नई दिल्ली । इंवेस्टमेंट मार्केट की तुलना में रियल एस्टेट मार्केट कहीं ज्यादा खराब तरीके से काम करता है। सही तरह से काम करने वाले मार्केट में पारदर्शिता होती है और चीजों के बारे में जानकारी आसानी से मिल जाती हैं। इसके अलावा मांग, आपूर्ति और लेनदेन साफ-सुथरे होते हैं। अगर मार्केट में ये चीजें हैं, तो अधिकतम संभावना यही है कि खरीदार और विक्रेता दोनों को सही डील मिलेगी और उन्हें यह भरोसा भी होगा कि सही डील मिलेगी। सही डील मिलने का भरोसा वास्तव में सही डील मिलने जितना ही महत्वपूर्ण है।
छोटी कंपनियों और कम ट्रेडिंग वाले स्टॉक्स के लिहाज से मार्केट अच्छी तरह से काम नहीं कर रहा है। हालांकि, तब भी इंवेस्टमेंट मार्केट के काम करने का तौर-तरीका रियल एस्टेट मार्केट जितना खराब नहीं है। समस्या यह है कि रियल एस्टेट से पेशेवर जुड़ाव न रखने वाले सामान्य व्यक्ति को कभी-कभी इससे डील करना पड़ता है। एक सामान्य निवेशक स्टॉक्स में निवेश करते हुए अनुभव और विशेषज्ञता हासिल करने की उम्मीद रखता है।
जानकारी की विश्वसनीयता सही और गलत मार्केट में सबसे बड़ा फर्क पैदा करती है। फिर, सूचना का प्रवाह अच्छा हो या खराब, हमें अपनी समझ का भी इस्तेमाल करना होता है। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोगों की रियल एस्टेट के काम करने तरीके को लेकर समझ बहुत पुरानी है। आमतौर पर खरीदार रियल एस्टेट को लेकर पुरानी सोच से बंधा हुआ है।
लेकिन रियल एस्टेट डेवलपर्स ने नए तौर-तरीके अपना लिए और फिर खरीदारों की सोच का आज के लिहाज से कोई मतलब नहीं रह गया। पहले प्रॉपर्टी की कीमतें बढ़ने के शायद पांच स्रोत होते थे और आपका अंतिम मुनाफा इन सभी का उत्पाद होता था। ये स्रोत थे – कृषि भूमि को रेजिडेंशियल या कॉमर्शियल में बदल लेना, जमीन के नए मकसद के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना, इलाके में आबादी बढ़ने के साथ जमीन का आवासीय या कॉमर्शियल रूप से वहनीय होना।
अक्सर डेवलपर्स पांचवे चरण की भविष्य की कीमत भी हासिल करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे अक्सर ऐसी कीमत की बात करते हैं जो भविष्य के लिहाज से उचित साबित हो सकती है। यह हमारे माता-पिता की पीढ़ी के समय के लिहाज से ठीक विपरीत था।