नई दिल्ली। कहते हैं डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप है। लेकिन जब भगवान को परखने की बारी कोरोना में आई तो भगवान ही यमराज बन बैठा है। हालात यह है कि अगर आपके पास स्वास्थ्य बीमा है तो आपका इलाज बाद में होगा। अगर आपके पास नकदी है तो आपका इलाज पहले होगा। यही नहीं, आपको इसके लिए भारी भरकम बिल देने के लिए तैयार रहना होगा। वह भी तब, जब कोरोना की दवा भी नहीं आई है।
पड़ताल में चौंकाने वाले मामले सामने आए
भास्कर ने इस संबंध में कई राज्यों की सरकारों द्वारा तय रेट, जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के तय रेट्स और मरीजों के साथ अस्पतालों की बिलों की पड़ताल की। पड़ताल में बहुत ही चौंकानेवाले तथ्य सामने आए हैं। कई अस्पतालों ने मरीजों को सीधे-सीधे कह दिया कि इंश्योरेंस है तो आप बाद में आइए। नकदी वालों को पहले भरती किया जाता है। यही नहीं, आपके पास कैश भी है तो पहले डिपॉजिट जमा करिए और फिर आपको भरती होने से पहले ही रोजाना का 15-20 यहां तक कि 35 हजार रुपए का बिल बता दिया जाता है ताकि आप उसके लिए तैयार रहें।
हम पहले आपको बता रहे हैं कि जीआई काउंसिल का नियम क्या है?
जीआई काउंसिल यानी देश की सभी जनरल इंश्योरेंस कंपनियों की काउंसिल है। यह काउंसिल अस्पतालों के मनमाने रवैये पर रोक लगाती है। हाल में कोरोना में जब भारी भरकम वसूली की बात अस्पतालों की सामने आई तो जीआई काउंसिल ने इसकी एक राशि तय की। इसके मुताबिक जीआई काउंसिल ने कहा कि नीति आयोग पैनल की जो सिफारिश है उसी आधार पर यह रेट तय किए जा रहे हैं।
जीआई काउंसिल के ये हैं रेट
जीआई काउंसिल ने जो रेट तय किए उसमें सपोर्टिव केयर और ऑक्सीजन के साथ आइसोलेशन बे्ड्स का प्रति दिन का चार्ज 10 हजार रुपए होगा। इसमें पीपीई किट भी होगा जो 1,200 रुपए का होगा। दूसरे मामले में आईसीयू का चार्ज 15 हजार रुपए तय हुआ जिसमें वेंटिलेटर नहीं होगा। इसमें पीपीई किट 2000 रुपए की होगी। तीसरी कैटेगरी आईसीयू की बनी जिसमें वेंटिलेटर के साथ 18 हजार रुपए प्रति दिन चार्ज होगा। इसमें पीपीई किट 2,000 रुपए की होगी।
यह दरें एनएबीएच अस्पतालों की हैं। जो अस्पताल एनएबीएच नहीं हैं उनकी दरें इसी क्रम में 8 हजार, 13 हजार और 15 हजार रुपए तय की गई।
शहरों के आधार पर तय हैं अस्पतालों की दरें
इसमें भी शहर के आधार पर दरें हैं। जैसे कोई सी लेवल का शहर है तो वहां पर प्रतिदिन के चार्ज कम से कम 4,875 रुपए होने चाहिए। अधिकतम में यह चार्ज 7313 रुपए हो सकता है। जीआई काउंसिल ने मेट्रोपोलिटन शहरों में बस दिल्ली एनसीआर, मुंबई एमएमआर, कोलकाता एमएमआर और चेन्नई एमएमआर को रखा है। बाकी सब मेट्रोपोलिटन के दायरे से बाहर के शहर हैं।
कोई भी अस्पताल 15 हजार रोजाना से ज्यादा बिल नहीं लगा सकता है
यानी जीआई काउंसिल की दरों के मुताबिक कोई भी अस्पताल 15 हजार रुपए प्रतिदिन से ज्यादा का चार्ज नहीं ले सकता है। अस्पताल की जो फिलहाल दरें हैं वह जनरल काउंसिल की तय दरों की तुलना में 70 से 108 प्रतिशत ज्यादा हैं। एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ने देश में 6 अस्पतालों के आंकड़ों को जुटाया है। इसमें नारायणा हेल्थ बंगलुरू, मेडिका सुपर स्पेशियालिटी कोलकाता और भगत चंद्र हॉस्पिटल दिल्ली का समावेश है।
जीआई काउंसिल और अस्पतालों की दरों में अंतर
जीआई काउंसिल और अस्पतालों की दरों में बहुत ज्यादा अंतर पाया गया है। उदाहरण के तौर पर ऑक्सीजन के साथ आइसोलेशन बेड के लिए प्रति दिन 10 हजार रुपए की सीमा तय की गई है। जबकि हॉस्पिटल एसोसिएशन का अनुमान है कि यह 21,932 रुपए प्रति दिन लिया जा रहा है। बीमा कंपनियां इसी आधार पर रोजाना 18 हजार रुपए आईसीयू के लिए तय की हैं। जबकि हॉस्पिटल बॉडी ने इसके लिए 37,358 रुपए तय किया है।
अब राज्य सरकारों की तय दरों को देखें-
कर्नाटक में सरकार ने आयुष्मान भारत के तहत जनरल वार्ड की दर 5,200 से 25 हजार रुपए जबकि अन्य बीमा और कैश पेमेंट के लिए 10 हजार रुपए तय किया है। ऑक्सीजन के साथ यह दर 7 हजार रुपए और 12 हजार रुपए है। इसी तरह आईसीयू के लिए 8,500 और 15 हजार रुपए तय किया गया है। आइसोलेशन आईसीयू वेंटिलेटर के साथ यह दर 10 हजार और 25 हजार रुपए है।
हरियाणा में 13 से15 हजार रुपए तय
हरियाणा में सरकार ने अस्पतालों का बिल 13 हजार से 15 हजार रुपए आईसीयू के लिए तय किया है। हालांकि इसमें वेंटिलेटर नहीं है। वेंटिलेटर के साथ आईसीयू बेड का चार्ज 15 हजार से 18 हजार रुपए प्रति दिन है। आइसोलेशन बेड का चार्ज 8 हजार से 10 हजार रुपए है।
अब कुछ केस को देखते हैं।
केस -1- अस्पताल ने रोजाना 30 हजार का बिल बताया, सरकारी अस्पताल में बिना किसी बिल के मरीज ठीक हुआ
मुंबई के कांदिवली इलाके में रहनेवाले ओमप्रकाश पांडे बताते हैं कि उनके भाई को कोरोना पॉजिटिव पाया गया। जब उन्होंने दो तीन अस्पतालों में बात की तो डॉक्टर्स ने कहा कि अगर हेल्थ इंश्योरेंस है तो आपको हम फिलहाल भर्ती नहीं कर सकते हैं। मामला पूरी तरह कैश का है। इसमें आपको पहले एक लाख रुपए जमा कराने होंगे। रोजाना का बिल 30 से 35 हजार रुपए होगा। बाद में ओमप्रकाश ने भाई को बोइसर के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जहां कुछ हजार रुपए की दवाइयों से वे स्वस्थ हो गए।
केस-2- एक लाख डिपॉजिट न होने पर अस्पताल ने भर्ती करने से मना किया, मरीज की मौत
जौनपुर के रहनेवाले आनंद मिश्र बताते हैं कि उनके चाचा पंडित दीनानाथ मिश्र का कोरोना पॉजिटिव आया। जब वह बनारस के अपेक्स अस्पताल में उनको लेकर गए तो अस्पताल ने कहा कि पहले एक लाख जमा कराइए। लेकिन उनके भाई के पास महज 40 हजार रुपए थे। अस्पताल ने इतने पैसे में भर्ती करने से मना कर दिया। आनंद के मुताबिक, उन्होंने डॉक्टर्स से कहा कि वे 15 मिनट में पैसे मंगा रहे हैं। लेकिन तुरंत अस्पताल ने कहा कि कोविड बेड पूरा हो गया है और दूसरा मरीज पैसा दे चुका है, आपका इलाज नहीं होगा।
यही नहीं, पूरे दिन भर चक्कर लगाने के बाद बनारस जैसे शहर में किसी अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया और अंत में उनकी मृत्यु हो गई।