इस्लामाबाद। भारत के बार-बार विरोध करने के बाद भी पाकिस्तान की लालची निगाहें गिलगित-बाल्टिस्तान पर बनी हुई हैं। अब एक कदम आगे बढ़ते हुए पाकिस्तानी अधिकारियों ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र गिलगित-बाल्टिस्तान को अस्थायी प्रांत का दर्जा देने के लिए एक कानून की रूपरेखा तय कर ली है।
बता दें कि दिल्ली ने इस्लामाबाद से साफ तौर पर कहा है कि गिलगित और बाल्तिस्तान समेत जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख का पूरा केंद्रशासित क्षेत्र भारत का अखंड हिस्सा है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान सरकार या उसकी न्यायपालिका का अवैध रूप से या जबरन कब्जा किए गए स्थानों पर कोई अधिकार नहीं है।
कानून एवं न्याय मंत्रालय के प्रस्तावित कानून के तहत गिलगित-बाल्तिस्तान की सर्वोच्च अपीलीय अदालत (एसएसी) समाप्त की जा सकती है और क्षेत्र के निर्वाचन आयोग का पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग के साथ विलय किया जा सकता है। विधि मंत्रालय में सूत्रों ने अखबार को बताया कि 26वें संवैधानिक संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया गया है और प्रधानमंत्री इमरान खान को सौंप दिया गया है।
जुलाई के पहले सप्ताह में प्रधानमंत्री ने संघीय कानून मंत्री बैरिस्टर फारोग नसीम को कानून तैयार करने का जिम्मा दिया था। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान के संविधान, अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों खास तौर से कश्मीर पर जनमत संग्रह से संबंधित प्रस्तावों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है।
खबर में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि गिलगित-बाल्तिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकारों समेत विभिन्न पक्षकारों से प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन पर विचार-विमर्श किया गया है। सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित कानून में सुझाव दिया गया है कि क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रांतों और क्षेत्रों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद-1 में संशोधन कर उसे अस्थायी प्रांत का दर्जा दिया जा सकता है।