कानपुर। साल 1984 का वो दौरा, जब कानपुर शहर दंगों की आग में झुलस रहा था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इस शहर में हुए दंगे के दौरान 127 लोगों की मौत हुई। सैकड़ों की संख्या में परिवार उजड़ गए। दंगों के 36 साल बीत जाने के बाद भी आज कई लोग दंगाईयों पर कार्रवाई और इंसाफ का आस लगाए बैठे हुए हैं।
प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद एक बार फिर से इस मामले में जांच कर रही विशेष जांच दल (SIT) फिर से एक्टिव दिख रही है। बीते मंगलवार को कानपुर के एक घर का ताला तोड़कर SIT ने मानव अवशेषों सहित कुछ पुख्ता सबूत एकत्रित किए।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर के गोविंद नगर इलाके में नवंबर 1984 में कारोबारी तेज प्रताप सिंह (45) और उनके बेटे सतपाल सिंह (22) की घर में हत्या करके शव को जला दिया गया था। परिवार के जो अन्य सदस्य बचे थे, वे पहले एक शरणार्थी शिविर में गए और फिर घर बेचकर पंजाब व दिल्ली चले गए।
नया मालिकका परिवार आज तक कभी भी उन दो कमरों में नहीं गया जहां हत्याएं हुईं थी। तेज प्रताप सिंह की पत्नी, दूसरे बेटे और बहू के शहर छोड़ने के बाद कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या, लूट, डैकती की आईपीसी की कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
दंगों के चश्मदीद की मौजूदगी में एसआईटी मंगलवार को फोरेंसिक विशेषज्ञों के साथ तेज सिंह के पुराने घर में दाखिल हुई। पुलिस अधीक्षक और एसआईटी सदस्य बालेंदु भूषण ने बताया कि क्योंकि अपराध स्थल के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी। इसलिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) के अधिकारियों को बुलाया। जांच में ये पाया गया है कि हत्याएं इसी स्थान पर हुई थी।