काबुल। तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के साथ ही हुकूमत कायम कर ली। एक हफ्ते पहले सरकार का भी ऐलान कर दिया। इसका शपथ ग्रहण समारोह होगा या नहीं होगा, कब और कैसे होगा? ऐसे तमाम सवाल लोगों के जेहन में हैं। इससे भी बड़ा सवाल ये है कि तालिबान के बड़े नेता कहां हैं और ये दुनिया के सामने क्यों नहीं आ रहे?
हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को सुप्रीम लीडर घोषित किया गया था और मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को डिप्टी प्राइम मिनिस्टर। ये दोनों ही अब तक कहीं नजर नहीं आए हैं। बरादर ने दो दिन पहले 39 सेकंड के एक कथित ऑडियो टेप के जरिए खुद के सेहतमंद होने का दवा किया। अब इस टेप पर भी सवालिया निशान लगने लगे हैं।
सवाल उठना लाजिमी
CNN ने तालिबान के अंदर जारी उठापटक को लेकर रिपोर्ट पब्लिश की है। इसके मुताबिक- आमतौर पर किसी भी देश में सरकार के ऐलान के साथ ही नेता दुनिया के सामने आते हैं। मीडिया से बातचीत करते हैं, लेकिन अफगानिस्तान में ऐसा नहीं हो रहा। लोग जानना चाहते हैं कि तालिबान नेता कहां हैं? उनका पता क्या है और वो दुनिया से नजरें क्यों नहीं मिला रहे। तालिबानी प्रवक्ता भी सवालों को टालने की कोशिश कर रहे हैं और अगर जवाब भी देते हैं तो वो बेहद कमजोर होते हैं।
बरादर जिंदा है या मारा गया
सिर्फ दो दिन पहले तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने मुल्ला बरादर का एक ऑडियो टेप जारी किया। कहा- वो बिल्कुल स्वस्थ और सुरक्षित हैं। अब इस टेप की क्वॉलिटी और बैकग्राउंड को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कयास ये भी हैं कि तालिबान हुकूमत में शामिल हक्कानी नेटवर्क से झड़प में मुल्ला बरादर मारा जा चुका है या गंभीर रूप से घायल है।
दावा है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच यह झड़प सरकार के ऐलान से ठीक पहले हुई। यानी मामला पिछले हफ्ते का ही है। बयान भी मुल्ला के असिस्टेंट ने जारी किया था। ऑडियो टेप महज 39 सेकंड का था।
हिब्तुल्लाह भी गायब
सुप्रीम लीडर हिब्तुल्लाह अखुंदजादा के बारे में तालिबान ने कहा था- सुप्रीम लीडर अखुंदजादा जल्द ही दुनिया के सामने आएंगे। 15 दिन पहले दिए गए बयान के बावजूद वो अब तक नहीं दिखा। रिपोर्ट के मुताबिक, अखुंदजादा भी या तो मारा जा चुका है या फिर गंभीर रूप से बीमार है। अगर ऐसा नहीं है तो अब तक सामने क्यों नहीं आया। कतर की राजधानी दोहा में भी उसका अता-पता नहीं था।
अखुंदजादा 2016 में तालिबान का सरगना बना था। 5 साल में उसका कोई बयान किसी भी रूप में सामने नहीं आया। पिछले साल खबर आई थी कि अखुंदजादा काफी बीमार था और उसकी मौत पेशावर में हुई।
सवाल ये भी बहुत बड़ा
अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता कतर की राजधानी दोहा में हुआ था। मुल्ला बरादर तालिबान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहा था। माना जा रहा था कि वो ही प्रधानमंत्री बनेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हसन अखुंद को PM बना दिया गया।
अब सबसे बड़ा सवाल। तालिबान पर सबसे ज्यादा असर-ओ-रसूख, यानी प्रभाव इस वक्त कतर का है। उसके विदेश मंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल रहमान अल थानी रविवार को काबुल पहुंचे। तालिबान दावा करता है कि उन्होंने हिब्तुल्लाह अखुंदजादा से कंधार में मुलाकात की, लेकिन इसकी कोई तस्वीर सामने नहीं आई। बाकी सब तो छोड़िए तालिबान प्रवक्ता ने इस मुलाकात की पुष्टि तक नहीं की, जबकि कतर ने यात्रा की आधिकारिक जानकारी दी थी।
इतनी पर्दादारी क्यों?
तालिबान पर करीबी नजर रखने वाले पाकिस्तानी जर्नलिस्ट आजाद सैयद कहते हैं- ज्यादातर तालिबानी नेता और खासकर हक्कानी नेटवर्क के लोग वॉन्टेड हैं। उनको लगता है कि दुश्मन (अमेरिका) उन्हें कभी भी निशाना बना सकता है। इसलिए वो सामने नहीं आते।
वैसे, तालिबान चीजों को छिपाने में माहिर है। उसके पहले नेता और संस्थापक मुल्ला उमर को अमेरिका ने 2013 की शुरुआत में ही मार गिराया था। तालिबान ने साल के बिल्कुल आखिर में इसकी जानकारी दी। दरअसल, तालिबान लीडरशिप को लगता है कि नेताओं की मौत की खबर से संगठन टूट सकता है और उनके आतंकी दूसरे गुटों में शामिल हो सकते हैं। हक्कानी नेटवर्क के नेताओं पर तो 5 से 10 लाख मिलियन डॉलर तक के इनाम घोषित हैं।