प्रयागराज। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि की मौत जितने रहस्यमय ढंग से हुई, उनकी वसीयतें भी उससे कम रहस्यमय नहीं हैं। महंत नरेंद्र गिरि की ओर से 2 जून 2020 को की गई वसीयत सामने आई है। इसमें उन्होंने बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बताया है। दावा है कि 7 पेज की यह वसीयत भी रजिस्टर्ड है। इसे आधार माने तो बलवीर गिरि काे ही महंत बनाया जा सकता है, लेकिन वसीयत इससे पहले 2 बार बदली गई है।
उधर, निरंजनी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी ने संकेत दिए हैं कि यदि वसीयत लिखी गई है तो अखाड़े को बलवीर गिरि को मठ का उत्तराधिकारी बनाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते कि वो मठ की संपत्ति और जमीनों की रक्षा करें। उसका दुरुपयोग न करें।
तारीखों में समझिए नरेंद्र गिरि के बदलते वसीयतनामे
- 7 जनवरी 2010 को वसीयत की। इसमें बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बताया।
- 29 अगस्त 2011 को वसीयत पलटकर आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बना दिया।
- 2 जून 2020 को फिर महंत नरेंद्र गिरी ने नई वसीयत रजिस्टर्ड कराई। इसमें बलवीर को उत्तराधिकारी बनाया।
क्या लिखा है महंत ने वसीयतनामे में
नरेंद्र गिरि ने लिखा है कि मेरे ब्रह्मलीन होने या स्वेच्छा से पद का त्याग कर देने पर मठ बाघंबरी गद्दी प्रयागराज के महंत स्वामी बलवीर गिरि होंगे और मेरी सभी चल-अचल संपत्ति के मालिक होंगे। मठ बाघंबरी गद्दी की प्राचीन परंपरा के अनुसार आज यानी 2 जून 2020 को ही एक नई कार्यकारिणी मंडल को नामित करके पंजीकृत कराया है।
इस मंडल की राय और स्वीकृति से बलवीर गिरि सारे काम संपन्न कराएंगे। इसके लिए वे बाध्य होंगे। कार्यकारिणी मंडल के बहुमत से सारे फैसले लेंगे। नरेंद्र गिरि ने वसीयत में यह भी लिखा कि यह मेरी तृतीय वसीयत है जो कि अंतिम है। 7 जनवरी 2010 और 29 अगस्त 2011 की वसीयत को निरस्त माना जाए। यह अंतिम वसीयत मेरी मृत्यु की तिथि से प्रभावी होगी और विधि मान्य होगी।
बलवीर के नाम पर निरंजनी अखाड़े के सचिव ने भी मुहर लगाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट श्रवण त्रिपाठी के अनुसार फिलहाल अगर CBI जांच में बलवीर गिरि दोषी पाए जाते हैं तो उनका उत्तराधिकार का दावा अपने आप खारिज हो जाएगा, लेकिन केवल आरोपों के आधार पर रजिस्टर्ड वसीयत नामे को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते। कानूनी रूप से उत्तराधिकार से बलवीर को वंचित नहीं किया जा सकता है।
श्री बाघंबरी गद्दी मठ में पत्रकारों से बातचीत में निरंजनी अखाड़ा के सचिव रवींद्र पुरी ने कहा कि हमारा उत्तराधिकार को लेकर कोई विवाद ही नहीं है। अखाड़े में उत्तराधिकार के पीछे कुछ शर्तें होती हैं, जिसे मानने के लिए आप बाध्य होते हैं। इनमें प्रमुख शर्त मठ-मंदिर और अखाड़े की जमीन और संपत्ति को न बेचना और उनकी सुरक्षा करना है।
हमारा मुख्य मकसद मठ, जमीन और धन की सुरक्षा है। बलवीर गिरि के नाम नरेंद्र गिरि वसीयत करके गए हैं, क्या आप उसे मानेंगे? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि मानूंगा क्यों नहीं। उत्तराधिकारी के लिए रजिस्टर्ड वसीयतनामा है तो उसे माना जाएगा।