केजरीवाल के राजदार हैं सिसोदिया, अगर हुआ कोई राज…

नई दिल्ली। कभी कभी कुछ दिन भी काफी ज्यादा लगते हैं। बहुत भारी पड़ते हैं। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद से अरविद केजरीवाल भी ऐसी ही चिता से गुजर रहे होंगे। करीब नौ महीने तो सत्येंद्र जैन को भी जेल गये होने को आये, तभी तो मनीष सिसोदिया के साथ रहते अरविद केजरीवाल ने उनको मंत्री बनाये रखा – जैसे अपने चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो रहे, सत्येंद्र जैन का भी नाम चलता रहा।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल की राजनीति के लिए सत्येंद्र जैन का जेल जाना भी बहुत बड़ा झटका रहा, लेकिन तब मनीष सिसोदिया ने सब ऐसे संभाल लिया था, जैसे कुछ हुआ ही न हो – और वो बेफिक्र होकर चुनावी मुहिम चलाते रहे।

लेकिन ये तो है ही कि मनीष सिसोदिया के बगैर अरविद केजरीवाल के लिए रूटीन का कामकाज ही नहीं राजनीतिक लड़ाई भी काफी मुश्किल होगी – और अगर कानूनी या किसी राजनीतिक तरीके से मनीष सिसोदिया को जल्दी बाहर नहीं ला सके तो 2०24 के सपने तो शेप लेने से पहले ही बिखर जाएंगे।

मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी की आशंका तो अरविद केजरीवाल और उनके सारे साथी तभी से जताने लगे थे जिस दिन पहली बार सीबीआई की टीम के छापे पड़े थे – और यही वजह रही कि जिस रणनीति पर आम राय बनी थी, मनीष सिसोदिया खुद भी बार बार गिरफ्तारी की आशंका जताते आ रहे थे। कल तक केजरीवाल और सिसोदिया की जोड़ी खुद को छोड़ कर देश के सारे ही नेताओं को भ्रष्ट बताती रही, आज दोनों के सामने खुद को ही पाक साफ साबित करने की चुनौती आ खड़ी हुई है – और ये शायद केजरीवाल और सिसोदिया को अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाये रखने के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

जो केजरीवाल कल तक घूम घूम कर जोर शोर से बताया करते थे कि संसद में बैठे सारे ही डकैत और बलात्कारी हैं। जो केजरीवाल किसी पर भी भ्रष्ट होने की तोहमत मढ़ दिया करते थे। जो केजरीवाल खुद को देश का सबसे इमानदार मुख्यमंत्री होने का सर्टिफिकेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले होने का दावा करते रहे – राजनीति में आये कुछ ही साल होने के बाद ये नहीं समझ पा रहे हैं कि अपने साथियों पर लगे आरोपों से उनका कैसे बचाव करें तो कैसे करें? राजनीति में सिर्फ खुद को बेगुनाह ही साबित नहीं करना होता, परफॉर्म भी करना होता है।

वरना, कब सीन से गायब हो जाएंगे किसी को भनक तक नहीं लगेगी – फिलहाल अरविद केजरीवाल के सामने ये भी एक चैलेंज है कि वो लोगों की नजरों में बने रहें, नजरों से उतर जाने का खतरा भी अभी सबसे ज्यादा है। अरविद केजरीवाल की मुश्किल ये है कि मनीष सिसोदिया, सिर्फ साथ ही काम नहीं करते थे। सिर्फ साये की तरह हर सुख दुख में मौजूद ही नहीं रहते थे।

सिर्फ अरविद केजरीवाल के हिस्से की प्रशासनिक जिम्मेदारियां ही नहीं संभालते थे – वो तमाम मामलों में सलाहकार भी होते हैं। अच्छे बुरे फैसलों में साथ साथ रणनीतिकार भी रहे हैं। और हां, सबसे बड़ी बात अरविद केजरीवाल के सबसे बड़े राजदार भी रहे हैं। और वो ऐसे भी नहीं हैं कि जांच एजेंसी के सामने किसी पेशेवर आरोपी की तरह सारे टॉर्चर के बावजूद छुपा लें अगर वास्तव में कुछ छिपाने को है तो?

अगर ऐसी कोई चीज नहीं है जो छिपाने के लिए है, जैसा कि मनीष सिसोदिया का लगातार दावा रहा है – तो भी राजनीतिक रूप से कोई अहम बात निकल गयी तो वो अरविद केजरीवाल के लिए मुश्किल वाली हो सकती है। साल दर साल बीतते गये, और मनीष सिसोदिया बिलकुल किसी हमसफर की तरह अरविद केजरीवाल के साथ बने रहे, लेकिन कुछ देर के लिए उसमें ब्रेक का वक्त आ गया है और भले ही वो बोल कर गये हों कि जल्दी ही लौटेंगे, लेकिन ये तय करने वाला तो कोई और ही है।

ये जल्दी भी हो सकता है, और लंबा वक्त भी लग सकता है। अरविद केजरीवाल के लिए मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की अलग अलग अहमियत है, लेकिन दोनों में बहुत बड़ा फर्क भी है – क्योंकि दोनों ही अलग अलग तरीके से अरविद केजरीवाल के सहयोगी रहे हैं, और बड़े ही मजबूत खंभे की तरह बगैर कुछ सोच विचार या सवाल के चुपचाप पीछे खड़े रहे हैं।

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