गृहिणियों ने घर में बनाई राखियां, चाइना की राखियों पर पड़ रही हैं भारी

कानपुर। कोरोना महामारी ने रक्षाबंधन के त्यौहार को भी नहीं बख्शा है। रक्षाबंधन को लेकर भाई व बहनों में काफी उत्साह है तो वहीं दुकानदारों में भय की स्थिति बनी हुई है। ज्यादात्तर बहनें, भाई की कलाई में राखी बांधने के लिए अपने हाथ से ही रक्षा सूत्र बनाने में जुटी हुई हैं।
गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा हफ्ते में 4 दिन दुकानें खोलने का आदेश हुआ है। इसे लेकर थोक व फुटकर राखी विक्रेताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। व्यापारियों का कहना है कि सप्ताह के चार दिनों में कितना व्यापार होगा या नहीं, यह सबसे बड़ी मुसीबत है। वहीं एक तरफ कोरोना भय से बहनों ने घर में ही भाईयों की कलाई में बांधने के लिए रक्षा सूत्र बना रही हैं।
कानपुर की जनरल गंज की राखी बाजार के थोक विक्रेता कल्याण मल ब्रदर्स जिनकी तीसरी पीढ़ी भी थोक में राखी व भगवान के कपड़ों का व्यवसाय कर रही है। इनकी तीसरी पीढ़ी के युवा दुकानदार कल्याण ओमर ने बताया कि हमारे बाबा ने 100 वर्ष पहले इस व्यवसाय को शुरू किया था और मेरे जन्म के बाद मेरे पिता  ने मेरे नाम से इस फर्म का नाम ‘कल्याण मल’ कर दिया था।
उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के चलते व्यापार का दृष्टि कोड बदल गया है। पिछले साल के अपेक्षा इस वर्ष राखी का व्यापार आधा ही रह गया है। क्योंकि पिछले वर्ष चाइना से भारत में राखियों का व्यापार होता था, लेकिन इस वर्ष हम व्यापारियों ने चाइना की राखियों का बहिष्कार कर दिया है। जिससे चाइना राखियों के एवज में इंडियन राखियों की कीमत में कुछ ही पैसों का फर्क आ रहा है।
बताया कि रक्षा बंधन के त्योहार में सबसे ज्यादा पसंद बच्चों की होती है। बताया कि रेशम का धागा, जरी राखी, मोती राखी, जर्कन नग राखी, मारवाड़ियों में प्रचलित लुम्बा राखी व बच्चों की पसंद में छोटा भीम, डोरेमोन, सुपरमैन व लाइट जड़ित राखी की मांग ज्यादा रहती है।
मूलगंज थाना क्षेत्र के विसात खाना में राखी व्यापार के थोक व फुटकर विक्रेता हम्माद ने बताया कि रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को सभी धर्मो से जुड़े लोग बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं।
बताया कि सर्वाधिक रेशम धागा से बनी राखी का डिमांड रहता है। इसके अलावा कड़ा राखी, रंग-बिरंगे मोती राखी, चांदी राखी व बच्चों की कार्टून कैरेक्टर राखी की मांग रहती है। कहा कि कोरोना महामारी ने सभी त्यौहारों की रौनक को फीका कर दिया है। इससे हमारे व्यापार में भी बिन मौसम बरसात की तरह ही संकट के बादल छा गए हैं।
व्यापार न के बराबर हो रहा है। पहले हमारे पास फतेहपुर, बांदा, उन्नाव, कानपुर देहात, कन्नौज, बिंदकी, इटावा व औरैया के व्यापारी राखी त्यौहार के पहले ही खरीददारी को उमड़ते थे। लेकिन इस बार इन हालातों में व्यापार काफी पीछे चल रहा है।
गृहिणी दीपाली ने बताया कि पहले तो हम अपने भाईयों के लिए बाजारों में घूम कर नए-नए प्रकार की राखियां लाते थे। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के भय से हमने घर में ही राखी बनाई है। जिसे बांधने में मन में किसी प्रकार का भय नहीं रहेगा। उन्होंने बताया कि एक राखी तैयार करने में 25 से 30 मिनट का समय लगता है, जिसकी लागत बाजार की राखियों से बहुत ही कम है।
उनकी इस एक राखी बनाने में लागत 20 से 25 रुपये तक आई है। उनका कहना है कि अगर हम से जुड़े लोग हाथ की बनी राखियों को खरीदना चाहेंगे तो हम इनको 40 रुपयों तक बेचेंगे। दीपाली सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी राखियों को बेच रही है।
राखियों का मूल्य
मारवाड़ी लुम्बा 95 से 180 रु प्रति पीस ही
कड़ा लुम्बा 35 रु प्रति पीस
बच्चों की राखी 10 से 60 रु प्रति पीस
इंडियन धागा राखी 12 से 240 रु प्रति दर्जन
घरेलू बनी राखी 15 से 25 रु प्रति पीस

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