शिमला। माल रोड पर लगे दोनों पार्टियों (कांग्रेस-बीजेपी) के पोस्टर-बैनर से ही हिमाचल प्रदेश में हो रही चुनावी लड़ाई के तरीकों में अंतर साफ दिख जाता है। बीजेपी के पोस्टरों में काशी और अयोध्या समेत विभिन्न तीर्थस्थलों के विकास के लिए ‘डबल इंजन की सरकारों’ और अपने हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता के गान देखने को मिलेंगे। इसके अलावा यह भी बताया जा रहा है कि हिमाचल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘कर्मभूमि’ है।
दूसरी ओर, कांग्रेस के पोस्टरों में खाली पड़े 60-70 हजार पदों को भरने समेत एक लाख लोगों को रोजगार देने और पहली ही कैबिनेट बैठक में सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) देने की घोषणा तो है ही, यह भी कहा गया है कि वह महिलाओं को 1500 रुपये मासिक देने की गारंटी और 300 यूनिट फ्री बिजली देगी।
पहले राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार और बाद में छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने जब सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम दोबारा चालू करने की घोषणा की, बीजेपी तब से ही इस मुद्दे पर घिरती रही है। यूपी और उत्तराखंड के चुनावों में तो यह मुद्दा किसी तरह दबा रहा, लेकिन हिमाचल और गुजरात में भी यह बीजेपी को परेशान कर रहा है।
बीजेपी के गले की हड्डी बनी पुरानी पेंशन स्कीम
पुरानी पेंशन स्कीम का फायदा फिलवक्त 90,000 सरकारी कर्मचारियों को मिल रहा है, लेकिन 1.5 लाख कर्मचारी ऐसे हैं जो नई पेंशन स्कीम के दायरे में हैं। पुरानी पेंशन स्कीम का मुद्दा इतना गर्म है कि अब बीजेपी की हर सभा में यह बात कही जा रही है कि सिर्फ वही इसे लागू कर सकती है। यही नहीं, हिमाचल में नशाखोरी बढ़ते जाने की शिकायतें आम होती गई हैं और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक इस पर अंकुश लगाने का वादा कर रहे हैं।
जनता का मूड इस तरह विपरीत दिखने की वजह से ही बीजेपी ने चुनाव घोषणा पत्र जारी करने में भी यथासंभव देर की है जबकि अन्य राज्यों में वह इसे काफी पहले जारी करती रही है। मतदान से एक सप्ताह से भी कम समय पहले 6 नवंबर को उसने इसे जारी करने की तिथि तय की।
जयराम सरकार में ‘लूट की छूट’
कांग्रेस की ओर से बीजेपी सरकार के खिलाफ 23 पृष्ठों का एक आरोप पत्र भी जारी किया गया है। इसमें मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों और विभागों पर संगीन आरोप लगाए गए हैं और उसका दावा है कि सत्ता में आते ही आरोप पत्र में लिखित मामलों की विजिलेंस जांच करवाई जाएगी। इसे जारी करते हुए पार्टी नेता पवन खेड़ा ने यहां तक कहा कि जयराम ठाकुर सरकार ने राज्य में ‘लूट की छूट’ दी हुई है।
मुद्दे और भी हैं…
प्रचार का इस किस्म का माहौल देखते हुए ही राजनीतिविज्ञानी प्रो. मोहन झारटा कहते हैं कि इन चुनावों में ओपीएस, बेरोजगारी, महंगाई, सेब, भर्तियों में अनियमितताएं और भाई-भतीजावाद अहम मुद्दे हैं। इन्हें लेकर लोगों में रोष देखा जा रहा है जिसका खामियाजा भाजपा को झेलना पड़ सकता है। शिमला क्षेत्र के जोगेंद्र सिंह भी मानते हैं कि हिमाचल में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है और रोजगार सृजन बड़ा मुद्दा है। अन्य राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि ये मुद्दे बीजेपी को इन चुनावों में नुकसान तो पहुंचाएंगे ही, साथ ही परिवारवाद और पार्टी में हुई बगावत भी उनकी जीत की आस को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
बागियों से भी उड़ी है बीजेपी की नींद
वैसे, बीजेपी के लिए एक बड़ी दिक्कत बागियों का मैदान में होना है। बगावत तो कांग्रेस में भी हुई थी लेकिन वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप से वह अंततः सीमित हो गई। लेकिन, बीजेपी में इसके सुर कुछ ज्यादा ही बिगड़े हुए दिख रहे हैं।
21 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी प्रत्याशियों के विरोध में बागियों ने भी नामांकन भर दिए। बीजेपीके बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद केवल 4 बागी ही मान पाए, जबकि 17 अब भी डटे हुए हैं। बागियों में से कई पूर्व विधायक तो कई पार्टी में अच्छे ओहदे वाले पदाधिकारी भी शामिल हैं। नालागढ़, आनी, सुंदरनगर, मंडी, बंजार, धर्मशाला, बड़सर, फतेहपुर, कांगड़ा, इंदौरा, बिलासपुर सदर, हमीरपुर सदर, कुल्लू, किन्नौर, नाचन, मनाली, चंबा सदर ऐसे हलके हैं जहां बागी भाजपा के गणित को बिगाड़ सकते हैं।
परिवारवाद के आरोप भी झेल रही है बीजेपी
लोगों में असली गुस्सा यह है कि बीजेपी ने चार विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी नेताओं के परिवारों के सदस्यों को चुनावों में उतारा है। बीजेपी ने पूर्व जल शक्ति मंत्री के पुत्र रजत ठाकुर, मंत्री और विधायक रह चुके नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा, आरडी धीमान के बेटे अनिल धीमान और पूर्व विधायक बलदेव शर्मा की पत्नी और चंबा के पूर्व विधायक की पत्नी को भी टिकट दिया है। पालमपुर के युवा पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं कि बीजेपी जो परिवारवाद को लेकर बड़े-बड़े दावे करती थी लेकिन वह भी परिवारवाद को बढ़ावा दे रही है। इसका असर चुनावों में देखने को मिलेगा।
इतना ही नहीं, पेरोल पर छूटे विवादास्पद बाबा और बलात्कार के मामले के आरोपी राम रहीम के कार्यक्रम में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और उद्योग मंत्री रहे विक्रम ठाकुर के शामिल होने का वीडियो वायरल हो गया है। इसे लेकर बीजेपी को सफाई देनी पड़ रही है।
वैसे, भले ही भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का प्रचार प्रत्यक्ष तौर पर कमतर लगता हो लेकिन विभिन्न मुद्दों को लेकर विभिन्न वाट्सएप ग्रुप में जिस तरह बहस-मुबाहिसा चल रहे हैं, उसने भाजपा के लिए चिंताएं पैदा की हैं। भाजपा वाट्सएप ग्रुपों के जरिये फेक न्यूज भी चला रही है लेकिन उसका असर होता नहीं दिख रहा। युवा संजय शर्मा इसीलिए कहते हैं कि कांग्रेस का प्रचार-प्रसार भाजपा के मुकाबले कम देखा जा रहा है लेकिन कांग्रेस की ओर से दी गई गारंटियों से मतदाताओं, खासकर महिलाओं, सेब बागवानों और कर्मचारियों में एक नई आस जगी है।
इन दिनों राष्ट्रीय राजमार्ग 5 से सोलन की तरफ जाते हुए पिंजौर-परवानू इलाके से गुजरें, तो सड़क किनारे खड़े ट्रकों से आती बदबू कई किलोमीटर तक आपको परेशान कर देगी। इन ट्रकों पर सेब लदे होते हैं। बाजार में बिक जाने वाले सेबों के अतिरिक्त अन्य फसल को बागवान सरकारी खरीद के लिए भेज देते हैं। इनकी खरीद का जिम्मा हिमाचल बागवानी उत्पाद मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग कॉरपोरेशन (एचपीएमसी) और हिमाचल राज्य सहकारिता मार्केटिंग एंड कंज्यूमर्स फेडरेशन (हिमफेड) पर है। सेबों की खरीद में इतनी देर हो जाती है कि ट्रकों को कई दिनों तक सड़क किनारे खड़ा रहना पड़ता है और गर्मी की वजह से वे सड़ने लगते हैं।
परवानू में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी प्रदीप मुद्गल इस बदबू के बारे में एचपीएमसी अधिकारियों से कई बार कह चुके हैं लेकिन कॉरपोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि ‘जगह की कमी की वजह से’ ट्रकों को पार्किंग की जगह नहीं मिलती। दिक्कत यह भी है सेब कि ट्रक स्टाफ सड़े सेबों को यहां-वहां फेंक देते हैं।
सेब बागवानों की नाराजगी अब खुलकर आ गई है सामने
जम्मू-कश्मीर के बाद हिमाचल सबसे अधिक सेब उत्पादन करने वाला प्रदेश है। सेब की मार्केटिंग में अडानी समूह समेत विभिन्न बड़े उद्योगपतियों के प्रवेश से सेब उगाने वाले बागवानों को फसल की कीमत वैसे ही कम मिलने लगी है, उन्हें लेकर सरकारी रवैया भी दिनोंदिन बदतर होता जा रहा है। इसीलिए 12 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा बड़ा होकर उभरा है।
कांग्रेस ने जिस तरह सेब बागवानों के लिए सेब के दाम खुद तय करने की गारंटी की घोषणा की है, उससे बीजेपी का परेशान हो जाना स्वाभाविक ही है। सेब बागवानों के 30 संगठनों से मिलकर बने संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा भी है कि सेब बागवान केवल उस पार्टी का समर्थन करेंगे जो किसान-बागवानों की 20 सूत्री मांगों को मानेगी। उन्होंने कहा कि सेब के लिए उचित कोल्ड स्टोरेज की सुविधा न होने के चलते बहुत अधिक मात्रा में सेब खराब हो जाता है जिसे नाम मात्र के मूल्य में बेचने पर बागवानों को मजबूर होना पड़ता है।