बीजेपी की B टीम का ठप्पा? इन 4 वजहों ने PK की नई पार्टी पर खड़े किए सवाल

पटना: जन सुराज यात्रा की समाप्ति के साथ राजनीति के रणनीतिकार प्रशांत किशोर खुद को भाजपा की छाया से मुक्त नहीं कर पाए। इसका सीधा असर प्रशांत किशोर की रैली पर भी पड़ा। हालांकि इस हकीकत से इंकार नहीं कर सकते कि उत्तर बिहार में बाढ़ और पटना में बारिश के बाद भी भीड़ निराशजनक नहीं थी। लेकिन जन सुराज के इस भीड़ तंत्र पर एक नजर डालें तो सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि प्रशांत किशोर की रणनीति के अनुसार राज्य के मुस्लिम और यादवों की संख्या उनके मजमे में काफी कम रही।

‘प्रशांत किशोर बीजेपी की B टीम’

पहले राष्ट्रीय जनता दल ने एआईएमआईएम पर भी भाजपा की B टीम होने का आरोप लगाया था। इसके बाद प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को भी RJD ने BJP की B टीम करार दिया। कहा जाता है कि राजद हर उस पार्टी को भाजपा की बी टीम करार देती है जो मुस्लिम वोट काटती है।

प्रशांत किशोर ने भी पहले 75 मुस्लिमों को टिकट देने का वादा किया और फिर बाद में आबादी के अनुसार टिकट देने की रणनीति शामिल की गई। इस लिहाज से 42 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा कर एक तरह से मुस्लिम वोट में सेंधमारी की कोशिश कर डाली। कहा जा रहा है कि इसी से बिफर कर राजद के लोग जन सुराज को भाजपा की B टीम कहने लगे हैं।

वजह 1- प्रशांत किशोर का भूत ही भविष्य पर हावी

अब इसे पीके का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि मुद्दा आधारित दो वर्षों तक बिहार की यात्रा करने के बाद भी BJP की बी टीम होने का आरोप लगने लगा है। RJD सांसद मीसा भारती ने बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर को नकारते हुए कहा कि ‘जन सुराज पार्टी को कुछ फायदा होने वाला नहीं है।

जनता समझ चुकी है कि भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए प्रशांत किशोर अपनी पार्टी बना रहे हैं और वह भाजपा की B टीम के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार लगातार बिहार में शासन कर रहे हैं और अपने आप को सुशासन बाबू कह रहे हैं। जब नीतीश कुमार बिहार में अपने शासनकाल में एक भी फैक्ट्री नहीं खोल पाए तो प्रशांत किशोर क्या कर पाएंगे।’

वजह 2- भाजपा की बी टीम बोले जाने की वजह खुद पीके

दरअसल राजद इस कंसेप्ट पर पहुंची है तो इसके कारण भी है। दरअसल प्रशांत किशोर का अतीत उनके वर्तमान के साथ चल रहा है। बतौर रणनीतिकार जब वे उत्तर प्रदेश गए तो कहा जाता है कि पीके ने अपने प्रभाव में रख कर कई नेता मसलन जगदंबिका पाल ,रीता बहुगुणा जोशी जैसे कद्दावर कांग्रेस नेताओं को भाजपा जॉइन करा दिया। जबकि वे कांग्रेस, समाजवादी गठबंधन को जीत दिलाने गए थे।

वजह 3- इसीलिए प्रशांत किशोर पर बीजेपी की ‘छाप’

ठीक इसी तरह से जब प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार बन कर गए तो कहा जाता है कि मुकुल राय,अर्जुन सिंह, निशिथ जैसे नेताओं ने तृणमूल छोड़ भाजपा जॉइन कर लिया। जब पीके पंजाब में रणनीति बनाने गए तो कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने भाजपा की शरण ले ली। इन प्रसंगों के हवाले से राजनीतिक गलियारों में यह संदेश चला गया कि वे भाजपा के लिए बैटिंग करते हैं। एक बार तो खुद राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीके को भाजपा के करीबी बताते साफ कहा था ‘वे भाजपा के करीबी रहे हैं। हमने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कहने पर बनाया था।’

वजह 4- ‘मुसलमानों को समेट नहीं पाए PK’

वरिष्ट पत्रकार और रालोमो के राष्ट्रीय महासचिव फजल इमाम मल्लिक कहते है कि तमाम मुस्लिमों को जबरदस्त हिस्सेदारी देने के बाद भी प्रशांत किशोर अगर मुस्लिम को साधने में असफल रहे हैं तो इसके भी कारण हैं। एक तो उनका करियर का उत्थान भाजपा के साथ हुआ। अमित शाह का करीबी होना भी एक बड़ा कारण रहा है। वैसे भी अगर मुस्लिम वोट पैटर्न को देखें तो वह आज भी ज्यादातर राजद के साथ जुड़ा है।

बड़े लेवल पर बात करें तो वो इंडिया गठबंधन के साथ है। यह भी कुछ अजीब सा है कि नीतीश कुमार मुस्लिम हित के लिए अनेक योजनाओं को लाए तब भी वे मुसलमानों का भरोसा नहीं जीत पाए।लेकिन वे अगर राजद के साथ होते हैं तब उन्हें भी वोट मिलता है। भाजपा के साथ मिलते ही नीतीश कुमार के वे फॉलोवर पुनः राजद की ओर चले जाते हैं। बिहार में मुस्लिम वोटर का गणित अभी भी राजद के साथ है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के सेक्युलर चरित्र के वाहक उपेंद्र कुशवाहा जब भाजपा के साथ गठबंधन में होते हैं तो उन्हें भी मुस्लिम वोट बहुत कम मिल पाते हैं।

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