‘धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट..’, दाखिल हुई नई याचिका

नई दिल्ली: काशी विश्वनाथ, मथुरा, ताजमहल और कुतुब मीनार को लेकर चल रहे विवाद के बीच सर्वोच्च न्यायालय में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ (Places of Worship Act 1991) एक और याचिका दायर की गई है। इस याचिका में कहा गया है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन करता है। साथ ही यह नागरिक अधिकारों को लेकर भी गैरकानूनी है।

यह याचिका स्वामी जितेन्द्रनाथ सरस्वती की तरफ से दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि 1192 से 1947 के बीच विदेशी हमलावरों ने हिंदू, सिख, जैन और बौद्धों के सैकड़ों धार्मिक स्थलों को तोड़ा है। इतिहास में इसकी जानकारी और प्रमाण मौजूद हैं। मगर ये कानून ऐसी जगहों पर देवी देवताओं की उपासना, सेवा और पूजा करने के अधिकार को प्राप्त करने के लिए अदालत का रुख करने से रोकता है।

क्या है प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट ?

1990 में अयोध्या में राम मंदिर को लेकर आंदोलन किया गया था। उस समय मौजूदा नरसिम्हा राव सरकार ने पूरे देश में अलग-अलग धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते विवाद के मद्देनज़र 11 जुलाई 1991 को Places of Worship Act 1991 लेकर आई थी। इस एक्ट के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था, भविष्य में भी उसी का रहेगा। मगर अयोध्या का मामला उस वक़्त उच्च न्यायालय में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था।

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