लखनऊ। असदुद्दीन ओवैसी की अगुआई वाली पार्टी एआईएमआईएम को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वोटकटवा और दूसरा का खेल बिगाड़ने वाली पार्टी के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, आजमगढ़ के मुबारकपुर में पार्टी को बेहद मजबूत स्थिति में माना जा रहा है। सपा और बसपा के गढ़ रहे इस सीट पर क्या ओवैसी सबकी पतंग काट देंगे? यह 10 मार्च को ही साफ होगा, फिलहाल मुकाबला बेहद दिलचस्प है।
आजमगढ़ की इस सीट को बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) का गढ़ माना जाता है। हाथी ने 1996 से अब तक यहां हर चुनाव में विरोधियों को कुचला है। वहीं, समाजवादी पार्टी 2002 को छोड़कर हर बार दूसरे नंबर पर रही है। 2002 में लोकजनशक्ति पार्टी का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहा था। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने शाह आलम उर्फ गुड्डी जमाली को टिकट दिया है। जमाली बसपा के टिकट पर दो बार के विधायक रह चुके हैं। सपा ने इस सीट से अध्यक्ष अखिलेश यादव के हमनाम को उतारा है, जो पिछले दो चुनावों में दूसरे स्थान पर रहे हैं।
स्थानीय लोग कहते हैं कि एआईएमआईएम की मजबूती की वजह से नहीं बल्कि मजबूत प्रत्याशी की क्षेत्र में पकड़ की वजह से ओवैसी की पार्टी को यहां गंभीरता से लिया जा रहा है। जमाली अखिलेश यादव और बसपा के अब्दुस सालम को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। बीजेपी ने अरविंद जायसवाल को यहां टिकट दिया है। मुस्लिम बहुल सीट पर मुस्लिम वोटों में त्रिकोणीय बंटवारे की सूरत में भगवा दल को जीत हाथ लगने की उम्मीद है।
सपा के अखिलेश यादव लोगों को बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव की याद दिलाकर कहते हैं कि बिहार में वोट के बंटवारे की वजह से भाजपा गठबंधन जीत गया था, लेकिन पश्चिम बंगाल में एआईएमआईएम को अधिक वोट नहीं मिले तो बीजेपी हार गई। वह जोर देकर कहते हैं कि यूपी में लोग अखिलेश यादव की सरकार चाहते हैं इसलिए मुबारकपुर में एआईएमआईएम के लिए कोई जगह नहीं है।
यादव ने पीटीआई से कहा, ”यह विचारधारा और विकास के बीच का चुनाव है। मैं धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करता हूं। मैं एक समाजवादी हूं। अखिलेश यादव की सरकार में चौतरफा विकास हुआ था, जबकि बीजेपी सरकार में आर्थिक, समाजिक और राजनीतिक समस्याएं बढ़ गई हैं। अखिलेश यादव के हमनाम होने को लेकर वह कहते हैं कि सपा प्रत्याशियों को अखिलेश यादव के नाम का फायदा मिलता है और उन्हें इसका अधिक फायदा मिलता है।
नई पार्टी से लड़ने की वजह से दावेदारी कमजोर पड़ने की दलीलों को खारिज करते हुए आलम कहते हैं कि वह दो बार जीत चुके हैं। सिंबल भले ही नया हो लेकिन लोग उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। वह कहते हैं, ”मेरी राजनीति का आधार विकास है और मैं धर्म-जाति की राजनीति से दूर रहता हूं।
आलम ने कहा, ”एआईएमआईएम को जीत मिली है या नहीं, यह मायने नहीं रखता है, लेकिन मैं खुद को जीत में सक्षम मानता हूं। मैंने पूरी ईमानदारी से लोगों की सेवा की है और वह मुझे वापस लाएंगे।” यह पूछे जाने पर कि क्या हिंदू वोटर्स एआईएमआईएम को वोट देने से कतराएंगे? जमाली ने कहा, ”मुझे मुस्लिम से ज्यादा हिंदू भाई वोट करेंगे। 100 फीसदी, मैं यह चुनाव जीतने जा रहा हूं।”
बसपा के सालम भी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। वह कहते हैं कि एआईएमआईएम को 5000 से अधिक वोट नहीं मिलेंगे और वह सपा उम्मीदवार को 25 हजार से अधिक वोट से हराएंगे। मुबारकपुर में 1,10,000 मुस्लिम वोटर्स हैं, जबकि यहां 78 हजार दलित, 65 हजार यादव वोटर्स हैं। कुल वोटर्स की संख्या 3,17,000 हजार है।
मुस्लिम वोटर्स इस बार यहां बंटे हुए नजर आ रहे हैं। कोविड माहामारी में मदद पहुंचाने को लेकर बहुत से लोग आलम को समर्थन दे रहे हैं। एक वर्ग सपा को वोट करने की बात इस दलील पर कर रहा है कि बीजेपी को साइकिल ही चुनौती दे रही है। मुसलमानों में एक वर्ग अब भी बसपा के प्रति वफादार बना हुआ है, लेकिन इसमें गिरावट आई है। हालांकि, दलित वोटर्स अब भी उसके साथ मजबूती से खड़े नजर आते हैं।