लखनऊ। उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों ने यह साबित कर दिया है कि यहां पर कांग्रेस पार्टी की न सिर्फ सीटें ही कम हुई हैं बल्कि पार्टी का जनाधार भी तेज से खिसका है। पार्टी की ऐसी स्थिति के पीछे यह माना जा रहा है कि कांग्रेस के पुराने दिग्गजों का नजरन्दाज करना ही पार्टी को भारी पड़ रहा है। नतीजा यह रह गया कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को प्रदेश की 403 सीटों पर मात्र 2.33 प्रतिशत वोट ही मिला है जो कि कई अन्य क्षेत्रीय दलों से भी काफी कम है।
कांग्रेस पार्टी की मौजूदा कमेटी ने बीते दो-तीन सालों से अपने पुराने व वरिष्ठ नेताओं को ही तरजीह देना बंद कर दिया। 1985 के बाद से अब तक 50 का आंकड़ा नहीं पार कर कांग्रेस नहीं कर पाई। इस चुनाव में इतिहास का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन का रहा।
इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे नेताओं के ऊपर बाहर से आने वाले नेताओं को बैठना शुरू कर दिया। ऐसे में बाहर से आए इन नेताओं ने अपना बर्चस्व जमाने के लिए पुराने व दिग्गज नेताओं को नजरंदाज करना शुरू कर दिया। इसके चलते पार्टी अर्न्तकलह से जूझने लगी और कई नेताओं ने तो खुद ही बाहर का रास्ता अपना लिया।
इसके साथ ही कई नेताओं को पार्टी की मौजूदा नेतृत्व ही बाहर कर दिया। इसका असर उस समय तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया लेकिन विधानसभा चुनाव में आये परिणाम ने सब कुछ साफ–साफ दिखाई देने लगा है और पार्टी को न सिर्फ इस चुनाव में सिर्फ दो सीटों (रामपुर खास व फरेन्दा) से ही संतोष करना पड़ा बल्कि पार्टी का जनाधार भी 2.33 प्रतिशत ही रह गया।
प्रियंका गांधी ने संभाली जिम्मेदारी, तब से ये दिग्गज हुए पार्टी से बाहर
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस महासचिव व उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा का यह संघर्ष भी पार्टी के साथ नहीं था तब भी पार्टी को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 6.30 प्रतिशत वोट मिले थे और सात सीटों पर जीत भी हासिल की थी।
पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का स्थान लेने यूपी आयीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के आने व अजय कुमार लल्लू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही लगभग दो दर्ज बड़े नेताओं ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया या फिर घर में बैठ गये।
लल्लू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूर्व मंत्री स्व. रामकृष्ण द्विवेदी, पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, पूर्व एमएलसी सिराज मेंहदी, पूर्व सांसद व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष युवक कांग्रेस ड़ा. संतोष सिंह सहित अमेठी में कांग्रेस का स्तम्भ माने जाने वाले पूर्व सांसद ड़ा. संजय सिंह ने या तो पार्टी छोड़ दी या चुपचाप पार्टी से किनारा कर लिया।
2022 चुनाव से पहले ये दिग्गज हुए बाहर
कांग्रेस की मजबूत जमीन कही जाने वाली रायबरेली में भी पार्टी को बड़ा झटका लग चुका है। यहां से कांग्रेस के एमएलसी रहे दिनेश प्रताप सिंह ने पहले कांग्रेस से न सिर्फ नाता तोड़ा बल्कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ चुके हैं।
इसके बाद यहां के दो कांग्रेस विधायक अदिति सिंह व राकेश प्रताप सिंह ने भी पार्टी से अलविदा कर लिया। कांग्रेस के अन्य दिग्गजों में शाहजहांपुर व आसपास के जिलों में अपनी अलग पहचान रखने वाले पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, बुन्देलखण्ड़ के पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी, पूर्वांचल के ललितेश पति त्रिपाठी व आरपीएन सिंह जैसों ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके साथ ही चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के सहारनपुर से विधायक नरेश सैनी व मसूद अख्तर ने भी पार्टी से किनारा कर लिया।
इसके साथ ही प्रदेश कार्यालय में कब्जा जमाए नई टीम ने पुराने लोगों को पूरी तरह से किनारे लगा दिया और उन्हे तरजीह देना बंद कर दिया। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी यह समझ में नहीं आया कि जिन दिग्गजों के सहारे उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में जीवित है उनका इस तरह से पार्टी से मोहभंग होना अच्छा नहीं है। इसी का नतीजा देखने को मिल रहा है कि आज प्रियंका गांधी वाड्रा के इस संघर्ष के बाद भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जमीन ही नहीं तैयार हो पा रही है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का विधान सभा सीटें जीतने का इतिहास-
2022 -2 2017 -7 2012 -28 2007 -22 2002- 25 1996 -33 1991 -46 1985 -269 1980 -309 1977 -47