दुबईः बाराबंकी के शिक्षाविद् समाजसेवी मो0 शहनशाह और डा. इरम युनूस को मिला एवार्ड

इरम एजुकेशनल सोसाइटी में फख्र और खुशी का माहौल
लाइफ टाइम अचीवमेंट से सम्मानित हुए राजनाथ
दुबई के सुहैल अल ज़रूनी ने मोमंटो देकर किया सम्मान
दुबई के स्थानीय अरब व्यापारी सुहैल मोहम्मद अल-जरूनी के सीने में भारत का दिल धड़कता है

बाराबंकी। लखनऊ और बाराबंकी में 50 से ज्यादा शिक्षण संस्थान चलाने वाली इरम एजुकेशनल सोसाइटी में इन दिनों खुशी और फख्र का माहौल दिखाई दे रहा है। उल्लेखनीय है कि इरम एजुकेशनल सोसाइटी के संस्थापक और चेयरमैन डा. ख्वाजा मोहम्मद यूनुस की बेटी डा. इरम यूनुस और उनके पति मोहम्मद अहमद शहनशाह को दुबई में एवार्ड से नवाजा गया है।‘अंदाज़ ए बयां और’ के बैनर तले दुबई के शेख राशिद ऑडिटोरियम में आयोजित कवि सम्मेलन एवं मुशायरा के जलसे में समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह अवार्ड दुबई के प्रसिद्ध शाही खानदान से संबंध रखने वाले व्यवसायी सुहैल मोहम्मद अल-ज़रूनी ने दिया। यह पहला ऐसा मौका था जब किसी गैर मुस्लिम भारतीय को अवार्ड से सम्मानित किया गया। डा. राममनोहर लोहिया से राजनीति का ककहरा सीखने वाले राजनाथ शर्मा भारत पाकिस्तान बांग्लादेश के महासंघ की मुहीम को पहली बार पाकिस्तान और बांग्लादेश की आवाम के बीच ले गए थे।

जिन्होने भारत पाकिस्तान को एक करने के लिए ‘महासंघ’ बनाने की बात कही थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दुबई के अरब व्यापारी सुहैल मोहम्मद अल-ज़रूनी ने बताया कि उनका भारत से गहरा लगाव है। वह भारत की प्राचीन सभ्यता से प्रभावित है। उनके पिता और दादा भी हिंदी व उर्दू भाषा के कायल थे। श्री ज़रूनी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी काफी प्रभावित है। वह दुबई में हिन्दी और उर्दू साहित्य को बढ़ावा देने के लिए दिलचस्पी रखते है। सुहैल मोहम्मद अल-जरूनी का सम्बन्ध प्रसिद्ध अरब व्यवसायी परिवार अल-जरूनी से है, जो दुबई के शाही खानदान के है। इस दौरान मशहूर शायर मुनव्वर राना एवं कवि डा. कुमार विश्वास ने जनपद के समाजसेवी एवं शिक्षा जगत से जुड़े मोहम्मद अहमद शहंशाह एवं बड़ागांव सीएचसी प्रभारी डा. इरम युनूस को भी अवार्ड देकर सम्मानित किया गया।

वहीं कार्यक्रम के आयोजक जनपद की समाजिक हस्तियां रेहान सिद्दीकी, आफताब अनवर अलवी, उर्फी किदवई, शाजिया किदवई जो पिछले एक दशक से दुबई में हिन्दी और उर्दू भाषा से लोगों को जोड़ने के लिए कवि सम्मेलन एवं मुशायरा आयोजित करते है। जिसकी सराहना दुनियाभर में होती है। जिनका प्रयास आज भी कारगर है। जिन्हें गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट द्वारा शाल ओढाकर सम्मानित किया गया। विदित हो कि दुबई में वर्ष 2009 से ‘अंदाज-ए-बयां और’ एक सालाना जलसे का आयोजन करती है। जिस जलसे ने कवि सम्मेलन एवं मुशायरा को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है।

जो गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है। यह कार्यक्रम दुबई में रह रहे भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के लोगों को उर्दू और हिन्दी जुबान से जोड़ती है। जो अपनी भाषा, संस्कृति, संस्कार एवं साहित्य के लिए जानी जाती है। दुनिया का यह पहला ऐसा साहित्यिक कार्यक्रम होता है जिसमें लोगों का मनोरंजन करना ही नहीं बल्कि शायरों और कवियों को अन्तरराष्ट्रीय मंच से ऊँचाईयों तक पहुंचाया होता है। इस मौके पर पत्रकार तारिक किदवई, अली उवैद ‘शाजी’, पाटेश्वरी प्रसाद, अजय वर्मा ‘अज्जी’ दुबई में मौजूद रहे।

दुबई के स्थानीय अरब व्यापारी सुहैल मोहम्मद अल-जरूनी के सीने में भारत का दिल धड़कता है. वो बालीवुड के दीवाने हैं. हिंदी इतनी साफ बोलते हैं कि सुनकर आप कहेंगे वो भारत के ही हैं। हाल में दुबई के एक धनी रिहायशी इलाके में मैं उनके घर गया। घर क्या ये एक बड़ी हवेली थी, जो चारों तरफ फैली जमीन पर बनी हुई है। ड्राइंग-रूम इतना बड़ा था कि उस पर दिल्ली में एक ऊंची इमारत खड़ी की जा सकती है.ड्राइंग-रूम में पीला रंग छाया हुआ था जिससे ऐसा लगता था कि सभी चीजें सोने की बनी हैं. वो खुद भी पीले रंग के अरबी लिबास पहनकर हमसे मिलने आये। मैंने पूछा आपने हिंदी कहाँ सीखी?

जवाब आया, हमारे काफी इंडियन और पाकिस्तानी दोस्त हैं, हमारे कर्मचारी इंडिया और पकिस्तान के हैं. उनकी वजह से हिंदी सीखी। फिर बॉलीवुड है, रोज बालीवुड की फिल्में देखता हूं जिसकी वजह से भी हिंदी सीख ली.दुबई जा रहे हैं तो ये 10 चीजें न करें, वरना.. अमीरों की ऐशगाह दुबई में क्या हैं रईसजादों के शौक दुबई में रहने वाले शेख की हिन्दी सुनकर दंग रह जाएंगे! दुबई में हिंदी के बगैर काम नहीं चलता सुहैल मोहम्मद अल-जरूनी का सम्बन्ध प्रसिद्ध अरब व्यवसायी परिवार अल-जरूनी से है जो दुबई के शाही खानदान के बहुत करीब है.दुबई एक तरह से जबानों की खिचड़ी बन कर रह गया है.

स्थानीय अरबों की संख्या 20 से 25 प्रतिशत है. बाकी सब विदेशी हैं, जिनमें भारतीयों की संख्या 28 लाख है। ऐसे में अरबों को अपनी जबान को खो देने का डर नहीं लगता? अल-जरूनी कहते हैं, नहीं, हर जगह अरबी है। अरबी प्रथम भाषा है। आप स्कूल और कॉलेज में चले जाएँ, सरकारी आफिसों में चले जाएँ इंग्लिश जितनी भी बोली जाए मगर अरबी नंबर वन है. हम अरबों की खूबी ये है कि हम जहाँ जाते हैं अपनी संस्कृति नहीं भूलते, अपनी जबान और लिबास नहीं भूलते. हिंदी और उर्दू को बढ़ावा देने वाले भारतीय मूल के पुश्किन आगा कहते हैं कि इस देश में हिंदी के बगैर काम नहीं चलता।

उनके मुताबिक, हिंदी और उर्दू यहाँ बहुत पहले से बोली जाती है। कई स्थानीय अरब हिंदी बोलते हैं. अल-जरूनी जैसे लोग हिन्दी और उर्दू साहित्य में भी दिलचस्पी रखते हैं. हम यहाँ कामयाब कवि सम्मेलन कराते हैं.बिन जायेद की शादी इतिहास की सबसे मंहगी शादी रही सऊदी अरब में इन तीन घटनाओं से आया राजनीतिक भूकंप कभी दुबई में भारतीय रुपया चलता था वैसे हिंदी से दुबई का लगाव सालों पुराना है. अल-जरूनी कहते हैं, 1971 में संयुक्त अरब अमीरात बनने से पहले से दुबई इंडिया से काफी करीब था. यहाँ इंडिया का रुपया भी चलता था, इंडिया का स्टाम्प भी चलता था. और नावों से इंडिया के साथ इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का व्यापार भी होता था.उनके अनुसार, भारत के इसी प्रभाव के कारण पुराने अरब, जिनमें उनके पिता और दादा भी शामिल हैं, हिंदी बोला करते थे।

व्यापारी अल-जरूनी यहाँ की रॉयल फैमिली के करीब हैं और दुबई में 250 घरों के मालिक. खिलौने वाले मॉडल गाड़ियों की 7,000 गाड़ियाँ जुटाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम भी दर्ज करा चुके हैं.उन्हें भारत से गहरा लगाव है. वो भारत की प्राचीन सभ्यता से प्रभावित हैं और दुनिया में इसके बुलंद होते मुकाम के कायल भी हैं। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी प्रभावित हैं. मोदी 2015 में अमीरात का 34-35 सालों में दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे. अल-जरूनी के अनुसार, मोदी का दौरा अमीरात के लोगों के लिए एक गर्व की बात थी, हमारे लिए ये एक बहुत बड़ी बात थी.

इसलिए हम लोगों ने भी उनकी खूब देख-भाल की। दुबई में दिवाली देखने लायक अल-जरूनी भारत के बहु-धार्मिक संस्कृति की तारीफ करते नहीं थकते. लेकिन साथ ही पिछले कुछ सालों की घटनाओं से वो चिंतित नजर आते हैं। वो भारतीयों से कहते हैं,आप अपने दिमाग में पहले ये रख लें कि आप सबसे पहले, इंडियन हैं. धर्म बाद में. वो आगे कहते हैं कि उनके देश में सभी धर्मों की इज्जत होती है, ‘बहुत से लोग ये कहते हैं कि अरब किसी इंडियन से नहीं मिलते, किसी हिन्दू से नहीं मिलते, किसी दूसरे मजहब वालों से नहीं मिलते, लेकिन ये गलत है. हम तो होली भी मनाते हैं, दिवाली और डांडिया भी करते हैं। भारत के बाद सबसे धूमधाम से दिवाली दुबई में ही मनाई जाती है.

अल-जरूनी स्वयं स्वीकार करते हैं कि वो बालीवुड के दीवाने हैं और बालीवुड की फिल्में रोज देखते हैं और अक्सर सिनेमा हाल में जाकर फिल्में देखते हैं. वो कपूर खानदान से सबसे अधिक प्रभावित हैं, अगर मुझे इंडिया इजाजत दे तो मैं कहूंगा कि कपूर खानदान बॉलीवुड की रायल फैमिली है. वो आगे कहते हैं कि कपूर खानदान की ये इज्जत उनके नाम के कारण नहीं बल्कि टैलेंट के कारण है जिसमें नई पीढ़ी भी शामिल है. सऊदी अरब में 100 अरब डालर के गबन का दावा सऊदी अरब जाकर क्यों फंस जाते हैं मजदूर? सुहैल मोहम्मद अल-जरूनी बीबीसी संवाददाता जुबैर अहमद के साथ आने वाली नस्ल भी हिंदी सीखे अल-जरूनी को इस बात से मायूसी होती है कि भारत के लोग हिंदी के बजाय अंग्रेजी बोलना पसंद करते हैं.

वो कहते हैं, मैं ऐसे लोगों से निवेदन करूंगा कि अगर मैं अमीरात का अरब होकर हिंदी-उर्दू बोल लेता हूँ तो आपका ये फर्ज बनता है कि आप अपने बच्चों को अपनी भाषा सिखाएं. अल-जरूनी चाहते हैं कि अरबों की आने वाली नस्ल भी उन्हीं की तरह हिंदी बोले. वो कहते हैं कि अरबों की नई पीढ़ी हिंदी समझती है, लेकिन बोलती नहीं. उसका कारण ये है कि अब बालीवुड की फिल्में अरबी में डब की जाती हैं जिससे हिंदी समझने की जरूरत नहीं और दूसरा कारण ये है कि नई नस्ल अब पश्चिमी देशों में पढ़ने जाती है जहां से वो अंग्रेजी सीख कर आती है. तो क्या अल-जरूनी अपने बच्चों को हिंदी सिखा रहे हैं? उनका कहना है वो जबरदस्ती नहीं करना चाहते, लेकिन वो चाहते हैं कि उनके बच्चे भी हिंदी सीखें।

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