गंगा बैराज बना अवैध खनन माफियाओं का गढ़

-ब्यूरो

साधारण मिट्टी खनन के खेल में खनन अधिकारी की संलिप्तता का लग रहा आरोप, सिकंदरपुर सरोसी में त्रुटिपूर्ण फाइल को स्वीकृति देना बना था चर्चा का विषय

उन्नाव । कहा जाता है कि यदि प्रशासन चाहे तो कहीं भी एक भी अपराधी पनप नहीं सकता। प्रशासन की सरपरस्ती में ही अपराध का जन्म होता है। हां इतना जरूर है जब शासन स्तर से अधिक दबाव आता है तो छोटे स्तर के अपराधियों को पकड़ कर खानापूर्ति अवश्य कर ली जाती है। गत कई माह से जनपद के खनन अधिकारी संजय प्रताप खासा चर्चा में है, उनका कारनामा ही कुछ ऐसा है।

सूत्र बताते हैं कि उनकी इसी कार्यशैली के चलते जिलाधिकारी उनसे खासा नाराज हैं। माना जा रहा है कि उन्होंने जिलाधिकारी को अंधेरे में रखते हुए एक ऐसी साधारण मिट्टी की फाइल को स्वीकृति प्रदान कर दी थी जो गत कई वर्षों से विभाग में पड़ी धूल खा रही थी। पूर्व में रहे खनन अधिकारियों द्बारा इस फाइल को करने से साफ मना कर दिया गया था। उनका कहना था इस फाइल को करके मैं अपनी नौकरी नहीं खोना चाहता।

आखिर क्या था इस फाइल में जिसके चलते कोई इसे आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था ? हालात कुछ भी हो फिलहाल उस फाइल को स्वीकृत कराकर मिट्टी खनन शुरू करा दिया गया था जो अभी तक मनमाने ढंग से स्वीकृत गाटा से अन्यत्र संचालित हो रही है। जिसकी अनुमति 2 फरवरी 2०23 से ०2 मई 2०23 तक ०3 माह के लिए प्रदान की गई थी।
विभागीय हस्तक्षेप से बचने के लिए उसे निरस्त कर दिया गया है लेकिन परिवहन की अनुमति अभी भी जारी है।

सूत्रों का मानना है खनन अधिकारी द्बारा पूर्व में फाइल स्वीकृत कराने के एवज में दो लाख रुपए लिए गए थे। उसके बाद जांच के नाम पर खनन अधिकारी और तहसील के कुछ कर्मचारियों द्बारा मोटी रकम वसूल की गई। इन खर्चों की भरपाई के लिए मौन स्वीकृति प्रदान की गई है, इसके साथ ही प्रतिदिन के हिसाब से 8 से दस हजार रुपए लिया भी जा रहा है। यह सारा खेल विभाग के एक प्राइवेट कर्मचारी की सरपरस्ती में खेला जाता है।

इसी तरह ट्रांस गंगा सिटी की तरफ कई और वर्क ऑर्डर की फाइलों को स्वीकृत किया गया है। जो दिन रात वैध और अवैध खनन करा रहे हैं। साइट के अलावा खुलेआम बाहर मिट्टी बेची जा रही है। जब खनन अधिकारी पर दबाव बनता है तो दो लाख का जुर्माना लगाकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

जानकारी मिल रही है कि इस अवैध खनन के खेल में कुछ छुटभइए भाजपा नेताओं का अहम रोल है जो विभाग में कार्यरत प्राइवेट बाबू से सेटिग करते हैं, वह सीधे साहब से बात करा देता है और फिर शुरू हो जाता है मिट्टी खनन का खेल। वे स्थानीय नेताओं के साथ ही संगठन से भी उच्च अधिकारियों को फोन करा देते हैं, जिससे खनन अधिकारी संदेह के घेरे से बाहर रहें और उनका खेल बदस्तूर जारी रह सके।

यदि किसी के द्बारा अवैध खनन की शिकायत की जाती है तो साहब जांच करने उसी स्थान पर जाते हैं जहां की स्वीकृति प्रदान की जाती है। जबकि खनन कर्ता स्वीकृत वाले स्थान को छोड़कर अन्यत्र धड़ल्ले से खनन करते हैं।

इसकी जानकारी होने के बावजूद वह उस स्थान पर जाने से खुद भी बचते हैं और खननकर्ता को बचाने के एवज में वसूली भी करते हैं। सूत्रों की माने तो जब अवैध खनन की ज्यादा शिकायतें आने लगती हैं तो खनन अधिकारी द्बारा खनन कर्ता को बुलाकर उसे समझाया जाता है कि आप पर दो लाख जुर्माना लगाने जा रहे हैं इसके एवज में हम तुम्हें 1० लाख कमाने का मौका भी दे रहे हैं। लेकिन इसमें मेरी भी हिस्सेदारी रहेगी। अवैध खनन करने वाले ऐसे ऑफर को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।

खनन कर्ताओं को दे दी जाती है शिकायत करने वाले की जानकारी
उन्नाव । जब कोई खनन अधिकारी से अवैध खनन की शिकायत करता है तो उसकी पूरी जानकारी अवैध खनन कर्ता को इनके द्बारा दे दी जाती है, जिससे वे लोग शिकायत कर्ता पर शांत रहने का दबाव बनाने लगते हैं। जो नहीं मानता उस पर सत्ता का रौब गांठ कर उसे फर्जी मुकदमों में फसाने का प्रयास करते हैं। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से बचने के लिए लोग शांत बैठ जाते हैं।

फाइल निरस्त करने के बाद भी नहीं दी गई जानकारी
उन्नाव। सरोसी में संचालित सुनील कुमार यादव नाम से साधारण मिट्टी की फाइल में जब निदेशक रोशन जैकब से दबाव बना तो आनन फानन जिलाधिकारी से फाइल निरस्त करने का अनुमोदन ले लिया गया लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया गया। जब फाइल निरस्त कर दी गई थी सूचना विभाग के माध्यम से इसकी सूचना पत्रकारों को देनी चाहिए थी लेकिन ऐसा इसलिए नहीं किया गया क्योंकि पूरे समय चलवाने का ठेका जो लिया गया था। क्षति पूर्ति हेतु अभी भी रात 2 बजे से दिन में 12 बजे तक आधा सैकड़ा डंफर रोड पर दौड़ते रहते हैं।

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