नवेद शिकोह @naved.shikoh
बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्मदिन के मौके पर ऐलान कर दिया कि वो आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगी।
इसके साथ ही अटकलों पर विराम लग गया और तय हो गया कि भाजपा के खिलाफ एकजुट होने वाली सियासी ताकतों का वो हिस्सा बसपा नहीं होगी।
महागठबंधन या तीसरे मोर्चे में शामिल होनें की संभावनाओं से अलग हो चुकी बसपा आगामी लोकसभा चुनाव अकेले बूते पर लड़ेगी तो इसमें किसका फायदा होगा और किसका नुकसान होगा ये तस्वीर मायावती की चुनावी रणनीति पर निर्भर करेगी। ये रणनीति ही तय करेगी कि बसपा यूपी में भाजपा के लिए विष बनेगी या अमृत!
यदि बसपा सुप्रीमो सचमुच दमदार तरीके से चुनाव लड़ती हैं, चुनावी वर्ष में मायावती केंद्र और यूपी सरकार के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष करती नजर आती हैं, पहले की तरह दलित समाज को एकजुट करने के लिए ताबड़तोड़ रैलियां करती हैं,अपने पारंपरिक आधार वोट बैंक दलितों के हक़ की लड़ाई लड़ती हैं, इनके हक़ और सुरक्षा को लेकर सरकार के खिलाफ ज़मीनी मोर्चा खोलती हैं तो ऐसे में ये संभव हो सकता है कि बसपा का ट्रेडीशनल वोटर भाजपा का साथ छोड़कर बसपा में घर वापसी कर ले।
ऐसे में तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को नुकसान हो सकता है। क्योंकि यदि भाजपा के खिलाफ और दलित समाज को फोकस करते हुए बसपा चुनाव में उतरेगी तब ही यूपी की आबादी का क़रीब बीस फीसद मुस्लिम समाज बसपा की तरह आकर्षित होकर दलित-मुस्लिम फार्मुले पर अमल करने पर विचार कर सकता है।
पहले की तरह बसपा अपने दलित समाज का संपूर्ण विश्वास हासिल कर बीस-पच्चीस फीसद वोट की स्थिति में दिखने लगी तो उसे अल्पसंख्यक समाज का साथ मिल सकता है।
ऐसे में यूपी में भाजपा की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं और बसपा की बढ़ सकती हैं। ये बात भी नजर आने लगी है कि मुस्लिम समाज बसपा का साथ तब ही देगा जब मायावती आधे से ज्यादा भाजपा के विश्वास से जुड़ चुके दलित समाज को वापस लाने की जी-जान से मेहनत करती नजर आएंगी। विपक्षी दल कांग्रेस और सपा पर हमला करने के बजाय पूरी ऊर्जा भाजपा को सत्ता से बेदखल करने पर लगाएंगी।
बसपा सुप्रीमो जब दलित समाज के बजाय मुसलमानों की ही बात बार-बार करती हैं तो ये आरोप और गहरे होने लगते हैं कि बसपा भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए मुस्लिम समाज की एकजुटता को तोड़ना चाहती है। अधिक से अधिक अल्पसंख्यक प्रत्याशी उतारने और बार बार सपा पर हमलावर होने से बसपा को भाजपा की बी टीम कहने वालों को बल मिलता है।
पुराने आक्रामक फॉर्म में आने के बजाय बसपा यूपी विधानसभा 2022 की तरह सिर्फ सपा से ही लड़ती दिखी तो विधानसभा चुनाव जैसा ही अंजाम हो सकता है।
ऐसे में अगर कांग्रेस और सपा का घमंड आपस में नहीं टकराया और यूपी में कांग्रेस छोटे भाई की भूमिका में दस के अंदर सीटों पर संतोष करके भाजपा को हराने के लिए कुर्बानी दे देती है तो संभावित सपा-कांग्रेस और रालोद गठबंधन के आगे बसपा को सरकार विरोधी वोटों के लाले पड़ सकते हैं।
कुल मिलाकर ये तो तय है कि बसपा अकेले लड़ेंगी और अगर तमाम कयासों में ये भी कयास लगाया जाए कि यूपी में कांग्रेस और सपा के बीच कोई भी तालमेल नहीं हुआ तो ताजुब नहीं कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा एक-दो सीट छोड़ कर यूपी की सभी सीटों पर विजय प्राप्त कर ले!