नई दिल्ली। देश में कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने व प्रबंधन के लिए बनाई गई एम्पावर्ड कमेटी-1 के अध्यक्ष डॉ. वीके पॉल ने कहा कि अगर लॉकडाउन नहीं लागू किया जाता तो देश में कोरोना के 20 लाख से ज्यादा मामले होते। शुक्रवार को प्रेस वार्ता में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के द्वारा तैयार किए गए मॉडल के नतीजे की जानकारी देते हुए डॉ. पॉल ने कहा, अगर देश में लॉकडाउन नहीं होता तो देश में 54 हजार मौते हो सकती थीं।
देश के कई विशेषज्ञों के मॉडल के आधार पर यह बताया कि इसके फायदे ही हुए हैं, इसके कारण देश बाकी देशों के मुकाबले इस स्थिति से निपटने में बहुत हद तक सफल हुआ है। मौजूदा समय में देश में कोरोना के एक लाख 18 हजार से ज्यादा मामले हैं।
लॉकडाउन के कारण संक्रमण के प्रसार को किया सीमित
लॉकडाउन के फायदे गिनवाते हुए डॉ. पॉल ने कहा कि इससे देश में कोरोना संक्रमण की गति को रोकने में कामयाबी मिली है। साथ में कोरोना से निपटने की तैयारियां भी की जा सकी हैं। उन्होंने कहा कि 23 मार्च से 4 अप्रैल तक कोरोना के मामले के बढ़ने की रफ्तार 15 से 22 फीसदी थी जो बाद में घटकर 5.5 प्रतिशत हो गई है।
भारत ने समय पर कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिये थे। लॉकडाउन से पहले मामलों के दोगुने होने की रफ्तार 3.4 दिन था, जो मौजूदा समय में 13.3 दिन पर है। इसके साथ इससे संक्रमण के प्रसार को एक शहर तक ही सीमित भी किया जा सका है। मौजूदा समय में 70 प्रतिशत नए मामले 10 राज्यों से ही आ रहे हैं। बाकी राज्यों में प्रसार की रफ्तार धीमी है।
कोरोना संक्रमण और आजीविका के बीच सामंजस्य बनाने की जरूरत
लॉकडाउन में ढील देने के सवाल पर डॉ. पॉल ने कहा कि देश हमेशा के लिए लॉकडाउन में नहीं रखा जा सकता है। लोगों की आजीविका का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। अर्थव्यवस्था और बीमारी को रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन में सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है। दो महीने लागू किए गए लॉकडाउन ने लोगों को इस बीमारी से बचने के लिए जागरूक किया है। लोगों को पता है कि उन्हें बाहर निकलने से पहले मास्क लगाना चाहिए। लोगों के बीच दो गज की दूरी बनाए रखनी है। सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना है।