नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह अचानक लेह पहुंचकर हर किसी को चौंका दिया। उनके इस दौरे को चीन और दुनिया को मैसेज देने के तौर पर देखा जा रहा है। इस दौरे के कूटनीतिक और राजनीतिक मायने क्या हैं? इससे क्या चीन सीमा पर तनाव और बढ़ेगा? चीन और दुनिया को इससे क्या संदेश जाएगा? इस पूरे मसले पर हमने विदेश मामलों के जानकार हर्ष वी पंत से बातचीत की।
कूटनीतिक मायने
यह साफ है कि भारत सरकार इस पूरे मामले में चीन को अंडर स्कोर कर रही है। सरकार यह बताना चाह रही है कि यह विवाद एकतरफा चीन ने पैदा किया है। वह जमीन कल भी हिंदुस्तान के पास थी, आज भी है। हमारे प्रधानमंत्री वहां जा सकते हैं।
- प्रधानमंत्री मोदी खुद वहां जाकर यह बता रहे हैं कि भारत अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। वे चीन को संदेश दे रहे हैं कि भारत अपनी एक इंच जमीन नहीं छोड़ेगा, पूरा लद्दाख भारत का है।
- प्रधानमंत्री का वहां जाना, इस बात को भी बताता है कि टॉप लेवल लीडरशिप इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रही है। सरकार यह भी बता रही है कि दोनों देशों के बीच भले ही बातचीत चल रही है, लेकिन यह विवाद चीन की वजह से है।
दुनिया को संदेश
- प्रधानमंत्री यह भी बता रहे हैं कि भारत पूरी तरह से उस जमीन पर कब्जा बनाए रखने में सक्षम है। यह मैसेज सिर्फ चीन के लिए ही नहीं, उन देशों के लिए भी है, जो इस कन्फ्यूजन में हों कि आखिर यह मुद्दा क्या है। भारत का स्टैंड क्या है।
- इस दौरे से दुनिया को यह पूरी तरह से पता चल गया कि यह भारत का इलाका है, जहां न सिर्फ सेना खड़ी है, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री भी मौजूद हैं।
आगे चीन का रवैया क्या हो सकता है
- चीन बार-बार यही करता रहा है कि जब भी अरुणाचल प्रदेश में चुनाव होते हैं या प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री वहां जाते हैं, तो वो एक बयान जारी कर देता है कि यह ठीक नहीं है। लेकिन यहां चीन यह भी नहीं बोल सकता है कि प्रधानमंत्री लेह क्यों आए हैं।
- चीन अपने माउथपीस मीडिया के जरिए यही कहेगा कि इस मुद्दे पर भारत में कितनी घबराहट है। भारत बौखला गया है। प्रधानमंत्री को खुद जाना पड़ रहा है। चीन किसी डिप्लोमैटिक स्टैंड की स्थिति में नहीं है।
गलवान के बाद भारत की डिप्लोमेसी
- भारत ने चीन को यह साफ बता दिया है कि तुम हमारी सीमा को क्रॉस नहीं कर सकते हो। तुम हमारी जमीन की ओर देख भी नहीं सकते हो। वहीं, चीन पर बहुत प्रेशर में है। उस पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध हैं। कोरोना को लेकर दुनिया उसे घेर रही है। वहां इंटरनल पॉलिटिक्स भी चल रही है।
- भारत अपनी डिप्लोमेटिक रणनीति को साधने में सफल हुआ है। भारत ने हाल ही में यूनाइटेड नेशंस में हांगकांग का मुद्दा उठाया है। भारत की रूस के साथ कल वार्ता हुई, इसमें रक्षा डील भी हुई है। अमेरिका खुलकर भारत के पक्ष में बोल रहा है।
- चीन को मैसेज जा रहा है कि भारत न सिर्फ खुद खड़े होने सक्षम है, बल्कि दूसरे देश भी उसके साथ खड़े हैं। चीन से जो खफा देश हैं, वह भारत के साथ आ रहे हैं। बीच वाले देश जैसे रूस भी भारत के साथ आया है। चीन के पास कोई ऐसा देश नहीं है, जो उसके साथ खड़ा हो।
प्रधानमंत्री मोदी की स्ट्रैटेजी
- भारत चीन को डिप्लोमेटिक तौर से अलग-थलग करने में सफल रहा है। पिछले कुछ दिनों से यह चर्चा है कि प्रधानमंत्री ने चीन का एक बार भी नाम नहीं लिया है। लेकिन उन्होंने चीन का नाम न लेकर सबकुछ किया है।
- इस मुद्दे को मीडिया और विपक्ष भी लगातार उठा रहा है। अभी भारत की तरफ से वो सबकुछ हो रहा है, जो चीन को टारगेट करके किया जा रहा है। चीन भी समझ गया है कि भारत की ओर से क्या किया जा रहा है। यह सब एक अच्छी रणनीति के तहत हो रहा है।
- यह समझी हुई पहल है, क्योंकि डिप्लोमेसी में सिम्बोलिजम बहुत अहम होता है। प्रधानमंत्री का यह दौरा सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाने के लिए है। हमारे दूसरे सहयोगी देशों को भी मैसेज जाएगा कि भारतीय प्रधानमंत्री यह बता दे रहे हैं कि कौन सा इलाका भारत का है और भारत उसके लिए कैसे खड़ा होगा।
प्रधानमंत्री के दौरे के राजनीतिक मायने
- यह प्रधानमंत्री का स्टाइल है। वे चौंकाते रहते हैं, रक्षामंत्री तो बाकी डिप्लोमेटिक इंगेजमेंट कर ही रहे हैं। यहां प्रधानमंत्री का जाना ज्यादा जरूरी था। चीन के साथ उन्होंने विपक्ष को भी जवाब दिया है। वो विपक्ष को भी बता रहे हैं कि सबकुछ सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है।
- प्रधानमंत्री यदि वहां जाते हैं, तो दो चीजें बता रहे हैं कि इस मुद्दे पर देश कितना गंभीर है। दूसरा यह है कि भारत अपने हितों के लिए खड़ा होगा। यदि चीन को यह लग रहा होगा कि भारत पीछे हट जाएगा, तो यह नहीं होगा।
दोनों देशों के बीच अब आगे का रास्ता
- भारत और चीन के पास लड़ाई की वजह नहीं है। लेकिन चीन और भारत ने जिस तरह से वहां मिलेट्री बिल्टअप किया है। इसका कोई शॉर्टकट नहीं है। दोनों सेनाएं वहां लंबे समय के लिए हैं। दोनों सेनाओं ने वहां इंफ्रास्ट्रक्चर बना लिया है। यह विवाद तो ठंड के मौसम तक चल सकता है।
- अभी तक दोनों पक्षों ने ऐसा कोई कदम भी नहीं उठाया है। चीन ने भी कोई कदम नहीं उठाया है। जिससे लगे कि तनाव कम होगा। चीन, भारत की एलएसी की बात भी नहीं मान रहा है। हां, भारत और चीन लड़ाई भी नहीं चाहते हैं।
- भारत, चीन को ट्रेड मुद्दे पर दिखा रहा है कि यह बहुत गंभीर मामला है। भारत ने पूरी तरह से ट्रेड न बंद करते हुए भी साफ मैसेज दिया है कि हम आर्थिक नुकसान को भी अफोर्ड करने की स्थिति में हैं।
- भारत ने चीन के सामने यह बात रखी है कि सीमा विवाद का कोई हल निकलना चाहिए, नहीं तो क्राइसिस बढ़ सकती है। पहले यह होता था कि सीमा विवाद चलता रहे, लेकिन बाकी काम न रुके। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
- भारत ने इस बार सारी जिम्मेदारी चीन पर डाल दी है। यदि चीन हमारे साथ संबंध सुधारना चाहता है तो उसे कदम उठाना होगा। नहीं तो इससे दरार और ही बढ़ेगी।
गलवान के बाद दुनिया में भारत की स्थिति
- दुनिया में चीन बहुत ही अलग-थलग पड़ा हुआ है। हिंदुस्तान की यह समस्या ऐसे वक्त में आई है, जब चीन अन्य मुद्दों पर घिरा हुआ है। ऑस्ट्रेलिया से लेकर जापान, वियतनाम, यूरोप, अमेरिका तक हर कोई चीन को समस्या बता रहा है। हांगकांग, ताइवान, दक्षिण चीन सागर की भी समस्या बनी हुई है।
- रूस को चीन की बहुत जरूरत है, इसके बावजूद रूस ने भारत के साथ स्पेशल रिलेशनशिप बढ़ाने की बात कही है। हमारे साथ वो मिलेट्री स्ट्रेंथन की भी बात कर रहा है। चीन के मुकाबले ग्लोबली भारत की डिप्लोमेटिक पोजिशन बहुत मजबूत है। इस मुद्दे पर भारत के नजरिए पर दुनिया चीन की तुलना में ज्यादा यकीन कर रही है।