लखनऊ। भाजपा ने सभी तीन प्रमुख चुनावी राज्यों में अपने वरिष्ठ नेताओं को किनारे लगा दिया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया को अब तक नेता नहीं घोषित किया गया है जिसके कारण उनकी पार्टी नेतृत्व से तनातनी चर्चा का विषय बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पार्टी में होने के बाद भी न तो चेहरा घोषित किए गए हैं और न ही उनकी भूमिका प्रभावी रह गई है।
कुछ नेताओं ने अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया है। उधर मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री होने के बाद भी पूरी चुनावी कमान पार्टी की केंद्रीय इकाई के हाथ में है। सुमित्रा महाजन और उमा भारती जैसी दिग्गज नेताओं के होने के बाद भी पार्टी उनसे कोई सलाह मशविरा तक नहीं कर रही है।
उन्हीं के इलाकों में यात्राओं के आयोजन के बाद भी उन्हें आमंत्रित तक नहीं किया जा रहा है। इससे कभी पार्टी के दिग्गज नेता रह चुके ये नेता काफी आहत बताए जा रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या यह रणनीति भाजपा के लिए कारगर रहेगी? या इन नेताओं की नाराजगी भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित होगी?
यहां से शुरू हुआ था बदलाव का दौर
सबसे पहले भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था। इसे इन वरिष्ठ नेताओं को सक्रिय राजनीति से रिटायर करने के रूप में देखा गया था। बाद में सुमित्रा महाजन, उमा भारती, विनय कटियार और लालजी टंडन को भी सक्रिय राजनीति से किनारे कर दिया गया। पार्टी की नीतियों को देखते हुए कुछ नेताओं ने खुद चुनाव न लड़ने के लिए पत्र लिख डाले तो कुछ को टिकट न देकर किनारे कर दिया गया।
अगले चरण में भाजपा ने अपने लगभग छह वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को मोदी मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। प्रकाश जावड़ेकर, मुख्तार अब्बास नकवी और रविशंकर प्रसाद को मंत्रिमंडल में बड़े बदलाव के नाम पर हटा दिया गया। उनके स्थान पर पिछड़ों, दलितों और महादलितों को मंत्रिमंडल में शामिल कर बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई थी। वहीं, रिटायर किए गए वरिष्ठ नेताओं को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई।