केंद्रीय नेताओं की उम्मीदवारी और पीएम की रैलियों से भी नहीं चल पा रही ‘हवा’

नई दिल्ली। अगर सांसदों को विधानसभा चुनावों के मैदान में उतारा जा रहा है, तो क्या मान लें कि अब विधायकों को पंचायत चुनाव लड़ना पड़ेगा…यह सवाल मध्य प्रदेश बीजेपी के ही एक नेता  का है। इस नेता ने तो यहां तक कह दिया, “आखिर सभी सांसदों को ही मैदान में क्यों नहीं उतार देते?”

इस बयान में व्यंग्य भी है और वह छिपी हुई घबराहट भी जो मध्य प्रदेश चुनाव के लिए बीजेपी की दूसरी सूची जारी होने बाद सामने आ गई है। इस नेता ने इतना भर और कहा, “सूची में शामिल सभी नेताओं को मेरी शुभकामनाएं हैं…”

बीजेपी ने 25 सितंबर को मध्य प्रदेश चुनाव के लिए उम्मीदवारों की जो दूसरी सूची जारी की है उमें तीन केंद्रीय मंत्री, चार वर्तमान सांसद और एक राष्ट्रीय महासचिव शामिल हैं। इस सूची के जरिए पार्टी में गुटबाजी रोकना मकसद था तो वह तो होता दिखता नहीं है। इस सूची के बाद पार्टी में असंतोष पनपता हुआ साफ नजर आ रहा है। बीजेपी नेताओं के बयान भी इसकी पुष्टि करते हैं। इसी दौरान एक ऑडियो वायरल हुआ है जिसमें कथित तौर पर सीधी से बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला कह रहे हैं कि मौजूदा सांसद रीति पाठक रिकॉर्ड  वोटों सो हारेंगे। शुक्ला का टिकट कट गया है और उनकी जगह रीति पाठक को उतारा गया है।

इसी तरह बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का वीडियो भी खूब वायरल हुआ है जिसमें वे कह रहे हैं, “एक प्रतिशत भी चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी, हम तो बड़े हो गए हैं, जनसभा में आओ, भाषण दो और निकल लो..अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है कि टिकट मिल गया है और मैं उम्मीदवार बन गया हूं…।” बता दें कि विजयवर्गीय के बेटे आकाश अभी विधायक हैं, और लगता है उनका टिकट कट गया है।

और भी नेता हैं जिनका इतना कुछ तो दांव पर नहीं है जितना विजयवर्गीय का, लेकिन वे भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से खुश नजर नहीं आ रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसे नेता जो राज्य से 10-20 साल से बाहर हैं, उन्हें वापस राज्य में भेजना अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि इन नेताओं को स्थानीय मुद्दे तो पता ही नहीं है। कुछ को तो इसमें एक साजिश भी नजर आती है, जो इस सबके पीछे एक खास गुट का हाथ मानते हैं।

हालांकि केंद्रीय बीजेपी में इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया है। एक धड़े का तर्क है कि राज्य से केंद्रीय नेताओं को मैदान में उतारने से पार्टी का प्रचार अभियान मजबूत होगा क्योंकि सांसदों के पास अधिक धन और जनबल होगा। उनकी मौजूदगी और प्रचार का असर आसपास के कई निर्वाचन क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। वहीं कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि यह ‘दिल्ली जोड़ी’ का एक और ‘मास्टरस्ट्रोक’ है, और राज्य में भारी भरकम उम्मीदवारों ने कांग्रेस को हैरान कर दिया है।

कुछ बीजेपी पर्यवेक्षक मानते हैं कि 2022 के गुजरात चुनाव से पहले वहां भी पार्टी में नाटकीय फेरबदल किया गया था, वैसा ही यहां किया गया है। वहां बीजेपी ने न सिर्फ मुख्यमंत्र विजय रूपाणी को किनारे लगा दिया था, बल्कि उनकी पूरी कैबिनेट भी हाशिए पर आ गई थी। इसी संदर्भ में मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक भविष्य को लेकर कयास लगने लगे हैं। बीजेपी कार्यकर्ताओं में यह चर्चा आम है कि प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी जनसभाओं में एक बार भी शिवराज का नाम नहीं लिया, जबकि वह मंच पर ही मौजूद थे।

लेकिन वह धड़ा जो इसे सही रणनीति मानता है, उसका कहना है कि दूसरी सूची में जिन 79 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए हैं, उनमें से सिर्फ सीटें ही बीजेपी ने 2018 के चुनाव में जीती थीं। ऐसे में इन सीटों पर कद्दावर उम्मीदवार उतारने से बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होगी, बल्कि फायदा अधिक होगा। इसके अलावा अगर बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो उसके पास ऐसे चेहरे भी होंगे जिन्हें शिवराज की जगह मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। बता दें कि दूसरी सूची में बीजेपी ने इन सीटों पर अपने तीनों मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है।

दूसरी सूची में जिन केंद्रीय नेताओं के नाम हैं उनमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, ग्रामीण विकास राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के नाम हैं। तोमर 2014 से ही मोदी मंत्रिमंडल में है और 2009 से लोकसभा सांसद हैं। प्रहलाद पटेल पांच बार से लोकसभा में हैं। कुलस्ते भी 1996 से लोकसभा में और फिर दो साल से राज्यसभा में हैं। प्रहलाद पटेल को मौजूदा विधायक को हटाकर नरसिंहपुर से उम्मीदवार बनाया गया है। मौजूदा विधायक प्रहलाद पटेल के छोटे भाई हैं। कुलस्ते को अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट निवास टिकट दिया गया है जबकि तोमर को मोरैना की डिमनी सीट से उतारा गया है। डिमनी सीट को कांग्रेस ने 2018 और फिर बाद में 2020 में हुए उपचुनाव में जीता था।

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि यही रणनीति राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी अपनाई जा सकती है। इन दोनों राज्यों के लिए भी केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के नाम हवा में हैं।

जिन चार सांसदों को टिकट दिया गया है, वे भी काफी वरिष्ठ हैं। इनमें राकेश सिंह 2014 से 2020 के बीच मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं और जबलपुर से चार बार सांसद हैं। गणेश सिंह सतना से चार बार जीत चुके हैं। रीति पाठक दो बार सांसद रहे हैं और 2019 का चुनाव उन्होंने रिकॉर्ड वोटों से जीता था। इसके अलावा होशंगाबाद से तीन बार सांसद उदय प्रताप को भी टिकट दिया गया है।

राजनीतिक विश्लेष गिरिजाशंकर अग्रवाल कहते हैं कि चूंकि इस चुनाव में बहुत अधिक बड़े मुद्दे नहीं हैं, ऐसे में इस तरह के टिकट बंटवारे का काफी असर होगा। उनका मानना है कि बीजेपी को वोट तो अधिक मिलेंगे, लेकिन सीटें 2018 के कांग्रेस के मुकाबले कम ही मिलने की संभावना है।

बीजेपी द्वारा दूसरी सूची जारी होने के कुछ ही घंटों बाद दो बीजेपी नेताओं राजेश मिश्रा और रत्नाकर चतुर्वेदी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। मिश्रा जनसंघ के समय से ही बीजेपी  से जुड़े थे और उन्होंने सीधी जिला अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था, जबकि चतुर्वेदी बीजेपी की युवा शाखा – भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता इस पर चुटकी लेते हैं। उन्होंने कहा, ‘जब हालात कठिन हो जाते हैं तो हेवीवेट की जरूरत होती है। स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री और उनकी कल्याणकारी योजनाएं लोगों को ज्यादा नहीं लुभा नहीं रही हैं।’

वरिष्ठ राजनीति विश्लेषक एन के सिंह का भी मानना है कि विजयवर्गीय के बयान से साफ है कि टिकट बंटवारे में न तो मुख्यमंत्री शिवराज की चली है और न ही मध्य प्रदेश बीजेपी नेतृत्व की। वे कहते हैं, “साफ है कि अमित शाह के ही हाथ में पूरी कमान है।”

पूरे मामले पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अपेक्षा के मुताबिक ही हैं। कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा कि बीजेपी ने मतदान से पहले ही हार मान ली है। एक अन्य कांग्रेस नेता ने कहा कि केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारना दर्शाता है कि बीजेपी को केवल चुनाव जीतने की चिंता है, शासन की नहीं, क्योंकि तीन केंद्रीय मंत्रियों में से कोई भी अगले दो महीनों तक अपने मंत्रालयों में ज्यादा समय नहीं दे पाएगा।

कांग्रेस ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की पूर्व नेता मोनिका भाटी को छिंदवाड़ा की अमरवाड़ा सीट से टिकट दिए जाने पर निशाना साधा है। कांग्रेस का आरोप है कि मोनिका और उनके पिता मनमोहन शाह भाटी पर सार्वजनिक तौर पर रामायण की प्रतियां जलाने और रावण का मंदिर स्थापित करने का आरोप है। कमलनाथ के सलाहकार पीयूष बबेले ने कहा है कि बीजेपी तो सनातन धर्म की बात करती है, लेकिन इस मुद्दे पर उसकी पोल खुल गई है।

इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी की अनगिनत जनसभाओं से भी मध्य प्रदेश बीजेपी में एक किस्म की बेचैनी सी है। अपने भाषणों में वे हर बार कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। हाल की जनसभा में तो उन्होंने अपने 51 मिनट के भाषण में 44 बार कांग्रेस का नाम लिया और कहा कि मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य बनाने के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। लेकिन वे भूल रहे हैं कि बीते 20 साल से (बीच के सिर्फ 15 महीने छोड़कर) बीजेपी के ही हाथ में मध्य प्रदेश की बागडोर है। इनमें से भी बीते लगभग दस साल से दो केंद्र और राज्य में डबल इंजिन सरकार है।

बीजेपी के कुछ अंदरूनी सूत्र अनमने तरीके से ही सही, लेकिन इस बात से सहमत हैं कि प्रधानमंत्री की जनसभाओं के बावजूद अभी तक बीजेपी के पक्ष में ‘हवा’ नहीं बनी है। हालांकि कुछ आशावादियों को उम्मीद है कि लहर पैदा होगी, बस कुछ देर है।

वैसे मध्य प्रदेश में ‘हवा’ चल तो रही है, फर्क इतना है कि यह बीजेपी के पक्ष में नहीं है।

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