न्यूज 7 एक्सप्रेस ब्यूरो
-उपन्यास के सजीव प्रदर्शन को देखने के लिए इरम एजुकेशनल सोसाइटी के आडीटोरियम में बड़ी संख्या में भीड़
-जनपद-लखनऊ में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के रूप में तैनात हैं बालेन्द्र द्विवेदी
लखनऊ। इरम कालेज सी ब्लाक इन्द्रानगर के आडीटोरियम में मौजूद हजारों की संख्या में‘‘दर्शकों’’ के लिए सितम्बर की पहली शाम बेहद दिलचस्प व रंगारंग तरीके से गुजरी। मौका था लखनऊ के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बालेन्द्र द्विवेदी द्वारा लिखे गये उपन्यास ‘‘मदारीपुर जंक्शन’’ के नाटक रूपान्तरण का सफल मंचन। कुछ बेहद चुनिन्दा व अपने फन में माहिर कलाकारों ने इस नाटक में अपनी अदाकारी में न सिर्फ जौहर पेश किये बल्कि उनके किरदार से समा बांध दिया बल्कि मदारीपुर जक्शन नावेल के बेहद संजीदा सब्जेक्ट और दिलचस्प कहानी ने दर्शकों को सोंचने के लिए मजबूर कर दिया और समाज के ऊंचे व निचले तबके के बीच कशमकश पर लिखी इस पटकथा को देखते ही बना।
उल्लेखनीय है कि जनपद-लखनऊ में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के रूप में तैनात और अपने मिलनसार व्यक्तित्व के लिए जाने जाने वाले बालेन्दु द्विवेदी द्वारा लिखा गया उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन’ का मंचन 01 सितम्बर को नवाबों के शहर लखनऊ के सी ब्लाक इंदिरानगर में स्थित इरम एजुकेशनल सोसाइटी के आडिटोरियम में मुनअकिद हुआ। इसके सजीव ड्रामे का डायरेक्शन ‘दि थर्ड बेल’ इदारे के मशहूर रंगकर्मी और डायरेक्टर आलोक नायर ने किया। आलोक के तमाम साथी कर्मियों में असिस्टेंट डायरेक्शन -कौस्तुभ पांडेय, वस्त्र विन्यास-गौरव शर्मा, संगीत निर्देशन-इंद्रजीत सिंह,रूपसज्जा -संजय चैधरी का रहा। नाटक के प्रमुख किरदारों में सचिन चंद्रा, राममणि त्रिपाठी,देवेंद्र राजभर, गौरव शर्मा, आशू कपूर, अभिषेक मिश्रा, संध्या शुक्ला, कौस्तुभ पांडे, शैलेश श्रीवास्तव, कार्तिक श्री विद्योत्तमा द्विवेदी, सत्यम तिवारी, शिवेश सिंह आदि रहे।
इस मौके पर उपन्यासकार बालेन्दु द्विवेदी ने बताया कि उपन्यास अपने ग्रामीण कलेवर में कथा के प्रवाह के साथ विविध जाति-धर्मों के ठेकेदारों की चुटकी लेता और उनके पिछवाड़े में चिंगोटी काटता चलता है। वस्तुतः उपन्यास के कथानक के केंद्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश का मदारीपुर-जंक्शन नामक एक गाँव है जिसमें एक ओर यदि मदारीमिजाज चरित्रों का बोलबाला है तो दूसरी ओर यह समस्त विद्रूपताओं का सम्मिलन-स्थल भी है। इस लिहाज से मदारीपुर-जंक्शन अधिकांश में सामाजिक विसंगतियों-विचित्रताओं का जंक्शन है।
मदारीपुर पट्टियों में बँटा है। अठन्नी, चवन्नी और भुरकुस आदि पट्टियों में। यहां लोगों की आदत है हर अच्छे काम में एक दूसरे की टांग अड़ाना। लतखोर मिजाज और दैहिक शास्त्रार्थ में यहां के लोग पारंगत हैं। गांव है तो पास में ताल भी है जो जुआरियों का अड्डा है। पास ही मंदिर है जहां गांजा क्रांति के उदभावक पाए जाते हैं। हर उपन्यास की एक केंद्रीय समस्या होती है। जैसे हर काव्य का कोई न कोई प्रयोजन। मदारीपुर जंक्शन के भी केंद्र में परधानी का चुनाव है। यहां परधानी के चुनाव में बुनियादी तौर से दो दल हैं एक छेदी बाबू का दूसरा बैरागी बाबू का। पर चुनाव के वोटों के समीकरण से दलित वर्ग का चइता भी परधानी का ख्वाब देखता है और भगेलू भी। पर दोनों छेदी और बैरागी के दांव के आगे चित हो जाते हैं। चइता को छेदी के भतीजे ने मार डाला तो बेटे पर बदलू शुकुल की लडकी को भगाने के आरोप में भगेलू को नीचा देखना पड़ा। पर राह के रोड़े चइता व भगेलू के हट जाने पर भी परधानी की राह आसान नहीं। हरिजन टोले के लोग चइता की औरत मेघिया को चुनाव में खड़ा कर देते हैं।
दलित चेतना की आंच सुलगने नहीं बल्कि दहकने लगती है जिसे सवर्ण जातियां बुझाने की जुगत में रहती और संयोग देखिए कि वह दो वोट से चुनाव जीत जाती है। पर चइता की मौत की ही तरह उसका अंत भी बहुत ही दारुण होता है। लिहाजा जब जीत की घोषणा सुन कर पिछवाड़े पति की समाधि पर पहुंचती है पर जीत कर भी हरिजन टोले के सौभाग्य और स्वाभिमानी पीढ़ी को देखने के लिए जिन्दा नही रहती। शायद आज का कठोर यथार्थ यही है। आज गांव किस हालात से गुजर रहे हैं, यह उपन्यास इसका जबर्दस्त जायजा लेता है।कुल मिला कर दुरभिसंधियों में डूबे गांवों के रूपक के रुप में मदारीपुर जंक्शन इस अर्थ में याद किया जाने वाला उपन्यास है कि दलित चेतना को आज भी सवर्णवादी प्रवृत्तियों से ही हांका जा रहा है।
सबाल्टर्न और वर्गीय चेतना भी आजादी के तीन थके हुए रंगों की तरह विवर्ण हो रही है। गांवों को सियासत ने बदला जरूर है पर गरीब दलित के आंसुओं की कोई कीमत नहीं। ‘दि थर्ड बेल’ के कलाकारों ने नाटक के माध्यम से कथानक के चरित्रों को जीवंत कर दिया और दर्शकों की खूब वाहवाही और तालियाँ बटोरीं। बालेन्दु द्विवेदी के उपन्यास के सजीव प्रदर्शन को देखने के लिए इरम एजुकेशनल सोसाइटी के आडीटोरियम में बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ पड़ी। लोग बालकनी से लेकर खिड़कियां तक पर एक झलक पाने के लिए आतुर दिखाई दिए।
कार्यक्रम में इरम एजुकेशनल सोसाइटी के निदेशक ख्वाजा फैजी यूनुस, ख्वाजा सैफी यूनुस सहित सोसाइटी के संकायों के विभागाध्यक्ष सहित जनपद के अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे। प्रोग्राम के अंत में इरम सोसाइटी के निदेशक मंडल एवं विभागाध्यक्षों ने आये हुए सभी गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों को धन्यवाद दिया।