लखनऊ। जितिन प्रसाद ने बुधवार को कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। वे कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के बेहद करीबी माने जाते थे। गांधी परिवार के इतने करीब होते हुए भी उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला क्यों किया, यह बात लोगों के दिलों में खटक रही है। लेकिन जानकार बताते हैं कि यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ।
वे प्रियंका गांधी के बेहद ख़ास सलाहकार संदीप सिंह और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार सिंह लल्लू के खिलाफ थे और उनके खिलाफ प्रियंका गांधी से कई बार शिकायत भी कर चुके थे। लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई होते न देख उन्होंने पार्टी का साथ छोड़ने का फैसला कर लिया।
सूत्रों के मुताबिक, जितिन प्रसाद कांग्रेस पार्टी के अंदर लगातार अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उन्हें लग रहा था कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार सिंह लल्लू और संदीप सिंह उत्तर प्रदेश के लिए लिए जा रहे अहम मामलों में उन्हें शामिल नहीं कर रहे हैं। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश के जिन अभियानों में प्रियंका गांधी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर कांग्रेस को प्रदेश में मजबूत करने की कोशिश कर रही थीं, उन्हें उनसे भी दूर रखा जा रहा था।
लोकसभा चुनाव 2019 के समय भी उन्हें इसी तरह की शिकायत थी कि उनके कद के मुताबिक उन्हें उत्तर प्रदेश में जिम्मेदारी नहीं दी जा रही थी। तब भी कयास लगाये जा रहे थे कि वे कभी भी कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम सकते हैं। कहा जाता है कि तब प्रियंका गांधी ने जितिन प्रसाद को केन्द्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने और भविष्य में उनके लिए प्रदेश में जरूरी भूमिका की बात कहकर उन्हें भाजपा में जाने से रोक लिया था। लेकिन इस बार उन्होंने यह निर्णय कर ही लिया।
जितिन प्रसाद अपने गृह नगर में ब्राह्मण चेतना मंच बनाकर ब्राह्मणों की राजनीति को हवा दे रहे थे। वे इस संगठन से युवा ब्राह्मणों को लगातार जोड़ रहे थे और इसमें काफी सफल भी हो रहे थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी अगले विधानसभा चुनाव के पहले किसी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करे, या किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करे। लेकिन कथित तौर पर संदीप सिंह और अजय कुमार सिंह लल्लू के कारण उनकी यह सोच जमीन पर नहीं उतर पा रही थी। लिहाजा अपनी बातों पर कोई सकारात्मक फैसला होते न देख उन्होंने कांग्रेस को छोड़ने का निर्णय कर लिया।
जितिन प्रसाद के ही करीबी नेता मानते हैं कि उन्होंने जिस मुहिम को लेकर कांग्रेस का साथ छोड़ दिया, वे भाजपा में जाने के बाद भी वह काम नहीं कर पायेंगे। भाजपा योगी आदित्यनाथ के रहते न तो किसी दूसरे (ब्राह्मण) को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर पाएगी और न ही सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी किसी ब्राह्मण को सौंप सकेगी। इस पर अभी स्वतंत्र देव सिंह का कब्ज़ा है और अगर बदलाव भी हुआ तो यह पद केशव प्रसाद मौर्य के पास ही जाने की संभावना ज्यादा है जो पिछड़े वर्ग के एक लोकप्रिय चेहरे बनकर उभर रहे हैं।
दरअसल, सच्चाई यह है कि भाजपा के पास इस समय कोई ब्राह्मण चेहरा नहीं है। कलराज मिश्रा का जमाना खत्म हो चुका है तो लक्ष्मीकांत वाजपेयी प्रदेश के बड़े नाम होने के बावजूद ब्राह्मणों के नेता के तौर पर नहीं देखे जाते। पार्टी के अंदर दिनेश शर्मा उपमुख्यमंत्री के रूप में तो ब्रजेश पाठक और अन्य मंत्रियों के रूप में मंत्रिमंडल में मौजूद हैं। लेकिन इनमें से कोई भी ब्राह्मणों का नेता नहीं कहा जा सकता है। लिहाजा भाजपा किसी ऐसे बड़े चेहरे की तलाश में है जिसे वह ब्राह्मणों के चेहरे के रूप में स्थापित कर सके। जितिन प्रसाद को इसी कोटे की भरपाई के रूप में देखा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार के कामकाज को लेकर प्रदेश के ब्राह्मण स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और इस चुनाव में भाजपा के खिलाफ मतदान कर सकते हैं। यही कारण है कि भाजपा अपने तमाम फैसलों के साथ ब्राह्मण मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रही है। इसी क्रम में एक दिन पहले ही रिटायर् आईएएस अधिकारी अनूप चन्द्र पाण्डेय को निर्वाचन आयुक्त बनाने का निर्णय किया गया, तो प्रदेश के कई शीर्ष पदों पर ब्राह्मणों को जगह दी गई। जितिन प्रसाद को साथ लाने का मतलब इसी वोट बैंक को साधना है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम ने अमर उजाला से कहा कि जितिन प्रसाद एक युवा और प्रतिभाशाली नेता हैं। कांग्रेस में रहकर उन्होंने जनता के हितों की लड़ाई लड़ी और कमजोर वर्गों की आवाज उठाई। अगर वे संगठन के साथ रहते तो पार्टी के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होते। उन्होंने कहा कि एक ऊर्जावान साथी का पार्टी से जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।