केजरीवाल सरकार पर बरसा सुप्रीम कोर्ट, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तामिलनाडु को भी नोटिस जारी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोनावायरस के मरीजों के इलाज और इससे हो रही मौतों में शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों पर शुक्रवार को सुनवाई की। 3 जजों की बेंच ने फटकार लगाई कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में शवों की किसी को परवाह नहीं है। न तो परिजन को जानकारी दी जा रही है और न ही उन्हें अंतिम संस्कार में शामिल किया जा रहा है। आखिर ये क्या हो रहा है? अदालत ने कहा है कि दिल्ली में और उनके अस्पतालों में बहुत बुरा हाल है। होम मिनिस्ट्री की गाइडलाइंस का अनुपालन नहीं हो रहा है। अस्पताल डेड बॉडी का सही तरह से रखरखाव और निपटारा नहीं कर रही है।

मौत के बाद परिजनों को सूचना नहीं- SC
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यहां तक कि कोरोना मरीज की मौत के बाद उनके परिजनों को इस बारे में सूचना देने की भी जहमत नहीं उठाई जा रही है। कई ऐसे मामले दिखे हैं जिनमें परिजन अपनों की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार तक में शामिल नहीं हो पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एलएनजेपी अस्पताल की स्थिति को गंभीरता से लिया है और उसे भी जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

डेड बॉडी के साथ ये किस तरह का व्यवहार- SC
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार जिस तरह से मरीजनों का अस्पतालों में इलाज कर रही है और जिस तरह से डेड बॉडी के साथ व्यवहार हो रहा है उस पर फटकार लगाते हुए कहा है कि दिल्ली में जो स्थिति है वह भयानक व डरावनी है। अदालत ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि अस्पतालों में हर जगह बॉडी फैली हुई है और लोगों का वहां इलाज चल रहा है।

बेड खाली हैं लेकिन मरीजों को देखने वाला कोई नहीं- SC
अदालत ने कहा कि दिल्ली में 2000 बेड खाली हैं लेकिन मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है। अदालत ने उन विडियो का जिक्र किया जिसमें मरीज रो रहे हैं और कोई उन्हें देखने वाला नहीं है। अदालत ने कहा कि ये बहुत ही दुखदाई स्थिति है। अदालत ने कहा कि ये सवाल है कि दिल्ली सरकार कोरोना टेस्ट को कम कर रही है। अदालत ने कहा कि क्या सरकार बनावटी फिगर चाहती है। कैसे टेस्ट को कम किया गया? राज्य की ड्यूटी है कि वह टेस्टिंग को बढ़ाए।

महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तामिलनाडु को भी नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तामिलनाडु को भी नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में इन राज्यों के चीफ सेक्रेटरी से कहा है कि वह मरीजों के मैनेजमेंट के बारे में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें। अगली सुनवाई बुधवार को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कोरोना मरीजों की मौत के बाद उनके डेड बॉडी के रखरखाव के बारे में चिंता जाहिर करते हुए मामले में स्वयं संज्ञान लिया था।

पूर्व मंत्री ने लिखा था पत्र

कुछ मीडिया रिपोर्ट, साथ ही पूर्व कानून मंत्री और वकील अश्विनी कुमार के एक पत्र में आरोप लगाया गया था कि कोरोना संक्रमितों का ठीक से इलाज नहीं किया जा रहा। इसके अलावा इस महामारी से जान गंवाने वालों के शवों का गरिमापूर्ण तरीके से अंतिम संस्कार भी नहीं किया जा रहा।

अश्विनी कुमार ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे को पत्र भेजकर नोटिस लेने का आग्रह किया था। उन्होंने पत्र में मध्यप्रदेश में एक मरीज के शव को जंजीरों से बांधकर रखने और कुछ जगहों पर अस्पतालों में मरीजों के शव एक-दूसरे पर रखने की घटना का हवाला दिया। पत्र में सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार के नागरिक अधिकार का भी जिक्र किया। चीफ जस्टिस ने यह केस जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली बेंच को भेजा। इसमें जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमआर शाह भी शामिल हैं।

मजदूरों के मामले में भी नोटिस लिया था
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के मामले में भी नोटिस लिया था। अदालत ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को 15 दिन में मजदूरों को उनके घर भेजने का आदेश दिया था।

चेन्नई के शेल्टर होम में संक्रमण के मामले में भी नोटिस लिया
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के एक शेल्टर होम में 35 बच्चों के कोरोना संक्रमित होने पर भी नोटिस लिया है और राज्य सरकार से पूछा है कि वह बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही है।

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