पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने पर ब्राजील से सबक ले भारत, गन्ने के लिए अब सूखे के हालात

नई दिल्ली। भारत ने 2025 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने का फैसला लिया है। इससे वायु प्रदूषण में तो कमी आती है, लेकिन जल प्रदूषण और जल-भोजन की असुरक्षा भी खड़ी हो जाती है। इस मामले में डॉ. जेनिफर ईग्लिन का कहना है कि भारत को पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने के मामले में ब्राजील के बारे में जरूर जानना चाहिए। जेनिफर ब्राजील में एथेनॉल विशेषज्ञ हैं। हाल में उनकी पुस्तक ‘स्वीट फ्यूल’ आई है।

ब्राजील के रास्ते पर चले भारत
भारत में ई-20 प्रोजेक्ट के तहत 2025 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाया जाने लगेगा। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट बताती है कि ऐसा करके भारत सालाना 30 हजार करोड़ रुपए का पेट्रोलियम खर्च बचाएगा। यह कुल खर्च का 0.7% होगा। अब भारत को तय करना है कि वह 0.7% तेल के खर्च बनाम जल, जंगल, जमीन में से क्या बचाना चाहता है।

एथेनॉल ग्रीन फ्यूल क्यों है?
किसी भी स्टार्च वाली फसल जैसे आलू, अंगूर, गन्ना, मक्का आदि से एथेनॉल बनाया जा सकता है। पेट्रोलियम से चलने वाली कारों की तुलना में एथेनॉल कारें 70% कम हाइड्रोकार्बन, 30% कम नाइट्रोजन और 65% कम कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ती हैं। एथेनॉल चलित वाहनों से वायु प्रदूषण नहीं होता। इसलिए यह ग्रीन फ्यूल है।

ब्राजील का अनुभव कैसा रहा है?
ब्राजील में 1964 से 1985 के बीच इसमें तेजी आई, जब सैन्य तानाशाही का दौर था। 70 के दशक में गैसोलीन में 20% एथेनॉल इस्तेमाल की छूट दी गई। 1979 में महज 0.3% कारें एथेनॉल पर चलती थीं। 1985 में यह आंकड़ा 96% तक पहुंच गया। जल प्रदूषण और भोजन असुरक्षा के कारण 1998 तक यह संख्या घटकर महज 0.1% रह गईं। 2003 में हाइब्रिड कारों को अनुमति दी गई, जो एथेनॉल-गैसोलीन दोनों से चलती थीं। ब्राजील के अनुभवों से सबक लेना चाहिए।

जेनिफर ईग्लिन अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में एनवायरनमेंट हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं।
जेनिफर ईग्लिन अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में एनवायरनमेंट हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं।

एथेनॉल से क्या समस्या आती है?

  • इसे बनाने की प्रक्रिया में जल प्रदूषण होता है। पानी भी कई गुना लगता है। फॉसिल फ्यूल से एक गीगाजूल ईंधन की तुलना में एथेनॉल से इतना ईंधन बनाने में 78 गुना पानी लगता है।
  • एक लीटर एथेनॉल बनाने में 10 से 16 लीटर विषैला बाई-प्रोडक्ट विनास निकलता है। इसे जल स्रोतों में बहाया जाता है। 1979 से 1985 तक एथेनॉल का उत्पादन 50 करोड़ लीटर से बढ़कर 1000 करोड़ लीटर सालाना हो गया था। दिसंबर 2021 तक वहां जल स्रोतों का स्तर 80% तक घट गया। 20 साल में सबसे भयावह सूखा पड़ा।
  • 1 लीटर एथेनॉल में 5,130 किलो कैलोरी एनर्जी होती है, लेकिन इसमें 6.6 किलो कैलोरी एनर्जी खर्च हो जाती है। यानी बनाने में ही 22.3% एनर्जी का नुकसान। भूख मिटाने के लिए अनाज उगाना अनिवार्य है, लेकिन ईंधन बनाने के लिए अनाज उगाना विनाशकारी साबित हो सकता है।

क्या इलेक्ट्रिक गाड़ियों को एथेनॉल के साथ हाइब्रिड करना उचित होगा?
इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट बताती है कि एक साल में एक हेक्टेयर जमीन पर लगे सोलर प्लांट से चार्ज कर एक ईवी कार जितना रास्ता तय करेगी, उतना रास्ता एथेनॉल से तय करने में 187 हेक्टेयर जमीन लगेगी। जल-भोजन असुरक्षा, जल प्रदूषण अलग। आप खुद तय कर लीजिए।

ब्राजील में तो काफी जंगल बचे हैं?
ब्राजील के उत्तर में अमेजन और दक्षिण में अटलांटिक जंगल हैं। गन्ना आधारित एथेनॉल उत्पादन से अटलांटिक का 85% हिस्सा नष्ट हो चुका है। 17 राज्यों में से 4 में 90% तक जंगल नष्ट हो चुका है। गन्ने ने अन्य फसलों की जगह लील ली, इसलिए उन फसलों के लिए जगह बनाने के लिए अमेजन जंगल की कटाई तेज हो गई है। इस कटाई से ब्राजील की आबोहवा में सालाना 1 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड घुल रही है। यानी जल के साथ वायु प्रदूषण और गर्मी में इजाफा भी।

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