संविधान लेकर भारत की आत्मा को बचाने की अपनी लड़ाई में बाजी मार ली है।
राहुल गांधी की यह उपलब्धि कुछ वैसी ही है जैसी 1996-2004 के बीच गहरे संकटों से जूझती रही कांग्रेस को सोनिया गांधी के करिश्माई नेतृत्व ने उबारा था। कांग्रेस-I.N.D.I.A गठबंधन चुनाव नतीजों में भले बहुमत से दूर रह गया है, मगर अपनी बड़ी नैतिक विजय के साथ राहुल गांधी ने देश में वैकल्पिक राजनीतिक नेतृत्व के चेहरे के रूप में देश की जनता का भरोसा हासिल कर लिया है।
कन्याकुमारी से कश्मीर और मणिपुर से मुंबई की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा के दौरान अर्जित लोगों के विश्वास के सहारे राहुल ने कांग्रेस ही नहीं देश की राजनीतिक को नई दिशा की ओर आगे बढ़ा दिया है। लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तब 2024 के चुनाव को लगभग विपक्ष विहीन करार दिया गया और सत्ताधारी भाजपा के शिखर नेतृत्व की ओर से कांग्रेस का राजनीतिक अस्तित्व मिट जाने तक के दावे किए गए।
हालांकि, इसके बावजूद राहुल गांधी ने अपने हौसले की उड़ान को इन प्रहारों के दबाव में नहीं आने दिया और नरेन्द्र मोदी पर सीधे कड़े राजनीतिक हमले कर विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल दलों में यह भरोसा पैदा किया कि भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सकती है। राहुल गांधी के इस भरोसे का आधार वास्तव में कन्याकुमारी से कश्मीर तक 4000 किलोमीटर की ऐतिहासिक पदयात्रा ने तैयार किया।
इस यात्रा ने राहुल की गंभीर राजनीतिक छवि के नए अक्स से जनता को रूबरू कराया तो कांग्रेस नेता ने भी महंगाई, बेरोजगारी, खेती-किसानी की चुनौतियों से लेकर दलितों-आदिवासियों और विशेषकर युवाओं की बुनियादी मुद्दों को जहां गहराई से समझा। साथ ही लोगों के बीच इस बात का संदेश पहुंचाने में सफल रहे कि कांग्रेस ही इन वर्गों की बुनियादी समस्याओं के समाधान का उचित विकल्प हो सकती है।
पहली यात्रा के बेहतर अनुभवों से सीखते हुए आम चुनावों से पहले मणिपुर से मुंबई की 6500 किमी लंबी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में राहुल ने पीएम मोदी के खिलाफ अपने आक्रामक तेवरों को और धार देते हुए उन्हें कुछ चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों के हितैषी होने का विमर्श भी एक व्यापक जनसमूह तक ले जाने में सफल रहे।
चाहे सत्ता न मिली हो मगर कांग्रेस को इस चुनाव में राहुल गांधी ने जहां ला खड़ा किया है उसकी उम्मीद धुरंधर राजनीतिक पंडितों को भी नहीं थी मगर दोनों यात्राओं में लाखों-लाख आमलोगों से सीधे रूबरू होने के बाद यह भांप लिया था कि जनता के मुद्दे ही पार्टी को संकट के गहरे दौर से बाहर निकाल सकते हैं। इसीलिए कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र को न्याय पत्र का नाम देते हुए उसमें ऐसे ही वादे किए गए जो जनता के मन-मिजाज को छूने वाले रहे।
इसी का परिणाम रहा कि 10 साल की मोदी सरकार की सत्ता के बावजूद कांग्रेस का घोषणापत्र लोकसभा चुनाव के विमर्श की धुरी बना रहा। पीएम मोदी से लेकर भाजपा का संपूर्ण नेतृत्व पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस के घोषणात्र पर ही हमला करता रहा। इस दरम्यान 400 सीटों का आंकड़ा पार कर विपक्ष को मटियामेट करने के भाजपा नेतृत्व के प्रहारों का जवाब देने के लिए राहुल गांधी ने अपने हाथ में संविधान ले लिया। अपनी हर चुनावी सभा में संविधान की प्रति दिखाते हुए राहुल देश के एक व्यापक जनसमूह के बीच संविधान ही नहीं आरक्षण और लोकतंत्र पर खतरा मंडराने का संदेश पहुंचाने में कामयाब रहे।
इसमें कोई संदेह नहीं कि 2024 के चुनाव के राजनीतिक विमर्श की दशा-दिशा का पूरा नियंत्रण राहुल गांधी ने अपने हाथों में मजबूती से थामे रखा और भाजपा ही नहीं पीएम मोदी को इन मुद्दों पर प्रतिक्रियावादी विमर्श से आगे नहीं बढ़ने दिया। लोकतंत्र, संविधान और आरक्षण को खतरा होने के अपने दावों का संदेश पहुंचाने के लिए राहुल ने ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स जैसी जांच एजेंसियों की विपक्षी नेताओं के खिलाफ की जा रही कार्रवाईयों से लेकर राजनीतिक पार्टियों में तोड़फोड़ की भाजपा की रणनीति से जोड़ दिया।
चुनाव के दौरान पीएम मोदी से लेकर भाजपा के छुटभैये नेताओं तक ने राहुल पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने से लेकर बेहद तीखे निजी हमले किए मगर कांग्रेस नेता ने इस पर किसी तरह का विक्टिम कार्ड खेलने से परहेज करते हुए चुनाव को जनता बनाम मोदी की लड़ाई में तब्दील कर दिया। चुनाव परिणामों में कांग्रेस आज जहां खड़ी है वहां से अब उसके लिए भविष्य में देश की सत्ता सियासत की वैकल्पिक धुरी के सारे रास्ते खुल गए हैं और इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि राहुल गांधी ही कांग्रेस के इस राजनीतिक पुनर्जीवन के असली नायक हैं।