नई दिल्ली। एक तरफ कांग्रेस के उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर में पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने का संकल्प लिया है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के भीतर ही कुछ नेता अपनी सियासी दुकान बचाने के लिए शकुनि और माहिल की भूमिका निभाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
एक तरफ जब उदयपुर में पार्टी चिंतन शिविर के जरिए एकजुटता का संदेश दे रही थी उसी समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ के कांग्रेस छोड़ने से शिविर की चमक पर ग्रहण लग गया। शिविर का खुमार अभी खत्म भी नहीं हुआ कि गुजरात में हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को नमस्ते कर दिया और सुनील जाखड़ ने भाजपा का पटका पहन लिया।
वहीं दूसरी तरफ अभी भी एक दूसरे की टांग खींचने का सिलसिला रुक नहीं रहा है। यहां तक कि भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति से लोहा लेने के लिए राहुल गांधी ने जिस हिंदूवादी राजनीति की तरफ जाने की घोषणा की थी, कांग्रेस में उसका एकमात्र चेहरा माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम तक इस टांग खिंचाई में फंस गए हैं। उनकी हालत उस योद्धा की तरह हो गई है जो अपनों के ही द्वारा रचे चक्रव्यूह में फंस गया है।
हार्दिक पटेल ने जो आरोप गुजरात प्रदेश कांग्रेस के नेताओं पर लगाए या सुनील जाखड़ ने जिस तरह पंजाब प्रदेश कांग्रेस के नेताओं और एक वरिष्ठ केंद्रीय नेता को कठघरे में खड़ा किया है, कुछ वैसी ही कहानी उस उत्तर प्रदेश में दोहराई जा रही है जहां पिछले करीब 32 सालों से लगातार कांग्रेस सिकुड़ती और सिमटती चली गई और इसी साल हुए विधानसभा चुनावों में महज दो सीटों और दो फीसदी वोटों तक सिमट गई है।
यह तब हुआ जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और उनकी टीम ने विधानसभा चुनावों में जी तोड़ मेहनत की और जनता से जुड़े महंगाई, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, किसानों के दमन, दलित उत्पीड़न समेत कई मुद्दे पुरजोर तरीके से उठाए।
प्रियंका ने लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे के साथ सांप्रदायिक और जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति की काट के लिए लैंगिक न्याय की राजनीति को आगे रखा। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस को अपेक्षित सफलता मिलना तो दूर वह अपनी पुरानी स्थिति भी बचाए नहीं रख सकी।
इसलिए अब उत्तर प्रदेश जो लोकसभा चुनावों की दृष्टि से भी देश का सबसे बड़ा और अहम राज्य है, में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने को लेकर पार्टी नेतृत्व राज्य इकाई की कमान किसी ऐसे चेहरे को देने की सोच रहा है जो न सिर्फ कांग्रेस के आचार विचार और संगठन की सीढ़ियों से गुजरता हुआ राजनीति में आया हो बल्कि जो भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे का मुकाबला भी सफलतापूर्वक कर सके और जिसकी मुस्लिमों में भी स्वीकार्यता हो।
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, इस कसौटी पर पार्टी नेतृत्व जिन कुछ नामों पर विचार कर रहा है उनमें रामपुर खास से विधायक आराधना मिश्रा जो वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी की पुत्री हैं, वाराणसी से पूर्व सांसद राजेश मिश्रा और दो बार कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम के नाम प्रमुख हैं। इसके अलावा एक राय किसी दलित को प्रदेश ईकाई की कमान देकर बसपा से छिटक रहे दलितों को कांग्रेस के साथ फिर से जोड़ने का प्रयोग करने की भी है।
इस लिहाज से अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष पीएल पूनिया का नाम भी लिया जा रहा है। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में पिछले तीस सालों में हर तरह के प्रयोग कर चुकी कांग्रेस में काफी तेजी से यह राय जोर पकड़ रही है कि अगर भाजपा के हिंदुत्व की धार को उत्तर प्रदेश में कमजोर कर दिया जाए तो उसका असर पूरे देश में पड़ेगा।
इसलिए एक बार आचार्य प्रमोद कृष्णम को भी आजमा लेना चाहिए। कांग्रेस महासचिव और प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम ने उदयपुर के चिंतन शिविर में राजनीतिक मामलों के समूह में भाषण देते हुए कहा कि पूरी कांग्रेस राहुल जी को अध्यक्ष बनाना चाहती है और मैं भी यही चाहता हूं।
लेकिन अगर किसी कारणवश राहुल जी नहीं बनना चाहते हैं तो प्रियंका जी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए। साथ ही उन्होंने यह सवाल भी किया या तो मुझे कोई दूसरा चेहरा बताइए जो प्रियंका जी से ज्यादा स्वीकार्य हो।प्रमोद कृष्णम जब ये बोल रहे थे तब वहां सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तीनों ही मौजूद थे।
आचार्य प्रमोद कृष्णम के इस बयान से जहां एक तरफ कई कांग्रेसी जो प्रियंका में ज्यादा संभावनाएं देखते हैं, खुश हुए तो वहीं दूसरी तरफ उनके विरोधी खेमे ने यह प्रचार भी शुरू कर दिया कि आचार्य प्रमोद कृष्णम पार्टी के शीर्ष परिवार में मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए उनके बयान के सिर्फ उस हिस्से का प्रचार किया जा रहा है जिसमें उन्होंने प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग की है। हालांकि एक चर्चा यह भी है कि प्रमोद कृष्णम के बयान से प्रियंका गांधी भी खासी असहज हैं।
उधर प्रमोद कृष्णम उत्तर प्रदेश में वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह के झगड़े में कूद पड़े। उन्होंने वाराणसी के मामले में कहा कि अदालत का फैसला सबको मानना चाहिए। इस तरह उन्होंने अदालत द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश को सही ठहरा दिया। जबकि कांग्रेस इस मुद्दे पर खामोश है। उसका कोई अधिकारिक बयान नहीं आया।
वहीं मथुरा के मामले में भी प्रमोद कृष्णम ने कहा कि भाजपा सरकार मथुरा में ईदगाह, ताजमहल और कुतुब मीनार हिंदुओं को सौंपे। आचार्य के इन बयानों से कांग्रेस के तमाम नेता बेहद असहज हैं। हालांकि कांग्रेस ने अधिकारिक रूप से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
लेकिन उनके विरोधियों ने इसे भी उनके खिलाफ मुद्दा बनाकर यह कहना शुरू कर दिया कि प्रमोद कृष्णम भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं। जबकि प्रमोद कृष्णम के करीबियों का कहना है कि वह इस तरह की मांग बढ़-चढ़ कर भाजपा की केंद्र और प्रदेश सरकार को चुनौती देकर भाजपा के हिंदुत्व की धार कमजोर कर रहे हैं।
उनके एक करीबी का यह भी कहना है कि आचार्य जो भी कर रहे हैं उसके लिए वह नेतृत्व को विश्वास में ले चुके हैं। इसलिए अभी तक उनके बयानों का कांग्रेस की तरफ से कोई खंडन नहीं हुआ है और आचार्य प्रमोद कृष्णम न सिर्फ काशी, मथुरा, ताजमहल, कुतुब मीनार पर बोल रहे हैं बल्कि उन्होंने दीपेंद्र हुड्डा के साथ अयोध्या जाकर हनुमान गढ़ी के साथ-साथ श्रीराम जन्मभूमि स्थल जाकर रामलला के भी दर्शन किए और आशीर्वाद लिया।
उनका यह कदम उन कांग्रेसियों को दुविधा में डाल रहा है जो अयोध्या विवाद के दौरान लगातार मंदिर आंदोलनकारियों पर हमलावर रहते थे।लेकिन प्रमोद कृष्णम इस मामले में पूछने पर कहते हैं कि वह मुस्लिम राजनीति के दिग्गज सपा नेता मोहम्मद आजम खान से भी मिलने सीतापुर जेल जा चुके हैं। उनके लिए मुद्दा अहम है न कि हिंदू-मुस्लिम।
अब कांग्रेस में आचार्य प्रमोद जो भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति के मुकाबले उस हिंदूवादी राजनीति का चेहरा बन गए हैं जिसे राहुल गांधी ने जयपुर की रैली में उदघोषित किया था। लेकिन बाकी कांग्रेसी नेताओं ने उसे आगे नहीं बढ़ाया। आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं कि वो वही कर रहे हैं जो उनके नेता राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्ववादियों का फर्क करते हुए कहा था।