चंडीगढ़: सुखबीर सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। तीन दशकों से भी अधिक समय से बादल परिवार का शासन समाप्त हो गया है। पार्टी अब नए नेतृत्व की तलाश में है। यह फैसला पार्टी के लिए कई चुनौतियों के बीच आया है, जिसमें चुनावी प्रदर्शन में गिरावट और आंतरिक असंतोष शामिल है। यह पहली बार है कि 30 से अधिक वर्षों में बादल परिवार का कोई सदस्य शिरोमणी अकाली दल का नेतृत्व नहीं करेगा। इससे पार्टी के भविष्य और उसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं।
सिख वोट बैंक क्यों हुआ नाराज
बादल परिवार का अकाली दल पर प्रभाव 1990 के दशक में शुरू हुआ जब प्रकाश सिंह बादल ने पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत की। उनका नियंत्रण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और यहां तक कि अकाल तख्त तक था। उनके बेटे, सुखबीर सिंह बादल, 2008 में अकाली दल के अध्यक्ष बने। यह पार्टी की पुरानी परंपरा से अलग था, जहां योग्यता के आधार पर नेतृत्व का चयन होता था। बादल परिवार का अकाली दल के साथ जुड़ाव इतना गहरा हो गया था कि पार्टी की असफलताएं भी परिवार से जुड़कर देखी जाने लगीं। 2015 में हुई बेअदबी की घटनाओं और उसके बाद पुलिस की कार्रवाई ने पार्टी के पारंपरिक सिख वोट बैंक को नाराज कर दिया था।
2022 चुनाव में पार्टी ने सिर्फ तीन सीटें जीतीं
सुखबीर को अपने करियर के सबसे कठिन दौर का सामना करना पड़ रहा है। 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में अकाली दल को सिर्फ तीन सीटें मिलीं। यह पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। सुखबीर का इस्तीफा ऐसे समय आया है जब अकाली अपनी पहचान और प्रासंगिकता के संकट से जूझ रही है। एक समय यह पार्टी सिखों के एकमात्र राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में जानी जाती थी। यह संकट पार्टी के लिए अपने जनाधार से फिर से जुड़ने, अपनी रणनीतियों को बदलने और वंशवादी राजनीति से बाहर निकलने का अवसर है।