प्रयागराज : परदेशी खुशी के साथ दे रहे कोरोना की आफत, गांव हो रहे सील

प्रयागराज। बहरिया ब्लाक के धमौर गांव से परदेश कमाने गए पिता-पुत्र घर किसी तरह पहुंचे तो आफत सी गई। कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही पूरा गांव सील कर दिया गया। मुम्बई में रहने वाले इस गांव के सैकड़ो लोग है। लेकिन जो लोग गांव पहुंच रहें है उनके घर वाले खुश तो हुए लेकिन कोरोना का भय सता रहा है। जनपद मुख्यालय से लगभग 32 किलोमीटर दूर इस गांव में अधिकतर युवा एवं और परिवार के लोग जीविका चलाने के लिए मुम्बई, गुजरात, पंजाब, भिमण्डी, औरंगाबद, दिल्ली समेत अन्य प्रदेशों में रहते है। कुछेक लोग सउदी में भी गए हैं।
ग्राम प्रधान रामचन्द्र ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते गांव किसी तरह वापस तो पहुंचे हैं, लेकिन कोई सही जानकारी नहीं दे रहा है। हालांकि गांव में घूमते ही लोग समझ जाते हैं कि प्रधान बाहर से आने वालों का पता लगाने के लिए पहुंचे हैं।
 पहली बार मुम्बई कमाने गया धमौर चकिया निवासी राम आसरे पटेल का बेटा मनोज ने बताया कि मैं गांव के ही एक युवक के साथ पहली बार गया। काम मिल गया था, लेकिन कोरोना के चलते काम ठप हो गया। जब खाने की समस्या हुई तो वहां से किसी तरह जान बचाकर चल दिया। कुछ दूर पैदल आने के बाद एक ट्रक में सवार होकर किसी तरह गांव पहुंचा तो पिता ने कहा कि घर से बाहर ही रहो, यह सुनते ही मेरे आंख से आंसू गिरने लगे। यह देखते ही मेरी मां और पिता ने कहा परेशान होने की जरूरत नहीं है। पहले पानी पियो और आराम करो। मुझे आए बीस दिन बीत गया है। कहा कि ‘अब मैं कभी परदेश नहीं जाऊंगा।’
गुजरात से लौटे लल्लन पुत्र बैजनाथ ने बताया कि वहां मैं गाड़ी चलाता था। लगभग पांच वर्ष से रह रहा था। परिवार के लोगों ने इसी कमाई के सहारे मेरी शादी जून माह में तय किया है, लेकिन इस महामारी के चलते वहां से जान बचाकर आना पड़ा, गाड़ियों का पहिया थम गया था। कई समस्याएं हो रही थी, जिससे किसी तरह वह दस दिन पहले ट्रक के माध्यम से प्रदेश में पहुंचा और योगी जी की बस सेवा के माध्यम से गांव पहुंचा। ‘अब जाने की इच्छा तो नहीं है लेकिन कैसे चलेगा परिवार का खर्च।’
मुम्बई से लौटे सुरेश का कहना है कि वहां एक कम्पनी में काम करता था। सोचा था कि छोटी बेटी की शादी के लिए पैसा कमा लेंगे, लेकिन लाकडाउन के चलते खाने के लाले पड़ गए। जिससे किसी तरह वहां से गांव पहुंचा आया हूं यहां भी तो कोई काम नहीं है। कैसे परिवार का खर्च चलेगा। एक बेटा है उसको भी पढ़ाना है। जाने की इच्छा तो नहीं है, लेकिन काम शुरू होगा तो फिर जाना ही पड़ेगा।
धमौर चकिया के निवासी इशरार का दामाद व नाती मो. यासीन और मोहम्मद साहब लगभग दस वर्ष से मुम्बई में रहकर प्राइवेट काम करते थे। लेकिन लाकडाउन के चलते किसी तरह गांव तो पहुंचे, लेकिन जब कोरोना की जांच हुई तो पूरे गांव को सील कर दिया। इशरार ने बताया कि मेरा दामाद लौट तो आए लेकिन कोरोना लेकर आए। जिससे पूरे गांव को सील कर दिया गया है। ऐसी हालत हो गई है कि लोग अब बाहर कैसे कमाने जाएंगे।

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