श्रीनगर। कश्मीर में इस साल सर्दियों ने तीस साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और बर्फबारी ने पिछले दस सालों का। श्रीनगर में 26 जनवरी भी चार से पांच फीट बर्फबारी और -2.4 डिग्री के बीच मनाई गई। दक्षिण कश्मीर से लेकर मध्य कश्मीर तक भारी बर्फबारी हुई है। ऐसी कड़कड़ाती ठंड कश्मीर के लोगों के डेली रूटीन पर भी असर डालती है।
खानपान से लेकर पहनावा तक, सब बदल जाता है। कश्मीर में सर्दी का यह मौसम वहां टूरिस्टों के भी आने का होता है। और इसी मौसम में यहां की परंपरा और संस्कृति के भी रंग दिखाई देते हैं।
बर्फबारी इतनी, मानों लोग आने-जाने के लिए बर्फ की सुरंगों में सफर कर रहे हैं
इस साल हुई भारी बर्फबारी को लेकर सोशल मीडिया पर इस तरह की कई पोस्ट शेयर हुईं कि दक्षिण कश्मीर में लोग अपने घरों में आवाजाही दूसरी मंजिल से कर रहे हैं। क्योंकि, पहली मंजिल पूरी तरह से बर्फ में दब गई है। कुछ हद तक यह बात सही भी है।
कुछ दिनों पहले पुलवामा के सांगरवानी गांव में छह फीट बर्फ गिरी और लोगों को आने-जाने का रास्ता बनाने के लिए बर्फ के बीच खुदाई करनी पड़ी। एक घर से दूसरे घर या बाजार तक जाने में ऐसा महसूस हो रहा था कि लोग बर्फ की सुरंगों में चल रहे हैं।
चिल्लई कलां… यानी वो 40 दिन, जब ठंड अपने चरम पर होती है
इस समय कश्मीर में चिल्लई कलां चल रहा है। इसे सर्दियों के सबसे कठिन समय के तौर पर जाना जाता है। 40 दिन का चिल्लई कलां 20 दिसंबर से शुरू होकर 31 जनवरी तक रहता है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इन 40 दिनों के दौरान रात का तापमान अक्सर माइनस में चला जाता है।
अधिकतम तापमान भी 6 से 7 डिग्री के ऊपर नहीं जाता है। 40 दिनों की इसी कड़ाके की सर्दी को स्थानीय भाषा में चिल्लई कलां कहा जाता है। कश्मीर के लोग पहले से ही इस हालात के लिए तैयार होते हैं।
चिल्लई कलां के दौरान पूरी तरह से बदल जाती है दिनचर्या
चिल्लई कलां के दिनों में लोग आमतौर पर फेरन पहनते हैं। यह एक लम्बा सा कोट जैसा वस्त्र होता है। युवा, बूढ़े, पुरुष हों या महिलाएं, हर कोई फेरन का इस्तेमाल करता है। फेरन में एक जगह बनी होती है, जहां कांगड़ी रखी जाती है। कांगड़ी मिट्टी के कटोरे से बनी होती है। इसके ऊपर विलो वर्क होता है। इसके कटोरे के अंदर कोयला डाल के सुलगाया जाता है। कांगड़ी 8 से 10 घंटे तक आराम से शरीर को गरम रखती है।
कश्मीर के कल्चरल एक्टिविस्ट और लेखक जरीफ अहमद जरीफ बताते हैं, ‘पुराने जमाने में चिल्लई कलां उत्सव की तरह मनाया जाता था। श्रीनगर में 3 से 4 फीट बर्फबारी हुआ करती थी। ऊंचे इलाकों में और भी ज्यादा। उस दौर में आजकल की तरह सीमेंट के मकान नहीं थे।
घरों की वास्तुकला सर्दियों के इस मौसम के हिसाब से होती थी। चिल्लई कलां की पहली रात पारंपरिक गीतों के साथ मनाई जाती थी। महीनों तक चलने वाली सूखी सब्जियों के पर्याप्त भंडार के कारण कभी भी राजमार्ग के बंद होने की वजह से यहां के लोग परेशान नहीं होते थे।’
वे आगे कहते हैं, ‘अब पहले की ज्यादातर चीजें पीछे छूट गई हैं। परंपरा के नाम पर सिर्फ इक्का-दुक्का चीजें बची हैं।’ जरीफ आगे बताते हैं कि चिल्लई कलां के बाद 30 जनवरी से 18 फरवरी तक के मौसम को चिल्लई खुर्द (स्माॅल काेल्ड) कहा जाता है। 19 फरवरी से 28 फरवरी तक चिल्लई बचे (बेबी कोल्ड) होता है यानी बहुत कम सर्दी।
इस मौसम में भेड़ के गोश्त से बना हरिसा सबसे अच्छा खाना
कश्मीर यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आलिया अहमद बताती हैं, ‘ इस मौसम में सम्पन्न परिवार रात भर शबदेग पकाते हैं। इसमें एक बत्तख को मसालों के साथ पूरी रात कम आंच पर एक बड़े बर्तन में रखा जाता है और सुबह सब मिलकर खाते हैं। जबकि, ग्रामीण कश्मीर में सूखे टमाटर, लौकी, बैगन, कमल के तने, शलजम खूब चाव से खाए जाते हैं।’
डॉ. आलिया आगे बताती हैं, ‘इन व्यंजनो में सबसे लोकप्रिय होता है हरिसा, जिसे तैयार करने में 12 घंटे तक का वक्त लगता है। यह भेड़ के ताजा गोश्त से बनाया जाता है। इसमें बहुत सारे मसाले डाले जाते हैं। लोग इसे सुबह पारंपरिक रोटी के साथ खाते हैं। यह हाई कैलोरी वाला फूड होता है जो भीषण सर्दियों में एनर्जी देता है। केसर का कहवा इस मौसम का पसंदीदा पेय होता है।’
बर्फ के स्नो स्कल्पचर से कोविड वॉरियर्स को सलाम
कुछ मुश्किलों के बावजूद कश्मीर में सर्दी और बर्फबारी का अलग मजा है। जगह-जगह बच्चे स्नोमैन और बर्फ की मूर्तियां बनाते नजर आते हैं। एमान जोहरा और उनकी बहन डॉ. कुरत उल एन जोहरा ने डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को समर्पित एक स्नो स्कल्पचर बनाया। एमान कहती हैं, ‘2020 बहुत कठिन साल था। डॉक्टरों ने मानव जाति की सेवा के लिए अथक परिश्रम किया। डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ असली COVID हीरो हैं और हम इसके जरिए उनके प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहते हैं।’
इस मौसम में रोजाना करीब एक हजार पर्यटक पहुंच रहे हैं कश्मीर
पिछले कुछ हफ्तों में, कश्मीर के प्रमुख टूरिस्ट स्थल हाउसफुल हो चुके हैं। यहां हर दिन करीब एक हजार टूरिस्ट आ रहे हैं। एक महीने पहले तक यह संख्या महज कुछ सैकड़ा थी। खराब मौसम के चलते दर्जनों उड़ानें रद्द करनी पड़ीं और हजारों वाहन हाइवे पर फंस गए। वर्ना टूरिस्टों की संख्या और ज्यादा होती।
पहली बार कश्मीर आए विकास कहते हैं, ‘सच में कश्मीर ही दुनिया का स्वर्ग है, इससे खूबसूरत बर्फबारी और कहीं नहीं हो सकती।’ गुलमर्ग के फेमस विंटर रिसॉर्ट और होटल भी हाउसफुल हैं। लोग स्कीइंग और दूसरे विंटर स्पोर्ट्स एक्टिविटी का आनंद ले रहे हैं। गोंडोला केबल कार उन टूरिस्टों के लिए वंडरिंग होता है जो बर्फीले तूफान के बाद का जादुई दृश्य देखना चाहते हैं।