पहली नजीर नहीं हैं जस्टिस अब्दुल, ये SC जज भी पहले बन चुके हैं गवर्नर

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का गवर्नर बनाया गया है। संविधान के मुताबिक इस फैसले में कोई खामी नहीं है, लेकिन एक जज को इस तरह का अहम पद दिए जाने की नैतिकता पर बहस तेज हो गई है। कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े किए हैं और न्यायपालिका की निष्पक्षता के लिहाज से गलत बताया है।

जस्टिस अब्दुल नजीर 4 जनवरी को ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के पद से रिटायर हुए थे और 12 फरवरी को उन्हें गवर्नर की जिम्मेदारी दे दी गई। 2017 में जज बनने वाले नजीर ने करीब 6 सालों तक सुप्रीम कोर्ट में काम किया था। इससे पहले वह कर्नाटक हाई कोर्ट में रहे थे।

जस्टिस अब्दुल को गवर्नर बनाया जाना एक गलत नजीर बताया जा रहा है, लेकिन यह पहला मौका नहीं है, जब किसी जस्टिस को गवर्नर बनाया गया है। इससे पहले भी ऐसी ही नजीर सरकारों द्वारा पेश की गई हैं। जस्टिस अब्दुल नजीर बाबरी मस्जिद केस और तीन तलाक जैसे अहम मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच का हिस्सा रहे हैं।

जस्टिस नजीर से पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम और पूर्व जस्टिस एम. फातिमा बीवी भी गवर्नर बन चुकी हैं। जस्टिस पी. सदाशिवम को 2014 में केरल का गवर्नर बनाया गया था। नजीर से पहले यह आखिरी मौका था, जब किसी जज को गवर्नर बनाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस तक रहने वाले पी. सदाशिव ने मद्रास हाई कोर्ट के अलावा पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में भी जज के तौर पर काम किया था। 2007 में वह सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बने थे और फिर 2013 से 2014 तक चीफ जस्टिस रहे। रिटायर हुए तो एनडीए सरकार ने उन्हें केरल का गवर्नर बना दिया।

तब भी सदाशिवम को गवर्नर बनाए जाने की काफी निंदा हुई थी। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट में देश की पहली महिला जस्टिस रहीं एम. फातिमा बीबी को भी 1997 से 2001 तक तमिलनाडु के राज्यपाल के तौर पर मौका मिला था। वह 1992 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थीं।

फातिमा बीबी ने सुप्रीम कोर्ट से पहले कर्नाटक हाई कोर्ट में बतौर जस्टिस काम किया था। फातिमा बीबी ने 1 जुलाई, 2001 को गवर्नर के पद से 5 साल पूरे होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। दरअसल उन्होंने मई 2001 में जयललिता को सरकार बनाने का न्योता दे दिया था।

इसके बाद जयललिता सरकार ने रातोंरात पूर्व सीएम करुणानिधि और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार करा लिया था। इस मामले में फातिमा बीबी के फैसले की आलोचना हुई थी। इसी को लेकर अटल सरकार से फातिमा बीबी के मतभेद पैदा हो गए और अंत में उन्होंने पद से ही इस्तीफा दे दिया।

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