नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पाकिस्तान और चीन की जीत की तरह से देखा जा रहा है। पाकिस्तान तालिबान का लगातार सपोर्ट करता रहा है और चीन 2019 से लगातार तालिबान का हमदर्द और ‘बिग ब्रदर’ बना हुआ है। तालिबान ने कहा है कि चीन ने तालिबान-अमेरिका समझौते को सपोर्ट किया है और समाधान के लिए उचित रास्ता बताया है। तालिबान और चीन के टॉप नेता कई बार कई मसलों को लेकर मिल चुके हैं। तालिबान ने चीन सहित कई देशों को उद्घाटन कार्यक्रम में बुलाया है। पाकिस्तान, चीन और रूस जैसे देश तालिबान सरकार को मान्यता दे सकते हैं।
क्यों तालिबान का सपोर्ट कर रहा है चीन?
चीनी एक्सपर्ट्स की मानें तो तालिबान और चीन दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। चीन, शिनजियांग क्षेत्र में उग्रवाद से लड़ रहा है। ईस्ट तुर्कमेनिस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) एक उइगर इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन है जो चीन-अफगानिस्तान बॉर्डर क्षेत्र से संचालित होता है। चीन द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए ये लड़ाके अफगानिस्तान भाग जाते हैं।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि अफगानिस्तान में अब भी कई ETIM के लड़ाके हैं। ऐसे में चीन ने तालिबान से आश्वासन मांगा है कि वह ETIM को अफगानिस्तान की जमीन पर कोई जगह नहीं दे। इसके जवाब में तालिबान ने कहा है कि वह ETIM के लड़ाकों को चीन भेज देंगे जहां चीन की सेना विद्रोहियों से निपट सकती है।
खनिज संसाधन
अफगानिस्तान खनिज संसाधनों से भरा हुआ है। कई दुर्लभ धातु भी अफगानिस्तान में पाए जाते हैं। ऐसे में चीन की नजरें इन खनिज संसाधनों पर हैं। अफगानिस्तान के उबड़-खाबड़ पहाड़ों से खनिज निकालने की तकनीक चीन के पास है। तालिबान को सरकार चलाने के लिए राजस्व भी चाहिए। ऐसे में तालिबान, चीन को अफगानिस्तान में जगह देने को तैयार है।
सिर्फ चीन क्यों?
चीन अपने फायदे के लिए सभी सिद्धांतों को ताक पर रखने वाले देशों में से है। यूनाइटेड नेशंस में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मसूद अजहर के खिलाफ प्रतिबंधों को रोकने के लिए चीन खुलकर सामने आया था। ऐसे में चीन, अफगानिस्तान में बड़ा खिलाड़ी बनने की राह में है। मध्य और पश्चिम एशिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए चीन, चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर का विस्तार भी कर सकता है।
भारत की चिंताएं
अमेरिका के रहते हुए भारत अफगानिस्तान में विकास के कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा था। इससे भारत ने अफगानिस्तान में अच्छी छवि भी बनाई है। लेकिन अब तालिबान के शासन में यह संभव नहीं है। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए काम कर सकता है।
ऐसे में तालिबान से निपटने के लिए भारत के पास सीमित विकल्प हैं। चीन और पाकिस्तान की तरह भारत अपने सिद्धांतों से टस से मस नहीं हुआ है। यही कारण है कि भारत ने अफगानिस्तान के दूतावास और सभी वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए हैं।
पिछले तालिबान शासन की तुलना में अबकी भारत ने बातचीत का रास्ता बंद नहीं किया है। तालिबान ने कई बार कहा है कि भारत इस इलाके का अहम देश है और हम भारत से बेहतर संबंध बनाना चाहते हैं। तालिबान ने यह भी कहा है कि भारत और पाकिस्तान के मसलों के बीच तालिबान को नहीं घसीटना चाहिए। हालांकि तालिबान ने यह भी कहा है कि उन्हें कश्मीरी मुस्लिमों के लिए बोलने का अधिकार है। ऐसे में भारत तालिबान को लेकर संभलकर अपने कदम आगे बढ़ा रहा है।