नई दिल्ली। पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी पार्टियां यहां जीत के लिए जोर आजमाइश कर रही हैं। साल 2017 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली छोटी सी आम आदमी पार्टी राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। लेकिन चुनावी राजनीति में जो पहला इप्रेशन अंतिम इंप्रेशन नहीं होता। कहानियां बदलती हैं, फिसड्डियों का उद्भव होता है। जैसे-जैसे कैंपेन बढ़ता है नेताओं की पहचान भी बड़ी बनती जाती है।
घट गई ‘कैप्टन’ की चमक
यह साल 2017 था जब पंजाब में आम आदमी पार्टी ने लंबा सफर तय किया और कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ दिया। उस वक्त कांग्रेस के ‘कैप्टन’ अमरिंदर सिंह थे,जिनकी राजनीतिक चमक नवजोत सिंह सिद्धू के आने के बाद काफी बढ़ी थी। दुर्भाग्यवश ये ज्यादा वक्त तक नहीं टिक सका। नोबल पुरस्कार विजेता टोनी मॉरिसन ने लिखा है – अच्छी चीजें अंत तक नहीं रहती अगर लोग धोखा करने लगे, लोग छोड़ दें और लोग मर जाएं तो। सिद्धू ने चरणजीत सिंह चन्नी को केप्टन के प्रतिद्वंदी के तौर पर खड़ा किया।
‘केजरीवाल नू’ कैंपेन से बढ़ी आप की चमक
शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिला लिया और अब अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ हैं। हाल के कुछ सालों में आम आदमी पार्टी ने अपनी रैंक राज्य में गवाई है यानी पार्टी की चमक कम हुई है। पंजाब विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के लिए सभी पार्टियां जोर लगा रही हैं।
लेकिन आम आदमी पार्टी की ‘एक मौका केजरीवाल नू’ कैंपेन ने पार्टी में कुछ जान फूंकी है। इस कैंपेन की गूंजा राज्य के तीनों क्षेत्रों माझा, मालवा और दोआब में सुनाई दे रही है। बता दें कि माझा में राज्य की 24 विधानसभा सीटे हैं। वहीं माल्वा में 67 और दाओबा में 26 सीटे हैं।
गुटबाजी में फंसी चन्नी सरकार
कांग्रेस ने राज्य को पहला दलित मुख्यमंत्री दिया है। राज्य में अभी पार्टी जितनी ज्यादा गुटबंदी से गुजर रही है उतना पहले कभी नहीं हुआ। पार्टी के अंदर ही अपना प्रभुत्व जमाने के लिए चन्नी के नेतृत्व के बीच राज्य के पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, गृहमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ तथा प्रताप बाजवा के बीच गुबंदी सभी ने देखी।
चन्नी को लाकर 32 फीसदी दलित आबादी के बीच जो सम्मान पार्टी ने हासिल किया था उसे वो तेजी से गंवा रही है। बजाए इसके कि पार्टी नए सीएम को आप के खिलाफ मजबूत करे। एक-दूसरे पर मीडिया में आरोप लगा कर वो विरोधियों को मौका दे रहे हैं। केजरीवाल इस मौके का फायदा उठा रहे हैं और दिल्ली में अपने किये गये कामों को बता रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं गिल्ली-डंडा नहीं खेलता मैं स्कूल खोलता हूं, मैं मोहल्लों में क्लीनिक चलाता हूं।’
आप गिना रही अच्छे काम
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आम आदमी पार्टी लुधियाना से लेकर गुरदासपुर, जालंधर और अमृतसर इन सभी जगहों पर अपने दिल्ली में किये गये विकास कार्यों को लगातार गिना रही है और जनता से कह रही है कि आपने दूसरों को मौका दिया और अब एक बार आम आदमी पार्टी को मौका दें।
जालंधर के नजदीक करतारपुर के बीच अकाली दल के कट्टर समर्थक बिकेर सिंह आप की तरफ आकर्षित होते नजर आए। उनकी तरह कई अन्य लोग और एक ऑटो रिक्शा चालक आशु शर्मा ने कहा कि केजरीवाल की पार्टी को एक मौका देना बनता है। हालांकि, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि केजरीवाल किसे सीएम के चेहरे के तौर पर पेश करते हैं।
सीएम चेहरा कौन होगा?
कहा जा रहा है मालवा के संगरुर से पार्टी के सांसद भगवत मान का नाम भी सीएम की रेस में आगे चल रहा है। इसके अलावा इस रेस में माल्वा के किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल का नाम भी शामिल है। स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक सुनील रुद्रा वोट परसेंन्टेज के मामले में आम आदमी पार्टी को कांग्रेस से ज्यादा अंक देते हैं। भगवत मान आम आदमी पार्टी में अच्छा रूतबा रखते हैं और पार्टी के वो बेहतरीन वक्ता भी माने जाते हैं। लेकिन एक दलित नेता चन्नी के खिलाफ उन्हें लाना एक जुए की तरह है।
14 दिसंबर को एक रैली में अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल ने विरोधियों पर जमकर निसाना साधा था और यह बता दिया था कि वो इस चुनाव में अपने विरोधियों के खिलाफ आक्रमक रुख अपनाएंगे। अमृतसर के एक कांग्रेसी मानते हैं कि ड्रग्स केसों को हैंडल करने में हम नाकाम रहे जिसकी वजह से शिरोमणि अकाली दल इतनी आक्रामक हो गई है। उनकी चिंता शहरी हिंदुओं को लेकर भी है जिन्होंने साल 2017 में कांग्रेस को वोट दिया लेकिन इस बार वो बीजेपी की तरफ जा सकते हैं।