निर्भया मामला और देश की नतमस्तक कानून व्यवस्था

डाॅ. रमेश ठाकुर
विधि इतिहास में राममंदिर मसले के अलावा निर्भया कांड दूसरा ऐसा केस है जो हिंदुस्तान ही नहीं, बाहर भी चर्चा का विषय है। मंदिर मसला तो निपट गया लेकिन निर्भया केस अदालतों की चौखट पर अभी भी इंसाफ मांग रहा है। फैसले की घड़ी नजदीक आकर भी दूर चली जाती है। दोषियों को फांसी भी मुकर्रर हो जाती है पर जब तारीख पास आती है तो उनकी फांसी टल जाती है। निर्भया केस में डेथ वारंट के नाम पर खिलवाड़ एक बार नहीं, तीन हुआ। तीनों बार दोषियों ने लचर न्यायतंत्र का फायदा उठाया।
बीते चालीस दिनों में तीन बार फांसी टल जाने के बाद देशवासी भी न्यायतंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने लगे हैं। उनके सब्र का बांध भी अब टूटने लगा है। निर्भया के साथ जैसी क्रूरता आधा दर्जन दरिंदों ने की थी, उसे याद करके आज भी रूहें कांप उठती हैं। दोषियों ने बच्ची को जानवरों की भांति नोचा था। शरीर में कुछ नहीं छोड़ा था, सिवाए कुछ सांसों के? दिल्ली से लेकर सिंगापुर तक जिस तरह से अपने जीवन को बचाने के लिए निर्भया ने संर्घष किया था, उसे देखकर कलेजा कांप उठता है। जिस दिन बच्ची की सांसों ने उनके शरीर से साथ छोड़ा था, समूचा देश रो पड़ा था। तब ऐसा लगा कि निर्भया किसी और की बहन या बेटी नहीं, बल्कि उनकी ही है। ऐसे दरिंदों पर रहम दिखाने का मतलब, विधितंत्र से जनमानस के विश्वास को कम करना होगा? मौजूदा वक्त में अदालतें ही लोगों की आखिरी उम्मीद हैं। स्थानीय पुलिस-प्रशासन, जनप्रतिनिधि, अफसरशाही और सिस्टम से पहले ही लोग दुखी हैं। सिर्फ न्यायतंत्र पर ही सभी का अटूट विश्वास है। अगर वहां भी निर्भया के माता-पिता की तरह निराशा हाथ लगेगी तो किस पर लोग विश्वास करेंगे।
निर्भया मामले में कोर्ट की लचरता से कई सवाल खड़े हुए हैं। खैर, देर आए दुरूस्त आए। देश-दुनिया को झकझोर देने वाले निर्भया कांड के दोषियों की फांसी के लिए फिलहाल दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने नया डेथ वारंट जारी किया है। यह चौथा डेथ वारंट है, इससे पहले तीन डेथ वारंट जारी हुए, जो फांसी की मुकर्रर तारीख के एक दिन पहले तक निरस्त होते रहे। दोषियों को सूली पर लटकाने के लिए कोर्ट ने अब चौथा वारंट जारी किया। पहले डेथ वारंट पर देशवासियों ने जो उत्सुकता दिखाई थी, वह दूसरे और तीसरे में नहीं दिखाई। चौथे डेथ वारंट पर तो लोग एकदम शांत हैं। दरअसल, अब लोगों को भरोसा ही नहीं है कि इसबार भी फांसी होगी भी या नहीं? अदालतों के ऐसे रवैये पर सामाजिक स्तर पर बहस का छिड़ना स्वाभाविक भी है।
लोग कोर्ट के रवैये को देखते हुए उनकी गंभीरता पर भी सवाल उठाने लगे हैं। पहला डेथ वारंट जब जारी हुआ था तो लोगों ने न्याय के प्रति विश्वास बढ़ा था लेकिन लचर अदालती प्रक्रिया ने लोगों के मन को ढेस जरूर पहुंचाया है। बहरहाल, कोर्ट द्वारा जारी नए डेथ वारंट के मुताबिक इसी माह की बीस तारीख के तड़के सुबह निर्भया के चारों दोषियों को फांसी पर लटकाया जाएगा। निर्भया के दोषियों के सभी कानूनी विकल्प बीते तीन मार्च को उस वक्त खत्म हो गऐ थे, जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चौथे दोषी पवन गुप्ता की दया याचिका को खारिज कर दिया था। बाकी के तीन आरोपियों की दया याचिका तो पहले ही खारिज की जा चुकी थी। कानूनी पचड़ों को निपटने के बाद तिहाड़ जेल प्रशासन फांसी की नई तारीख लेने पटियाला हाउस कोर्ट पहुंचा था। तिहाड़ जेल प्रशासन ने भी कोर्ट में दलीलें रखी कि निर्भया के सभी दोषियों के कानूनी विकल्प समाप्त हो चुके हैं। अब किसी दोषी की कोई की याचिका कहीं भी लंबित नहीं है। ऐसे में कोर्ट को नया डेथ वारंट जारी करना चाहिए। दोषियों की फांसी के लिए तीन बार डेथ वारंट जारी किया जा चुका है लेकिन तीनों बार ही उनकी फांसी टल गई थी। कोर्ट ने उनकी दलीलों को सुनने के बाद ही नया डेथ वारंट जारी किया।
बहरहाल, आरोपियों के वकील को अभी भी उम्मीद है कि चौथा डेथ वारंट भी खारिज होगा। शायद उनके दिमाग में अब भी कोई तिकड़म है, जिसे भिड़ाने का प्रयास करेंगे। कानूनी प्रक्रियाओं के अलावा मानसिक तौर पर कोर्ट को उलझाने का प्रयास किया जा सकता है। बीमारी का बहाना भी किया जाएगा। फांसी पर चढ़ने से पहले दोषी का स्वस्थ्य होना जरूरी है। दोषियों का वकील एपी सिंह जजों पर मीडिया के दबाव में फैसला लेने का आरोप लगा रहा है। सिंह ने चारों दोषियों की फांसी को उम्रकैद में तब्दील करने की मांग रखी है। चौथे डेथ वारंट के मौके पर एपी सिंह ने अदालत में कहा, जो आरोप इन चारों पर हैं वैसे आरोप कई नेताओं, अभिनेताओं एवं देश के अनगिनत लोगों पर हैं। जब इनको सूली पर लटकाने की इतनी जल्दी है तो उनपर रहम क्यों दिखाया जा रहा है। इसके अलावा उन्होंने और भी कई दलीलें कोर्ट में रखी। हालांकि कोर्ट ने उनकी सभी दलीलों को हमेशा की तरह नकारा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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