लंदन। दुनिया के अधिकांश देशों में कोरोना का टीकारण अभियान चल रहा है। अमीर देशों की तुलना में गरीब देशों में टीका लगने की रफ्तार सुस्त है। टीका लगने के बीच कई देशों में ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि कुछ लोग टीका लगावाने में हिचकिचा रहे हैं। कई सर्वे में ऐसा खुलासा हुआ है कि लोग कई वजहों से टीका नहीं लगवाना चाह रहे हैं। ब्रिटेन में भी ऐसी खबरें आ रही है। यहां रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों में कोरोना वैक्सीन लगवाने को लेकर हिचकिचाहट देखी जा रही है।
ब्रिटेन में ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं जहां भारतीय समुदाय के लोग टीका लगवाने में आनाकानी कर रहे हैं। इसका कारण परिवारों और दोस्तों में व्हाट्सऐप के जरिए फैलने वाली फेक न्यूज और संदेंह की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
इन लोगों को जो संदेश मिले हैं उसमें कोरोना वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों पर शक जाहिर किया गया है। जैसे कि टीका शाकाहारी है या नहीं, उसमें किसी प्रकार के मीट या जानवरों का फैट इस्तेमाल हुआ है या नहीं।
ब्रिटेन में अब लगातार टीका लगवाने के लिए भारतीयों को प्रोत्साहित करने की कोशिश हो रही है। हाल ही में हुए एक सर्वे में यह पता लगाने की कोशिश भी की गई कि भारतीय समुदाय पर महामारी का क्या असर हुआ और वैक्सीन को लेकर उनका नजरिया क्या है?
गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दूसरे चरण में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों में मौत का खतरा कई गुना ज्यादा बताया गया है। यह बात पहले अश्वेत समुदाय के बारे में कही गई थी।
सर्वे के नतीजे नहीं रहे उत्साहजनक
हाल ही में ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी समेत कई संस्थानों ने मिलकर एक सर्वे किया जिसके नतीजे अधिक उत्साहजनक नहीं रहे। सर्वे में 2,320 ब्रिटिश भारतीयों से बात की गई जिसमें केवल 56 फीसदी ने कोरोना वैक्सीन लेने में दिलचस्पी दिखाई, जबकि 44 फीसदी ने वैक्सीन ना लेने या फिर असमंजस में होने की बात कही।
खासकर आदमियों के मुकाबले महिलाओं की दिलचस्पी वैक्सीन लेने में काफी कम दिखाई दी।
वैक्सीन न लेने की जो वजहें गिनाई गई हैं उसमें जानकारी के अभाव को जिम्मेदार ठहराया गया। हालंाकि कुछ लोगों का यह भी कहना था कि उन्हें वैक्सीन की उतनी जरूरत नहीं है जितनी शायद सेहत की परेशानियों से जूझ रहे लोगों को होग। इसलिए अगर उन्हें बुलाया भी गया तो वे वैक्सीन लेने से इनकार कर देंगे।
इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले कुल लोगों में तकरीबन आधी संख्या पंजाबी समुदाय से है, जबकि एक चौथाई गुजराती समुदाय से हैं। शोधकर्ताओं ने इन आंकड़ों का इस्तेमाल इस बात पर जोर देने के लिए किया है कि टीके को लेकर फैली भ्रांतियां और फेक न्यूज के जाल को तोडऩे के लिए समुदाय केंद्रित अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
लोगों में विश्वास पैदा करने की इसी मुहिम के तहत ब्रिटेन में मस्जिदों और मंदिरों को वैक्सीन अभियान में हिस्सेदारी के लिए जोड़ा गया है। इन्हीं कोशिशों के मद्देनजर ऐसे कई वीडियो भी जारी किए जा रहे हैं जहां जाने-माने चेहरे वैक्सीन से जुड़े डर को कम करने की कोशिशें करते नजर आएंगे।
इस अभियान में कई बड़े लोगों को शामिल किया गया है जिसमें इसमें टेलीविजन के मशहूर चेहरों के अलावा कॉमेडी की दुनिया से असीम चौधरी, संदीप भास्कर और रोमेश रंगनाथन जैसे नाम शामिल हैं। ये लोग कोरोना वैक्सीन पर गलतफहमियों को दूर करने के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं।
दक्षिण एशियाई समुदायों में जहां कोरोना वैक्सीन पर जानकारी और भ्रम के बीच लकीर खीचने की चुनौती है, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि अश्वेत समुदाय में अविश्वास की वजह नस्लीय भेदभावपूर्ण सामाजिक ढांचा और चिकित्सीय अनुसंधानों का इतिहास है जहां अश्वेतों को शोध के लिए इस्तेमाल किया गया।
गलत सूचनाओं के प्रसार की काट ढूंढना चुनौती
सोशल मीडिया के बढ़ते चलन की वजह से गलत सूचनाओं का काट ढूढ पाना बड़ी चुनौती है। कोरोना महामारी के दौरान गलत सूचनाओं को प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल हुआ। अब कोरोना के टीके को लेकर गलत सूचनाएं प्रसारित की जा रही हैं।
कोरोना महामारी ने जहां ब्रिटेन के अश्वेत और दक्षिण एशियाई समुदायों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के मामले में गैर-बराबरी की गंभीर स्थितियों को उजागर किया है, वहीं इन समुदायों में कोरोना के टीके को लेकर गलत सूचनाओं के प्रसार की काट ढूंढना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।
ब्रिटिश स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि वे स्थानीय काउंसिलों को अतिरिक्त धनराशि मुहैया कराई जा रही है ताकि वे सही सूचनाएं फैलाने के लिए पूरी कोशिश कर सकें। ब्रिटेन में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी संभालने वाले मंत्री नदीम जहावी ने अपने लिखित बयान में कहा है, “ऐसा हर व्यक्ति जिसे कोरोना वैक्सीन मिलनी चाहिए, उसे हम वैक्सीन देंगे चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो”।
फोन पर फैलने वाली गलत सूचनाएं और फेक न्यूज सरकारी कदमों पर अधूरी जानकारियों और तेजी से तैयार हुई वैक्सीन के प्रभावों पर भ्रम, ये सब मिलकर लोगों के भरोसे को हिला रहे हैं।
जातीय समुदायों में विश्वास बहाली की चुनौती लगातार बनी हुई है क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद आंकड़े बार-बार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि रास्ता अब भी लंबा है और लड़ाई अभी बाकी है।