नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने भले ही थोड़ी देर कर दी हो लेकिन भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) और एअर इंडिया जैसी ब्लूचिप सरकारी कंपनियों को सरकार बेच कर रहेगी। क्योंकि सरकार का अब भी यही मानना है कि इस तरह के कारोबार में इनका कोई काम नहीं है।
2019 में हुई शुरुआत
इसके बारे में शुरुआत 2019 में शुरू हुई थी। साल 2020 को प्राइवेटाइजेशन के लिहाज से भारत के इतिहास में ऐतिहासिक वर्ष माना जा सकता था। इसमें कम से कम 3 टॉप सरकारी कंपनियां जिसमें देश की दूसरी सबसे बड़ी ईंधन रिटेलर BPCL, एअर इंडिया और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) को बिक्री के लिए रखा जाना था।
हालांकि कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप ने इसे अगले वित्त वर्ष में शिफ्ट करने को मजबूर कर दिया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कई बार दोहरा चुकी हैं कि उनकी विनिवेश योजनाएं अपनी जगह अडिग है।
बिजनेस में बने रहना सरकार की योजना नहीं
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यहां तक कह दिया है कि इस बिजनेस में बने रहना सरकार की योजना नहीं है। गौरतलब है कि फरवरी में सीतारमण ने अप्रैल से शुरू हुए वित्त वर्ष के लिए 2.10 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड विनिवेश लक्ष्य रखा था। हालांकि अभी तक सरकारी क्षेत्र की केवल 4 ही कंपनियों में हिस्सेदारी बिक पाई है। इससे 12,380 करोड़ रुपए मिले हैं।
विनिवेश लक्ष्य हासिल करना मुश्किल
पिछले साल की तरह विनिवेश लक्ष्य को हासिल करना लगभग असंभव लग रहा है। क्योंकि यह 2.10 लाख करोड़ रुपए का लक्ष्य 2019-20 के 50 हजार 298 करोड़ के लक्ष्य से चार गुना ज्यादा है। इसमें सेंट्रल पब्लिक सर्विस इंटरप्राइजेज (CPSE) में हिस्सेदारी बिकने से 1.20 लाख करोड़ रुपए और भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और IDBI सहित अन्य वित्तीय संस्थानों में हिस्सेदारी बिक्री से 90 हजार 000 करोड़ रुपए शामिल हैं।
अगले कुछ महीनों में होगी बिक्री
सरकारी अधिकारियों ने अगले कुछ महीनों में BPCL और एअर इंडिया को बेचने का पूरा भरोसा जताया है। सरकारी हिस्सेदारी बिक्री कार्यक्रमों का प्रबंधन करने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (DIPAM) ने जनवरी में कर्ज से लदी एअर इंडिया के लिए टेंडर मंगाया था। मार्च की शुरुआत में इसने BPCL में अपनी 53.29 पर्सेंट की बिक्री के लिए बोलियां मंगाई थीं। लेकिन 25 मार्च से कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण सरकार को बार-बार बोलियों के तारीख आगे बढ़ानी पढ़ी।
दो कंपनियों के लिए बोलियां मिली हैं
अब जबकि साल का अंत करीब है, सरकार ने कहा है कि दोनो कंपनियों के लिए कई बोलियां प्राप्त हुई हैं। हालांकि असली परीक्षा तो तब होगी जब निवेशक कंपनियों की विस्तृत जांच शुरू करेंगें और ये बिड्स आगे जाकर फाइनेंशियल बिड्स में तब्दील होंगी। वेदांता और दो ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी फंड अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट और आई स्क्वायर्ड कैपिटल की थिंक गैस ने BPCL के लिए और टाटा समूह और अमेरिका स्थित फंड इंटरअप्स इंक ने एअर इंडिया के लिए बोलियां लगाई हैं।
इन कंपनियों में भी बिकेगी हिस्सेदारी
कंटेनर कॉर्पोरेशन, सीमेंट कॉरपोरेशन, BEML, पवन हंस, स्कूटर्स इंडिया और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के कुछ स्टील प्लांट्स सहित दो दर्जन से अधिक कंपनियों का विनिवेश 2019 से ही पाइपलाइन में है। निजी क्षेत्र की कंपनियों की तुलना में सीपीएसई (सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइज) के शेयर प्राइस कम हैं।
इसमें सुधार के लिए सरकार ने सीपीएसई के शीर्ष प्रबंधन पर यह जिम्मेदारी डाल दी है कि वे तिमाही डिविडेंड भुगतान के माध्यम से निवेशकों के विश्वास में सुधार करें। इससे न सिर्फ उन्हें अच्छा रिवॉर्ड दिया जा सकेगा बल्कि अगर उनकी कुछ चिंताएं है तो उनका भी समाधान किया जा सकेगा।
सीपीएसई के वैल्यूएशन में कमी
दीपम के सचिव तुहिन कांत पांडे ने सीपीएसई के मार्केट वैल्यूएशन में कमी का मुद्दा उठाते हुए हुए कहा था कि मार्च से नवंबर के बीच जहां सेंसेक्स और निफ्टी में करीब 80 पर्सेंट की बढ़त रही, वहीं बीएसई सीपीएसई इंडेक्स सिर्फ 19 पर्सेंट चढ़ा। आमतौर पर हमारे सामने बाजार में सरकारी स्टॉक वैल्यूएशन की समस्या होती है। हमें यह भी देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है।
जनवरी-मार्च में होगी ज्यादा डील
यूँ तो विनिवेश की दर पहले नौ महीनों में काफी धीमी रही है, लेकिन यह भी सच है कि जनवरी-मार्च की अवधि है ज्यादा डील होती हैं। इस वित्त वर्ष में एलआईसी की आईपीओ प्रमुख है। हालांकि इसमें समय लगेगा। क्योंकि कंपनी के विशाल रियल एस्टेट असेट्स के वैल्यूएशन में काफी पेंच है।
एअर इंडिया का विनिवेश मार्च 2021 तक नहीं होने वाला है, लेकिन बीपीसीएल, शिपिंग कॉरपोरेशन और कॉनकोर का निजीकरण आगे बढ़ सकता है। इससे कुल मिलाकर विनिवेश आय इस वित्त वर्ष में 80,000 करोड़ रुपए के करीब जा सकती है।
हालांकि, यह विनिवेश अभी भी कुल 2.10 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य से बहुत कम होगा।