नई दिल्ली। देश भर में कोरोना को लेकर सरकारी कोशिशों के नतीजा सामने आने लगा है। कोरोना संक्रमण को लेकर हुई संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में आज आईसीएमआर ने कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने रखीं। डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने कोरोना वायरस म्यूटेशन से लेकर बीसीजी टीके के इस्तेमाल और इससे बचाव की संभावना पर पत्रकारों के कई सवालों के जवाब दिए।
सवाल- गुजरात बायोलॉजिकल रिसर्च सेंटर ने पाया कि वायरस का म्यूटेशन हो रहा है, क्या कहेंगे इसपर।
गुजरात के रिसर्च सेंटर में होम जीनोम सीक्वेंसिंग हुआ है, ये पहला नहीं है, पहले भी कई जगहों पर हुआ है। अलग-अलग देशों के लोग अलग-अलग वायरस लेकर आए। हमारे यहां वुहान सीक्वेंसिंग वाले वायरस आए। फिर इटली और ईरान से संक्रमित लोग आए। ईरान से जो वायरस आया वो भी वुहान जैसा ही था। इटली वालों में यूरोप और यूएस वाले वायरस हमें दिखे। मुख्य कारण है कि ये लोग ज्यादा घूमते हैं। इस तरह से हमारे देश में अलग अलग किस्म के वायरस हैं। तो देखना होगा कि किस किस्म वाले वायरस से क्या बीमारी हो रही है। ये वायरस जब बच्चे पैदा करता है तो वहीं एंजाइम इस्तेमाल करता है कि टाइप ए का रहूं, बी का या फिर सी का। ऐसे में दवा का असर भी नहीं होगा। वैक्सीन बनता है तो वो म्यूटेशन पर काम कर सकता है। लेकिन ये सहजता से नहीं होगा। ये वायरस बहुत जल्दी म्यूटेट नहीं होता है। अगर हम वैक्सीन बना पाए वो आगे भी काम करेगी।
सवाल- आपने बीसीजी वैक्सीन के बारे में भी कहा था, इसका इस्तेमाल स्वास्थ्यकर्मियों, डॉक्टरों पर पर कैसे होगा।
इस सवाल पर उन्होंने कहा- बीसीजी वैक्सीन बच्चे के पैदा होते ही दी जाती है। लेकिन बीसीजी वैक्सीन टीबी रोकने का खतरा रोक नहीं पाती है। वैक्सीन लेने के बाद भी नई बीमारी को ये रोक नहीं सकती। सवाल ये कि क्या ये फायदेमंद है, तो मैं कहना चाहूंगा कि ये हमारे इम्यून सिस्टम को सुधारता है। लेकिन इस मामले में काम करेगा इसका चांस कम दिखता है। हालांकि इसका असर 15 साल तक रहता है। लोगों का कहना है कि 15 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को बीसीजी देकर क्या सुरक्षित हो सकते हैं, तो कहूंगा कि इसका सबूत मिला नहीं है। फिलहाल हम इसका लैब में परीक्षण कर रहे हैं, नतीजा जल्द आ जाएगा।
सवाल- निजी अस्पतालों में पूलिंग टेस्ट शुरू हो गए हैं, ये किस तरह होंगे?
इस सवाल पर डॉ. आर गंगाखेड़कर ने कहा- कल हमने पूल टेस्ट पर गाइडलाइन जारी की थी। जहां सेरोपॉजिटिविटी दो फीसदी से कम है, वहां पांच सैंपल लिए जाएं। इस तरह से कम टेस्ट करके ही हमें पता चल जाएगा कि ये संक्रमण कैसे बढ़ रहा है। हमने एकल टेस्ट (इंडिविजुअल डायग्नोसिस) के लिए इसलिए नहीं कहा क्योंकि इससे टेस्ट की कीमत पर असर पड़ेगा। निजी अस्पतालों को इस पर सोचना होगा।