बर्लिन। पिछले दिनों भारत में चल रहे किसान आंदोलन की गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई दी। भारतीय किसान सरकार के तीन कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। वह अपनी फसल के दामों को लेकर चिंतित हैं। इस समय सिर्फ भारत के ही किसान नाराज और परेशान नहीं हैं, बल्कि जर्मनी के भी किसान सरएक प्रस्तावित कानून से नाराज हैं।
भारतीय किसान अपनी फसल के दामों को लेकर चिंतित हैं तो जर्मन के किसानों को अपनी पैदावार कम होने की आशंका है। दरअसल जर्मनी की सरकार ने एक कानून का प्रस्ताव रखा है जिसका मकसद कीटों की आबादी में हो रही बड़ी गिरावट को रोकना है।
सरकार ने इसे “कीट संरक्षण” कानून का नाम दिया है। इसमें खेती-किसानी में कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने पर जोर दिया गया है। हालांकि इसे संसद में अभी पारित होना बाकी है, लेकिन इसके विरोध में जर्मनी के सैकड़ों किसान सड़क पर उतर आए हैं।
बीते मंगलवार को सैकड़ों जर्मन किसान ट्रैक्टर लेकर राजधानी बर्लिन में पहुंच गए। बर्लिन के ऐतिहासिक ब्रांडेनबुर्ग गेट पर किसानों ने “किसान नहीं तो खाना नहीं और भविष्य नहीं” जैसे नारों के साथ प्रस्तावित कानून का विरोध जताया।
दरअसल जर्मन सरकार जो नया कानून लाने जा रही है उसका मकसद खरपतवार को रोकने वाले विवादित कीटनाशक ग्लिफोसेट के इस्तेमाल को धीरे-धीरे 2023 के अंत तक रोकना है।
इस कानून के तहत में हर्बीसाइड और इंसेक्टीसाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। रात के दौरान प्रकाश प्रदूषण को रोकना भी इसका लक्ष्य है।
डीडब्न्यू के अनुसार जर्मनी की पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुत्से का कहना है कि लोग कीटों के बिना नहीं रह सकते हैं। वह नए कानून को “कीटों और भविष्य में हमारे इको सिस्टम के लिए खुशखबरी” मानती हैं। उनका कहना है कि आने वाला नया कानून जल स्रोतों के पास भी पेस्टीसाइड के इस्तेमाल को कम करने पर जोर देता है।
कहीं समर्थन तो कहीं हो रहा विरोध
जर्मनी ही नहीं बल्कि दुनिया के सारे देशों के किसान अपनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं, लेकिन इससे बड़ी संख्या में अन्य कीट भी मारे जाते हैं जो हमारे ईको सिस्टम में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इतना ही नहीं ये परागण के लिए भी जरूरी है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में एक तिहाई खाद्य उत्पादन परागण पर ही निर्भर करता है। इस मामले में जर्मन कृषि मंत्री यूलिया क्लोएकनर का कहना है कि संरक्षित क्षेत्र में उगने वाली कुछ फसलों को सख्त नियमों से छूट दी जाएगी, जैसे वाइन के लिए अंगूरों की खेती अपवाद होगी।
वहीं दूसरी ओर जर्मन किसान संघ के अध्यक्ष योआखिम रुकवीड ने प्रस्तावित नए कानून की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे “अल्पदर्शी” और “कृषि उद्योग और प्रकृति संरक्षणवादियों के बीच सहयोग के लिए बुरा संकेत” बताया है।
रुकवीड ने कहा, “कानून बहुत से किसान परिवारों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा करता है।” लेकिन जर्मनी के पर्यावरण समूह ने प्रस्तावित कानून का समर्थन किया है।
प्रजातियों की विविधता घटने से चिंता बढ़ी
लंबे समय से जीवविज्ञानी कीड़ों की संख्या में आ रही कमी के प्रति चेतावनी देते रहे हैं। उनके अनुसार इससे प्रजातियों की विविधता घट रही है और ईको सिस्टम को नुकसान हो रहा है।
उनका कहना है कि इससे परागण और खाद्य श्रृंखला पर भी असर पड़ रहा है। साल 2017 में हुए एक अध्ययन के अनुसार जर्मनी उन पहले देशों में है जिन्होंने कीड़ों की संख्या में आ रही कमी का मुद्दा उठाया था।
दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि सरकार के इस नए कदमों का बोझ उन्हीं पर पड़ेगा। उनके अनुसार कड़े नियमों का मतलब है कि जर्मन किसान विदेश से आने वाले सस्ते कृषि उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
जर्मन किसान संघ का कहना है कि नए उपायों से कृषि लायक जमीन में सात प्रतिशत की कमी हो जाएगी।